रविवार, 1 अप्रैल 2012

सरकारी कार्यालयों में उड़ रही नियमों की धज्जियां

सरकार के आदेशों के वाजूद भी आवेदकों से लिए जा रहे हैं शपथ पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के लगभग तमाम सरकारी कार्यालयों में कायदे-कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकार द्वारा सरकारी विभागों में आम आदमी से शपथ पत्र न लेने के आदेशों के बावजूद भी सभी सरकारी कार्यालयों में शपथ पत्र लेने का सिलसिला बदस्तुर जारी है। सरकारी अधिकारियों पर सरकार के आदेशों का कोई असर नहीं है। इससे आम जनता को आर्थिक व मानसिक परेशानी उठानी पड़ रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि आम आदमी द्वारा साधारण कागज पर जो शपथ पत्र दिए जा रहे हैं कार्यालय में बैठके कर्मचारी उन्हें भी नोटरी से सत्यापित करवा कर लाने के फरमान जारी करते हैं, जो सरासर नियमों के विरुद्ध है। इस प्रकार सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण शपथ पत्र विक्रेता जमकर चांदी कूट रहे हैं। 
हरियाणा सरकार ने 28 अप्रैल 2010 को पत्र क्रमांक-62/09/2010-6जीएसआई में सभी सरकारी विभागों व संस्थाओं के मुखियाओं को आदेश जारी किए थे कि किसी भी सरकारी कार्यालय में सरकारी कार्य के लिए आम आदमी से शपथ पत्र नहीं लिए जाएंगे। आदेशों में यह स्पष्ट किया गया था कि सरकार ने निर्णय अनुसार एक जून 2010 से किसी भी हरियाणा सरकार के विभाग व संस्थान में केवल उस स्थिति को छोड़कर जहां कानूनन शपथ पत्र देना बाध्यता है, अन्य किसी भी स्थिति में आवेदक से आवेदन के साथ किसी भी सूरत में शपथ पत्र नहीं लिया जाएगा। इससे जहां आवेदकों को मानसिक व आर्थिक परेशानी होती है, वहीं दफ्तर के रिकार्ड में भी बेवजह इजाफा होता है। सरकार ने अपने आदेश में यह भी व्यवस्था दी थी कि अब सभी आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होगा, जिसमें आवेदक यह घोषणा करेगा कि आवेदन पत्र में दिए गए सभी तथ्य सच्चे हैं और उसमें कुछ भी छिपाया नहीं गया है। तथ्य झूठे पाए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 182/415/417/420 आदि के तहत कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। सरकार के आदेशों के दो वर्ष बाद अभी भी सरकार के इन आदेशों पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ है और लगभग सभी सरकारी विभागों में आवेदनकर्त्ताओं से शपथ पत्र लिए जा रहे हैं, जिससे एक तरफ जहां आम जनता को वित्तीय व अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं सरकारी आदेशों की भी सरेआम धज्जियां उड़ रही है। आज तक किसी भी विभाग ने कार्यालय के बाहर आवेदन के साथ शपथ पत्र न लेने संबंधी कोई नोटिस बोर्ड भी नहीं लगाया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि अगर आवेदकों द्वारा साधारण कागज पर कोई शपथ पत्र दिया जाता है तो सरकारी कर्मचारी उस शपथ पत्र को भी नोटरी से सत्यापित करवाते हैं, जो सरासर गलत है।
सरकारी विभागों के कार्यालय के बाहर लगाया जाए बोर्ड
इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता विनोद बंसल एडवोकेट ने बताया कि वे स्वयं लगभग 20 सरकारी विभागों के मुखियाओं को पत्र व्यवहार कर शपथ पत्र न लेने संबंधि बोर्ड कार्यालयों के बाहर लगाने के बारे में अपील कर चुके हैं। लेकिन आज तक एकाध कार्यालय को छोड़कर किसी भी कार्यालय के बाहर इस तरह का कोई नोटिस बोर्ड नहीं लगाया गया है। बंसल ने बताया कि उन्होंने उपायुक्त से मांग की है कि इस मामले में कानून की पालन सुनिश्चित करें व सभी विभागों को तुरंत आदेश दें कि वे आम जनता से उनके कार्यों के लिए प्रत्येक आवेदन पत्र के साथ शपथ पत्र की मांग न करें और इन आदेशों की अनुपालना न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, ताकि आम जनता को परेशानियों से मुक्ति मिल सके।
जरूरी नहीं है शपथ पत्र देना : एडीसी
छोटे-छोटे कार्यों के लिए शपथ पत्र देना जरूरी नहीं है। आवेदक द्वारा आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होता है, जिसे भरकर वह दे सकता है। इसके बाद शपथ पत्र की जरूरत नहीं होती है। कई बार आवेदक स्वयं शपथ पत्र ले आते हैं तो वह ले लिए जाते हैं। सिर्फ कानून शपथ देना जहां बाध्यता है, वहीं शपथ पत्र दिए जाने जरूरी होते हैं।
अरविंद मलहान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

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