शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

खामियों के कारण पटरी पर नहीं आ रही ‘मनरेगा’

बेरोजगारी मिटाने में अचूक अस्त्र बन सकती है ‘मनरेगा’
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार गरीबों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं बनाती है, जो अगर ठीक ढंग से लागू की जाएं तो उनके जीवन में वाकई चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं। लेकिन अफसोस ये कि ये योजनाएं जरुरतमंदों तक पहुंचती ही नहीं हैं। योजना में खामियों के कारण योजनाएं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। बेरोजगारी के समय में कर्मशील मजदूरों की ‘मां’ माने जानी वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भी खामियों के कारण पटरी पर नहीं चढ़ पा रही है। मनरेगा की सफलता में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है मॉडल एस्टीमेट व लंबी प्रक्रिया। सही ढंग से मॉडल एस्टीमेट तैयार न होने के कारण मजदूरों को समय पर मजदूरी के पैसे नहीं मिल पाते हैं। बीडीपीओ कार्यालय में अधिकारियों की कमी के कारण समय पर कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो पाती। जिस कारण मनरेगा का कार्य सही ढंग समय पर शुरू नहीं हो पाता है। मनरेगा की कार्यप्रणाली में अगर थोड़ा सा सुधार कर दिया जाए तो, वाकई में यह योजना कर्मशील मजदूरों को कभी भी बेरोजगार नहीं होने देगी। 
क्या है मनरेगा से कार्य शुरू करवाने की मौजूदा प्रक्रिया
मनरेगा से कार्य शुरू करवाने के लिए सरपंच द्वारा ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कर बीडीपीओ के माध्यम से एडीसी को भेजा जाता है। एडीसी द्वारा कार्य को मंजूरी देने के बाद प्रस्ताव वापिस बीडीपीओ के माध्यम से सरपंच को भेजा जाता है। इसके बाद सहायक मजदूरों की कार्य डिमांड भरकर बीडीपीओ को भेजता है, फिर विभाग द्वारा ई-मस्ट्रोल जारी किया जाता है। इसके बाद कार्य शुरू किया जाता है। कार्य शुरू होने के बाद जेई द्वारा एमबी तैयार कर बीडीपीओ के पास भेजा जाता है। उसके बाद मजदूरों के खाते में पैसे डाले जाते हैं। 15 दिन में दो दिन की छुट्टी की जाती है। मजदूरों को छुट्टी का कोई पैसा नहीं दिया मिलता। ई-मस्ट्रोल भी योजना में बाधक है। ई-मस्ट्रोल जारी होने के बाद बीच में काम करने वाले इच्छुक मजदूर को सरपंच काम उपलब्ध नहीं करवा सकता। इस प्रकार मजदूर को काम शुरू करने के लिए 15 दिन तक इंतजार करना पड़ता है।
मनरेगा में क्या किए जा सकते हैं सुधार
जिला सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान का कहना है कि सीमांत किसान जो भी फसल लगाना चाहते हैं उसके अनुसार एक एकड़ पर फसल की बुआई से लेकर कटाई तक के पूरे चक्र की मजदूरी को जोड़कर मिट्टी की प्रकृति या कार्य के अनुसार पूरे वर्ष का मॉडल एस्टीमेट तैयार किया जाए।  कार्य के अनुसार मॉडल एस्टीमेट तैयार होने के बाद अधिकारियों को उस काम पर आने वाले खर्च के लिए बार-बार मॉडल एस्टीमेट तैयार करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मनरेगा से कार्य शुरू करवाने में जेई, एसडीओ व एक्सईएन की अहम भूमिका होती है, क्योंकि कार्य शुरू करने से लेकर खत्म होने तक की जो भी कागजी कार्रवाई होती है सारी इन्हे ही पूरी करनी होती है। लेकिन बीडीपीओ कार्यालयों में अधिकारियों की कमी के कारण भी कार्य समय पर शुरू नहीं हो पाते हैं। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि मनरेगा के लिए जेई, एसडीओ व एक्सईएन की नियुक्ती अलग से की जाए, ताकि ग्राम पंचायत द्वारा प्रस्ताव डालते ही कार्य को शुरू करवाया जा सके। कार्य के दौरान जो छुट्टी की जाती है, मजदूरों को उन छुट्टियों का पैसा दिए जाए। ई-मस्ट्रोल की जगह हाथ से सूची बनाई जाए, ताकि कार्य शुरू होने के बाद अगर कोई मजदूर काम मांगने के लिए सरपंच के पास आए तो सरपंच कार्य शुरू होने के बाद मजदूर को काम दे सके और जितने दिन वह मजदूर काम करता है, उसके अनुसार उसे पैसे दिए जा सकें।
किन-किन कार्यों को किया गया है मनरेगा में शामिल
आज के समय में मनरेगा के तहत 66 स्कवेयर फीट मिट्टी खोदने पर मजदूर को 191 रुपए की मजदूरी मिलती है। सरपंच गांव में खेती, बागवानी व पशु पालन, गलियों की सफाई व पौधा रोपण के काम भी कर सकता है। मनरेगा से कंजर्वेशन आॅफ वाटर एंड हारवेस्टिंग सिस्टम भी लगाया जा सकता है। सरकार ने योजना में संशोधन कर तीस नए कार्यों को शामिल किया है। इसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। साथ ही गरीबों के लिए इंदिरा आवास योजना, आईएवाई के तहत बनाए जाने वाले मकानों का निर्माण भी मनरेगा के जरिए किए जाने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। नक्सल प्रभावित जिलों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय बनाने की योजना को भी मनरेगा में शामिल किया गया है। योजना में संसोधन किए जाने के बाद इसे दो अप्रैल से प्रभावी तरीके से लागू किया गया है। इसमें जोड़े गए 90 फीसदी कार्य कृषि से संबंधित हैं। मनरेगा की नई सूची में 30 कार्यों को जोड़ा गया है। जिसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। इसमें पशु, मुर्गी व मछली पालन से जुड़े कार्य भी शामिल हैं।



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