गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

निजी स्कूल लूट रहे खून-पसीने की कमाई

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शहर के निजी स्कूलों की कमीशनखोरी ने अभिभावकों की जेबें खाली कर दी हैं। नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूल संचालकों ने अपनी जेबें भरनी शुरू कर दी हैं। जहां पहले दाखिले के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस वसूली जा रही है, वहीं इन निजी स्कूलों ने वर्दी से लेकर किताबों तक कमीशन निर्धारित किया हुआ है। निजी स्कूलों में किताबों की चिट बनाकर अभिभावकों के हाथों में थमा दी जाती है। निजी स्कूल संचालकों द्वारा दी गई चिट में बकायदा बुक डिपो का नाम व पूरा पता लिखा होता है। इन बुक डिपो संचालकों के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन निर्धारित होता है। किताब-कापियों के लिए फिक्स दुकानों एवं मनमानी कीमत ने मजबूर अभिभावकों की खून पसीने की कमाई लूट ली है। प्रकाशक से लेकर दुकानदार तक सब सेट हैं और असहाय अभिभावकों बच्चों के भविष्य की चिंता में खामोश हैं। शासन, प्रशासन को निजी स्कूलों के इस लूटतंत्र पर कार्रवाई करने की फुरसत नहीं है। प्रशासन की लापरवाही के चलते निजी स्कूल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
हर साल नए शैक्षिक सत्र के दौरान किताबों व ड्रेस के नाम पर निजी स्कूल अभिभावकों की जेबें ढीली कर मोटा मुनाफा वसूलते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। शैक्षिक सत्र में सबसे ज्यादा लूट किताबों को लेकर मचती है। इन दिनों शहर के कुछ  दुकानों एवं स्कूलों में बाजार से कई गुनी कीमत पर किताबें, कापियां एवं ड्रेस बेचे जा रहे हैं। इस पूरे कारोबार में एक संगठित गिरोह काम कर रहा है। पूरा खेल नए शिक्षा सत्र के साथ ही फिर से शुरू हो गया है। इसमें स्कूल प्रबंधन से लेकर प्रकाशक और दुकानदार जुड़े हैं। ये शिक्षा के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं और मुनाफे का बंटवारा आपस में कर रहे हैं। किताबों से हर साल स्कूल से लेकर पुस्तक विक्रेता तक लाखों रुपए कमाते हैं। सत्र शुरू होने से पहले ही विक्रेता बिचौलियों की भूमिका में आ जाते हैं। प्रकाशकों को लेकर स्कूलों तक विक्रेता स्वयं पहुंचते हैं। उसके बाद स्कूल वाले उसी प्रकाशक की किताबें स्कूलों में लगाते हैं फिर शुरू हो जाता है अभिभावकों की जेब तराशी का दौर। एनसीईआरटी की ओर से जो किताबें पैटर्न में दी जाती है उसके साथ ही जरुरी न होते हुए भी हेल्पिंग बुक लगा दी जाती हैं। अंग्रेजी की किताब के साथ हैंड राइटिंग सुधारने, ग्रामर की किताब दी जाती है। छोटी-छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे एक ही किताब नहीं पढ़ पाते हैं, तो दूसरी किताबें केवल बोझ बढ़ाने के लिए होती हैं। निजी स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को किताबों के लिए खास दुकान बताई जाती है। अभिभावकों को स्कूल द्वारा किताबों की जो लिस्ट दी जाती है उस लिस्ट पर बुक डिपो का नाम व पूरा पता होता है। इस दुकान के अलावा वे पुस्तकें किसी अन्य दुकान पर नहीं मिलती। अभिभावकों बेचारे क्या करें बच्चों की पढ़ाई का सवाल है, वहीं से किताबें खरीदनी पड़ती हैं। हर अभिभावकों अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। ऐसे में वे सरकारी स्कूलों से पहले निजी स्कूलों को तरजीह देते हैं। इन सब के बीच निजी स्कूलों ने अपनी दुकानदारी चला रखी हैं। अभिभावकों से किस तरह से अधिक से अधिक पैसे लिए जा सकते हैं, सत्र शुरू होने के साथ ही इसके उपाय ढूंढ निकालते है। मिशनरी एवं अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल इसमें कुछ ज्यादा ही आगे हैं। ये स्कूल प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं कि वे संबंधित दुकान से ही किताब खरीदें। लेकिन जिला प्रशासन इस ओर से आंखें बंद किए बैठा है और निजी स्कूल संचालकों द्वारा खुलेआम शिक्षा अधिकार कानून की धज्जियां उडाई जा रही हैं।

कैसे चलता है कमीशन का धंधा

प्रकाशन से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस कारोबार में भारी मुनाफा होता है। पुस्तकों पर 15 से 80 प्रतिशत तक मुनाफा होता है। प्रकाशक से वितरक व वितरक से थोक व्यवसायी तक मुनाफा एमआरपी के दो से दस प्रतिशत तक होता है। पुस्तक विक्रेता विद्यालय प्रबंधन के समक्ष मुनाफे में एक तय हिस्सा देने का आफर करता है। इसके अलावा प्रकाशक भी अलग सुविधा देते हैं। यह सुविधा किताबों की स्वीकृति मिलने पर दी जाती है।

हर साल बदल जाती हैं किताब

विद्यालय प्रबंधनों से बातचीत करने पर यह बात भी सामने भी आई कि हर साल किताब बदल जाती है। इसके पीछे कारण होता है प्रकाशक द्वारा अतिरिक्त कमीशन प्रबंधन को दिया जाना। हालांकि कई स्कूल तर्क देते हैं कि एडीशन बदलने से किताब बदलना मजबूरी है।
शिकायत मिलने पर होगी कार्रवाई

निजी स्कूल संचालक शिक्षा की आड़ में अपनी दुकानदारी चलाते हैं। यह सरासर गलत है। बुक डिपो संचालक के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन तय होता है और अपने कमीशन के लिए स्कूल संचालक एनसीईआरटी के पैटर्न  के अलावा भी अलग से सिलेबस लगवाते हैं। अगर कोई अभिभावक उनके पास इसकी शिकायत करता है तो वो उस स्कूल संचालक के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। बिना शिकायत के कार्रवाई नहीं की जा सकती।
साधू रोहिला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


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