बुधवार, 9 मई 2012

खतरे में गम्बुजिया, मलेरिया के खिलाफ कैसे बनेगा हथियार


 फिश हैचरी में भरा गंदा पानी।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले का स्वास्थ्य विभाग मलेरिया से लड़ने के लिए गम्बूजिया को हथियार बनाने की कवायद में लगा हुआ है। अपने इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग बड़े-बडे दावे कर रहा है। लेकिन वास्तविकता कुछ ओर ही बयां कर रही है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण विभाग की यह योजना इस वर्ष आगाज से पहले ही दम तोड़ चुकी है। सामान्य अस्पताल में बनाए गए प्रजनन केंद्र में गम्बूजिया खुद ही बेमौत मर रही हैं। गम्बूजिया का आशियाना बदहाल है और उस पर निरंतर खतरा मंडरा रहा है। गम्बूजिया की रक्षा के लिए फिश हैचरी के ऊपर लगाया गया जाल पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका है। इतना ही नहीं तालाब में स्वच्छ पानी भी नहीं है, जो गम्बूजिया के लिए काफी जरूरी होता है। जिसके दम पर सामान्य अस्पताल प्रशासन मलेरिया के खिलाफ अभियान छेड़कर लोगों का जीवन बचाने का दम भर रहा है अभी तक अस्पताल प्रशासन ने उसकी रक्षा के लिए ही कोई कदम नहीं उठाए हैं।
फिश हैचरी के ऊपर से टूटा पड़ा जाल।

मलेरिया के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग का हथियार बनने वाली गम्बुजिया को आज खुद ही अपनी रक्षा की आवश्यकता है। उपायुक्त के आदेशों के बावजूद भी अस्पताल प्रशासन ने गम्बुजिया के प्रजजन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। अस्पताल प्रशासन की उपेक्षा के कारण गम्बूजिया खुद ही गमगीन है। मलेरिया से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा गम्बूजिया मछली को तैयार किया गया था। इस योजना को सिरे चढ़ाने के मलेरिया विभाग के सामने फिश हैचरी बनाई गई और इस पर लाखों रुपए बहाए गए। गम्बूजिया को पालने के लिए सामान्य अस्पताल में 2005 में मलेरिया विभाग के सामने एक तालाब बनाया गया था। कौवे, बाज व अन्य पक्षी गम्बूजिया के दुश्मन माने जाते हैं और ये पलक झपकते ही गम्बूजिया का शिकार कर लेते हैं। इन दुश्मनों से गम्बूजिया को बचाने के लिए तालाब के ऊपर जाल लगा पूरे तालाब को इस जाल से कवर कर दिया गया था। कुछ समय तक यहां पर गम्बूजिया ठाठ से रही, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया गम्बूजिया के बुरे दिन शुरू होते गए। गम्बूजिया के सरवाइव करने के लिए सभी जरूरी सभी बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ने लगी। गम्बूजिया स्वच्छ पानी को तरस रही है, क्योंकि इसके तालाब का पानी दूषित होकर हरा हो चुका है। तालाब में  गंदगी भी गम्बूजिया के साथ हिलोरे मार रही है। गम्बुजिया को पक्षियों से बचाने के लिए तालाब के ऊपर लगाया गया जाल तहस-नहस हो चुका है। कटे-फटे जाल के महज चंद अंश ही बचे हैं। तालाब की सही कवरिंग नहीं होने से कौवे, बाज व दूसरे पक्षी गम्बूजिया पर जानलेवा हमला कर रहे हैं। इससे तालाब में गम्बूजिया की तादाद सिकुड़ती जा रही है। साफ है कि दूसरों का जीवन बचाने वाली गम्बूजिया इन दिनों स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी की भेट चढ़ रही है। मौत उसके ऊपर तांडव कर रही है और विभाग बेखबर है। यदि अस्पताल प्रशासन ऐसे ही आंखें मूंदे बैठा रहा तो जल्द ही मलेरिया के खात्म के लिए तैयार किए गए गम्बूजिया नामक इस हथियार का नामोनिशान मिट जाएगा।

मलेरिया से कैसे लड़ती है गम्बूजिया

मलेरिया पर लगाम के लिए गम्बूजिया काफी कारगर मानी जाती है। गंबुजियां एवं गप्पी इस प्रकार की मछलियां है जो हर प्रकार के वातावरण के अनुसार ढलकर मच्छर के लारवा को समाप्त करने में सक्षम है। गप्पी किस्म की मछली प्रतिदिन 80 से 100 मच्छर के लारवा को अपना भेजन बना लेती है। गंबुजियां मछली मच्छर के लारवा को खाने में गप्पी मछली से कहीं अधिक सक्षम है। यह मछली प्रतिदिन 300 मच्छर के लारवा को खा सकती है। यह मछलियां पूर्ण रूप से मांसाहांसी होती है। इन मछलियों की खास बात यह है कि जिस प्रकार से मच्छर पानी की ऊपरी सतह पर अपना लारवा देता है। उसी प्रकार यह मछली भी पानी की ऊपरी सतह पर अधिक एवं कम तापमान पर रहकर लरवा को खत्म कर सकती है। जिस प्रकार से मच्छर एक दिन में असंख्य लारवा पैदा करता है, उसी प्रकार ये विशेष मछलियां भी असंख्य प्रजनन करती है जो मच्छर के लारवा के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते है और उसी हिसाब से मच्छर के लारवा को नियंत्रित करती है।

गम्बूजिया के बचाव के लिए तालाब के ऊपर जाल काफी जरूरी होता है। इसके लिए स्वच्छ पानी की जरुरत नहीं होती। गम्बुजिया गंदे पानी में भी अपना जीवनचक्र चला सकती है। गम्बुजिया के रखरखाव व देखभाल के लिए मलेरिया विभाग के डिप्टी सिविल सर्जन डा. सुरेश चौहान को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

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