शुक्रवार, 1 जून 2012

बिना बस्ता, पढ़ाई हुई खस्ता

 आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं पहुंची पुस्तकें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
गर्मियों की छुट्टियां सिर पर हैं और अभी तक सरकारी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं। पुस्तकों के बिना विद्यार्थी किसी तरह की पढ़ाई कर पा रहे होंगे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी विद्यार्थियों तक पुस्तकें नहीं पहुंच पाने से प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर राजकीय स्कूलों में मुफ्त में बेहतर शिक्षा देने के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न करवाकर शिक्षा विभाग विद्यार्थियों के भविष्य के साथ सीधे तौर पर खिलवाड़ कर रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रदेशभर के 4476 सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी आज भी पुस्तकों का इंतजार कर रहे हैं। इससे अध्यापकों को भी सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट तैयार करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आखिर अध्यापक बिना पुस्तकों के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर उनकी रिपोर्ट तैयार कर पाएंगे।
प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर छह से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। मुफ्त शिक्षा के लिए कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों को किताबें, कॉपियां, अन्य स्टेशनरी, स्कूल वर्दी व दूसरी पाठन सामग्री मुफ्त देने के भी दावे किए जा रहे हैं। लेकिन प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। दरअसल 2012-13 का शैक्षणिक सत्र एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। लेकिन अभी तक स्कूलों में पाठयक्रम की पुस्तकें ही नहीं पहुची हैं। जबकि विभाग द्वारा पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक राजकीय स्कूलों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को दाखिले लेते समय ही  पाठयक्रम की सभी पुस्तकें निशुल्क मुहैया करवाई जाने का प्रावधान है। नियमों के अनुसार पाठयक्रम की पुस्तकें शैक्षणिक सत्र के शुभारम्भ पर ही विद्यार्थियों को मिलनी चाहिएं। लेकिन आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी अभी तक विद्यार्थियों को किताबें नहीं मिल पाई हैं। किताबें न मिलने से बच्चे व उनके अभिभावक दोनों निराश हैं। पाठयक्रम की पुस्तकें उपलब्ध न होने से विद्यार्थियों की व्यापक स्तर पर पढ़ाई प्रभावित हो रही है। पुस्तकों की स्थिति को देखते हुए सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा के सुधार के बड़े-बड़े दावों की पोल खुल रही है। पिछले शैक्षणिक सत्र में भी राजकीय स्कूलों में समय पर पुस्तकें नहीं पहुची थी। वर्तमान में भी शिक्षा विभाग ने इस दिशा में कोई सुधार नहीं किया।

नए-नए प्रयोगों से गिर रहा है शिक्षा का स्तर

शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा पर हर बार किए जा रहे नए-नए प्रयोगों से प्रदेश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। विभाग भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त में अच्छी शिक्षा देने के दावे कर रहा हो, लेकिन इसके परिणाम भी उल्टे ही निकल कर सामने आ रहे हैं। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी जब बच्चों को पुस्तकें नहीं मिलेंगी तो बच्चे किस तरह प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का मुकाबला कर पाएंगे। विभाग की तरफ से मुफ्त में पुस्तकें मिलने के लालच में अभिभावक भी बच्चों के लिए किताबें खरीदने से परहेज करते हैं। इस प्रकार विभाग की लापरवाही व अभिभावकों के लालच के फेर में आखिर नुकसान तो बच्चे को ही उठाना पड़ेगा।

कैसे तैयार करें सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट

शिक्षा विभाग द्वारा सत्त शिक्षा मूल्यांकन नियम के तहत कक्षा पहली से कक्षा आठवीं कक्षा तक किसी भी विद्यार्थियों को फेल न किए जाने का प्रावधान किया गया है। सत्त मूल्यांकन के तहत अध्यापक को हर रोज प्रत्येक बच्चे का मूल्यांकन कर उसकी रिपोर्ट तैयार करनी होती है। लेकिन बच्चों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न होने के कारण यह सवाल उठाना भी लाजमी है कि आखिर अध्यापक बिना पुस्तक के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर पाएंगे।
परीक्षा परिणाम पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभव
आधा शैक्षणिक सत्र बीत चुका है, लेकिन अभी तक बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। इससे बच्चे पढ़ाई के क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। जिसका परीक्षा परिणाम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बाद में विभागीय अधिकारियों द्वारा परीक्षा परिणाम खराब आने पर उल्टा अध्यापक को ही इसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
राजेश खर्ब, जिला प्रधान
हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ

प्रिंटिंग में देरी के कारण नहीं पहुंची पुस्तकें

प्रिंटिंग में हुई देरी के कारण उनके पास समय पर पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। जिस कारण अभी तक स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। इस बारे में विभागीय अधिकारियों को भी लिखित में सूचना दी जा चुकी है। ऊपर से पुस्तकें आते ही सभी स्कूलों में भिजवा दी जाएंगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकार
एसएसए, जींद

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