शनिवार, 30 जून 2012

....ये कैसा बालश्रम कानून

बालश्रम उन्मूलन दिवस पर विशेष

नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ 12 जून को विश्व स्तर पर बालश्रम उन्मूलन दिवस मनाया जा रहा है और सरकार द्वारा बाल श्रम के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ शहर में बालश्रम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। शहर में चाय, नाश्ता की दुकानों, होटलों और गैराज में छोटे-छोटे बच्चे मजदूरी करते नजर आ रहे हैं। शहर में सैंकड़ों दुकानों और होटलों पर छोटे बच्चे बाल मजदूरी करते देखे जा सकते हैं, लेकिन किसी अधिकारी की नजर इन पर नहीं पड़ रही है। पढ़ाई-लिखाई की उम्र में हाथों में औजार थामे ये बच्चे प्राथमिक स्तर की शिक्षा से भी दूर हैं। शहर में लगातार बढ़ती बाल मजदूरों की संख्या को देखकर लगता ही नहीं है कि जिले में बाल श्रम कानून लागू है। सरकारी अधिकारियों की उदासीनता के चलते देश का भविष्य गर्त में है।
बाल श्रम कानून के तहत कागजी तौर पर कई नियम कानून बनाए गए हैं, लेकिन हकीकत में नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। शहर में कई स्थानों पर छोटे बच्चे वाहनों को सुधारने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा होटलों और दुकानों में चाय-नाश्ता परोसने के काम में लगे हैं। बाल श्रम कानून का जिले में सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते व्यवसायी भी बच्चों को काम पर लगाने में डर का अनुभव नहीं कर रहे हैं। हालात यह है कि शहर में सैंकड़ों दुकानों पर छोटे-छोटे बच्चे बाल मजदूरी करते नजर आ रहे हैं। बाल मजदूरों को शिक्षित करने के लिए जहां सरकारी तौर पर किसी भी तरह के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, वहीं स्वयं सेवी संस्थाओं की ओर से भी इस ओर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। वैसे तो कई एनजीओ बालश्रम रोकने के लिए कागजी तौर पर लाखों रुपए के बजट से कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर संस्थाओं के प्रयास न के बराबर हैं।

शादी समारोह में जुल्म

शहर में छोटे बच्चों से शादी समारोह में बाल मजदूरी कराई जा रही है। बारात के दौरान बच्चों को उनके वजन से दोगुने लाइट के गमले पकड़ा दिए जाते हैं। तीन-चार घंटे तक बच्चे भारी भरकम गमले सिर पर रखकर चलते हैं, लेकिन किसी को इनकी स्थिति पर दया नहीं आती है। कई बार शराब के नशे में बाराती इन मासूम बच्चों के साथ मारपीट भी कर देते हैं। आर्थिक तंगी के शिकार बाल मजदूर मारपीट के बाद भी हर दिन काम पर निकल पड़ते हैं। इसके अलावा कई सरकारी कार्यक्रमों में भी छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा जा सकता है। लघु सचिवालय में भी हर दिन छोटे बच्चे कर्मचारियों को चाय बांटने का काम करते हैं, लेकिन किसी भी  अधिकारी की नजर शायद इस ओर नहीं जाती है।

सरकारी प्रयास विफल

 डीआरडीए के सामने रेहड़ी पर बर्तन साफ करता बच्चा।

सैनी रामलीला ग्राऊंड के सामने दुकान पर काम करता बच्चा।
छोटे बच्चों को मजदूरी करने से रोकने के लिए बनाए गए कायदे कानून संबंधित विभाग की उदासीनता के कारण विफल नजर आ रहे हैं। जिला मुख्यालय सहित तहसील स्तर पर होटलों और चाय-नाश्तों की दुकानों पर बड़ी संख्या में 12 साल से कम उम्र के बच्चे मजदूरी कर रहे हैं। सुबह से लेकर रात तक मासूम बच्चों से काम कराया जाता है और मेहनताने के रूप में इन्हें 30 से 40 रुपए मजदूरी दी जाती है। अप्रेवेशी बच्चों और बाल मजदूरों को शिक्षा से जोड़ने के लिए शिक्षा का अधिनियम कानून बनाया गया है, लेकिन सरकारी प्रयास इस दिशा में विफल नजर आ रहे हैं। जिले में लगातार बढ़ती बाल मजदूरों की संख्या जिले के आला अधिकारियों को शायद दिखाई नहीं दे रही है। यही कारण है कि संबंधित अधिकारियों द्वारा बालश्रम रोकने के लिए अभी तक कोई अभियान नहीं चलाया गया है।

कमेटी का किया गया है गठन

बाल मजदूरी को रोकने के लिए समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं। फिलहाल जिले में बाल श्रम को रोकने तथा बच्चों से मजदूरी करवाने वालों पर नकेल डालने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी दुकानों, ढाबों, फैक्टरियों, भट्ठों पर जाकर तीन दिवसीय सर्च अभियान चलाएगी। सर्च अभियान के दौरान दोषी पाए जाने वाले लोगों के चालान काटे जाएंगे।
अनिल शर्मा, लेबर इंस्पैक्टर

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