खाप चौधरियों ने किसानों के साथ की माथा-पच्ची


सर्व जातीय सर्व खाप की दूसरी बैठक संपन्न

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीटों व किसानों के बीच कई दशकों से चले आ रहे झगड़े में खाप पंचायत के हस्तक्षेप के बाद मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पेचीदा मसले को हल करने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का कोई गलत निर्णय न हो इसके लिए खाप के चौधरियों ने बारी-बारी से किसान खेत पाठशाला में पहुंच कर कीट मित्र किसानों के साथ माथा-पच्ची करनी शुरू कर दी है। क्योंकि यह कोई गांव का छोटा-मोटा विवाद नहीं है। यह झगड़ा तो उन दो पक्षों में है, जिसमें एक पक्ष में तर्क-वितर्क करने वाले किसान व दूसरे पक्ष में बेजुमान जीव हैं। कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर इस झगड़े को निपटाने उतरी खाप पंचायत की दूसरी बैठक मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की। बैठक में खरक पूनिया से पूनिया पंचग्रामी के प्रधान अमीर सिंह पूनिया, समैन-बिठमड़ा खाप के प्रतिनिधि व खाप प्रेस प्रवक्ता सूबे सिंह गिल तथा बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने भी विशेष तौर पर शिरकत की। सर्व जातीय सर्व खाप के प्रतिनिधियों ने किसान पाठशाला में पहुंचकर लगातार साढ़े चार घंटे इस मुद्दे पर गहन मंथन किया। इस दौरान मास्टर ट्रेनर किसानों ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष बेजुबान कीटों का पक्ष रखा।

पारा भी नहीं तोड़ पाया हौंसला

गर्मी के इस मौसम में जहां लोग 10 बजते ही घरों में दुबक जाते हैं, वहीं इतनी भयंकर गर्मी के बावजदू भी किसान खेतों में बैठकर कीटों की पढ़ाई करते नजर आए। 47 डिग्री का पारा भी किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाया। किसानों ने झुलसा देने वाली इस गर्मी में खेत में बैठकर खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ बहर की।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। किसानों ने पंचायत में पहुंचे खाप के पांचों प्रतिनिधियों के हाथों खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटवा दिया। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि पत्ते काट कर फसल को जितना नुकसान उन्होंने किया है उतना नुकसान कोई कीट फसल में नहीं कर सकता। दलाल ने कहा कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कौन-कौन से कीट थे फसल में मौजूद

खाप प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते डा. सुरेंद्र दलाल।

प्रयोग के लिए पत्तों को काटते पूनिया पंचग्रामी के प्रधान।
60 से 70 दिन की कपास की फसल में फिलहाल कौन-कौन से कीट मौजूद हैं इसकी पहचान करने के लिए किसानों के पांच ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के किसानों ने दस-दस पौधों पर मौजूद कीटों को बही-खाते में उतारा। इस दौरान किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चूरड़ा, डाकू बुगड़ा, क्राइसौपा, मकड़ी, मकड़ी, सलेटी भूँड, अंगीरा नामक कीट मौजूद थे। रणबीर मलिक ने बताया कि सफेद मक्खी, चूरड़ा व हरा तेला पत्तों से रस चुस कर तथा सलेटी भूँड पत्तों के किनारे खाकर अपना गुजारा करते हैं। डाकू बुगड़ा चूरड़ा का खून पी कर तथा क्राईसौपा शाकाहारी कीटों को खाकर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाता है और इस प्रक्रिया में मिलीबग का खत्मा हो जाता है। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों की जीवन यापन की प्रक्रिया में किसान को लाभ मिल जाता है।

क्या करें किसान?

खाप पंचायत के प्रतिनिधियों ने जब डा. सुरेंद्र दलाल से पूछा कि जब तक किसानों को कीटों का ज्ञान नहीं होता, तब तक किसानों को फसल में किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। डा. दलाल ने कहा कि अगर फसल में किसानों को किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नजर आए तो किसान जिंक, यूरिया व डीएपी का घोल तैयार कर उसका छिड़काव कर सकते हैं। डा. दलाल ने कहा कि आधा केजी जिंक, अढ़ाई केजी यूरिया व अढ़ाई केजी डीएपी का 100 केजी पानी में घोल तैयार कर फसल पर स्प्रे कर सकते हैं।
फोटो कैप्शन


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