रविवार, 22 जुलाई 2012

चौधरियों ने गहनता से किया ‘किसान-कीट’ मुकदमे का अध्ययन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवानों व किसानों को मजबूत करने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। लेकिन आज चंद स्वार्थी लोगों की मुनाफे की चाह में उनके इस नारे की चमक फीकी पड़ रही है। हम भगवान विष्णु को देश का पालनहार मानते हैं, लेकिन वास्तव में पालनहार का फर्ज तो किसान अदा करता है जो अपने पसीने से धरती को सींचता है और धरती का सीना चीर कर देश के लिए अन्न पैदा करता है। शरहद पर जो जवान खड़े हैं वो भी किसान के ही बेटे हैं। लेकिन बढ़ते रासायनिकों के प्रयोग के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है और देश का पालनहार अपना ही पालन-पोषण ढंग से नहीं कर पा रहा है। यह बात देशवाल खाप के प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान खाप पंचायत की तरफ से आए खाप प्रतिनिधियों ने कीट मित्र किसानों के साथ बैठकर कीटों व किसानों के इस मुकदमे का गहन अध्ययन किया। इस अवसर पर उनके साथ नंदगढ़ बारहा के प्रधान होशियार सिंह दलाल भी मौजूद थे। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कीटों को मारने की जरुरत नहीं है अगर जरुरत है तो कीटों को पहचानने की, कीटों को समझने की व कीटों को परखने की। सबसे पहले किसान को कीटों की पहचान होना जरुरी है। कीट की पहचान के साथ ही किसान को यह पता होना चाहिए कि कीट उसके खेत में क्या करते हैं। उन्होंने कहा कि खेत में पाई जाने वाली लेडी बिटल को स्कूली बच्चे फैल-पास के नाम से जानते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अगर चूरड़ा रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाता है तो माइटल कीट को खाकर फसल को नुकसान से बचाता भी है। उन्होंने बताया कि देश में 221 किस्म की पेस्टीसाइड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें से 53 पेस्टीसाइडों को कैंसर की जननी घोषित किया जा चुका है। किसान मनबीर रेढू ने बताया कि कातिल बुगड़ा पहले कीट का कत्ल करता है उसके बाद उसका खून चूसता है। दीदड़ बुगड़ा मात्र 30 सैकेंड में मिलीबग का काम तमाम कर देता है। सिंगु बुगड़े के दोनों कंधों पर सिंग होते हैं और यह भी कीट का खून चूसकर गुजारा करता है। बिंदू बुगड़े के कंधों पर बिंदू होते हैं और यह रक्त चूसकर अपनी वंशवृद्धि करता है। रेढू ने देसी कपास व घर पर लुढ़वा कर बोई गई बीटी के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। इसी दौरान निडानी के किसान जयभगवान ने किसानों को अंड़े में से सिंगु बुगड़े के बच्चे निकलते तथा डाकू बुगड़े के बच्चों द्वारा चूरड़े को खाते हुए दिखाया। ईगराह, अलेवा, खरकरामजी, ललीतखेड़ा, निडाना, इंटलकलां व निडानी से आए किसानों ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों का अलग-अलग बही खाता तैयार किया। जिसके अनुसार कपास की फसल 100 दिन की होने के बावजूद भी स्प्रे के प्रयोग की कोई जरुरत नजर नहीं आई। बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने बताया कि  कीटों की हड्डियां बाहर व मास अंदर होता है। कीटों में रक्त का संचार इंसान की तरह नलियों में नहीं खुले में होता है और कीट का खून हवा के संपर्क में आने के बाद भी नहीं जमता। अंडे से पर्याप्त भेजन न मिलने के कारण कीट का बच्चा विकसित होने के लिए बाहर आता है। पाठशाला में रुस्तम ऐ हिंद पहलवान दारा सिंह व किसान सुनील के के पिता के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर शोक प्रकट किया। इस अवसर पर गांव भैणी सुरजन (महम) से भी कुछ किसान कीट ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठशाला में पहुंचे।

नया प्रयोग किया शुरू

 खेत पाठशाला में बही खाता तैयार करते किसान।

कपास के पौधे से बोकियां तोड़ते खाप प्रतिनिधि।

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है। पौधे पर क्षमता से ज्यादा बोकी आ जाती हैं तो पौधा कुछ बोकियों को गिरा देता है। अगर शाकाहारी कीट कुछ बोकियों को खा लेता है तो पैदावार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस बात को पुख्ता करने के लिए तीन पौधों को प्रयोग के लिए चुना गया। इन पौधों पर नौ व दस बोकियां मिली। जिनमें से प्रत्येक पौधे से दो या तीन बोकियां खाप प्रतिनिधियों ने अपने हाथों से तोड़कर गिरा दी।



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