गुरुवार, 12 जुलाई 2012

खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पढ़ रहे कीटों की पढ़ाई

लड़ाई में दोनों पक्ष हो रहे हैं घायल 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है जब भी लड़ाइयां हुई हैं सिवाये विनाश के कुछ हाथ नहीं लगा है। इसलिए तो कहा जाता है कि लड़ाई का मुहं हमेशा काला ही होता है। अगर समय रहते किसानों व कीटों के बीच दशकों से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म नहीं किया गया तो इसके परिणाम ओर भी गंभीर होंगे। जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पुश्तों को भुगतना पड़ेगा। इस झगड़े को निपटाने का बीड़ा जो खाप पंचायतों ने उठाया है वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। लेकिन दशकों से चले आ रहे इस झगड़े को निपटाना इतना आसान काम नहीं है। यह एक बड़ा ही पेचीदा मसला है। इसलिए खाप पंचायत प्रतिनिधियों को इस विवाद को सुलझाने के लिए अपना फैसला देने से पहले इस विवाद की गहराई तक जाने तथा कीटों की भाषा सीखने की जरुरत पड़ेगी। ताकि पंचायत इस मसले को हल करते वक्त निष्पक्ष फैसला दे सकें। यह सुझाव कीट कमांडो किसान मनबीर रेढू ने मंगलवार को निडाना में खाप पंचायत में पहुंचे विभिन्न खाप पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रखा। खाप पंचायत की तीसरी बैठक में अखिल भारतीय जाट महासभा  व मान खाप के प्रधान ओमप्रकाश मान, पूनिया खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह पूनिया, सांगवान खाप प्रतिनिधि कटार सिंह सांगवान, जाटू खाप चौरासी के प्रतिनिधि राजेश घनघस तथा सतरोल खाप प्रतिनिधि धूप सिंह खर्ब विशेष तौर पर मौजूद थे। पंचायत में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों ने कीटों की भाषा सीखने के लिए नरमा के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ गहन मंथन किया।
 पाठशाला में बही-खाता तैयार करते किसान।

पौधों के पत्ते काटते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि आज लोगों में जो खून की कमी के मामले सामने आ रहे हैं उसका मुख्य कारण हमारा खान-पान का जहरीला होना है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। अगर यही परिस्थितियां रही तो हमारी आने वाली पीढि़यों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डा. दलाल ने कहा कि किसान कीटों को मारने के लिए जब कीटनाशकों का स्प्रे करता है तो उसका सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा ही कीटों पड़ता है, बाकी 99 प्रतिशत हिस्सा हवा, पानी व जमीन में घूल जाता है। कीटों के पत्ते खाने या रस चूसने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि फसल के उत्पादन बढ़ाने में तो कीटों की अहम भूमिका होती है। क्योंकि कीटों का परागरन में विशेष योगदान होता है। फसल के उत्पादन का मुख्य कारण खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होना है। डा. दलाल ने मासाहारी मक्खियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि दैत्य मक्खी उड़ते हुए कीटों को खाती है और अपने वजन से ज्यादा मास खाने वाली यह दुनिया की एकमात्र मक्खी है। हमारे किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से जानते हैं। तुलसा मक्खी चूरड़े, हरातेले को खाती है और जब इसे भोजन नहीं मिलता है तो यह खुद के वंश को भी खा जाती है। डायन मक्खी उंचाई पर बैठकर शिकार करती है तथा शिकार को लुंज कर उसका खून पीती है। सिरफोड़ मक्खी कीटों को उछाल-उछाल कर खाती है। इसके अलावा टिकड़ो मक्खी सुंडी पर अपने अंडे देती है तथा अंडों में से बच्चे निकलने के बाद टिकड़ो मक्खी के बच्चे सुंडी को अपना भोजन बनाते हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि इन 20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिंदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। सैनी ने राजपुरा भेंण का उदहारण देते हुए कहा कि इस गांव के अड्डे पर कीटनाशक बिक्री की चार दुकानें हैं, जिनका साला का चार करोड़ का कारोबार है और इसमें से अकेले तीन करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भेंण के किसान खरीदते हैं।

कैंसर के मरीजों पर जताई चिंता 

पाठशाला में पहुंचे किसानों ने बढ़ते कैंसर के मरीजों की संख्या पर चर्चा की। चाबरी निवासी सुरेश ने कहा कि उनके गांव में 8 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन चुके हैं। ललीतखेड़ा निवासी रामदेवा ने बताया उनके गांव में कैंसर के कारण एक परिवार की दो पीढि़यां खत्म हो चुकी हैं। लाडवा (हिसार) से आए एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 25, अलेवा निवासी जोगेंद्र ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के 10 लोग, निडानी में 9, ईगराह में 11 तथा सिवाहा निवासी एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 7 लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।

सवाल का निकाला तोड़

रणबीर मलिक ने गत सप्ताह पंचायत के सामने अपना सवाल रखा था कि पौधे रंग-बिरंगे फूलों से श्रंगार क्यों करते हैं। इन्हें श्रंगार की क्या आवश्यकता है। इस मंगलवार को हुई पंचायत में किसानों ने रणबीर मलिक के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पौधे कीटों को अपनी ओर आकृषित करने के लिए रंग-बिरंगे फूलों का श्रंगार करते हैं। अगर कीट फूल के पत्तों को खा लेते हैं तो उससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पत्तों का काम तो   केवल कीटों को आकर्षित करना है। कीट फसल में परागन की भूमिका निभाते हैं। इसलिए पौधे कीटों को आकर्षित करने के लिए फूलों का श्रंगार करते हैं।

जाट महासभा प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान

दुसरे खाप प्रतिनिधिओं  को भी लांगे पाठशाला में 

आज 25 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण कैंसर है और कैंसर का कारण पेस्टीसाइड का बढ़ता प्रयोग है। खाप पंचायत के सामने निडाना के कीट मित्र किसानों ने इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पंचायत को इस झगड़े की गहराई तक जाकर कीटों की भाषा सीखने की जरुरत है। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधि बारी-बारी किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर इनकी भाषा सीख रहे हैं। अगली बार वे भिवानी से 84 श्योराण खाप व तोशाम से फौगाट खाप सहित 6 खापों के प्रतिनिधियों को यहां लेकर आएंगे।
ओमप्रकाश मान, प्रधान
अखिल भारतीय जाट महासभा






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