सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौत के साये में सफर करने को मजबूर हैं नौनिहाल

बड़े हादसे को अंजाम दे सकती है जरा सी लापरवाही

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौनिहालों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। विगत जनवरी माह में अम्बाला में हुए भयंकर स्कूल बस हादसे से भी शायद जिला प्रशासन व स्कूल संचालकों ने कोई सबक नहीं लिया है। जिला प्रशासन, पुलिस व स्कूल संचालक इस हादसे को पूरी तरह से भूला चुके हैं। अम्बाला हादसे के कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन अब फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौट आया है। स्कूल बसों व आटो का वही खतरनाक मंजर फिर से शुरू हो गया है। स्कूली वाहनों में बच्चों को बेतरतीब व खचाखच भरा जाता है। आटो व रिक्शाओं में तो बच्चे लटक कर सफर करने पर मजबूर हैं। स्कूली बस व आटो चालक खुलेआम ट्रेफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और इसकी परवाह  न तो पुलिस प्रशासन को है और न ही स्कूल संचालकों को। लगता है जिला प्रशासन व स्कूल संचालक फिर से किसी बड़े हादसे के इंतजार में हैं।
ट्रैफिक पुलिस जिले में ट्रैफिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुरस्त करने की बड़ी-बड़ी ढींगें हांक रही है। लेकिन दूसरी ओर शहर की सड़कों पर हर रोज स्कूल वाहन चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रैफिक पुलिस, स्कूल संचालकों व वाहन चालकों की लापरवाही के चलते हर रोज हजारों बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। पुलिस प्रशासन की यह लापरवाही कभी भी अभिभावकों पर भारी पड़ सकती है। विगत 2 जनवरी को साहा (अम्बाला) में स्कूल वाहन हादसे में 13 बच्चों की मौत के बाद कुछ दिन प्रशासन चौकस रहा तथा स्कूलों ने भी  इस ओर गंभीरता दिखाई, सख्ती भी  हुई, व्यवस्था में कुछ सुधार भी होता दिखा। लेकिन फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौटता दिख रहा है। प्रशासन सो चुका है और स्कूल प्रबंधन ढीले पड़ गए हैं। ऐसे में बच्चों की जान की किसी को परवाह नहीं है। प्रशासन की आंखों के सामने फिर से स्कूली बच्चों की जान से खिलवाड़ एक बार फिर शुरू हो चुका है। ट्रैफिक पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन सड़कों पर स्कूली बसों, आटो और प्राइवेट वाहनों में सामान की तरह ठूंसे गए बच्चे खतरनाक तस्वीर को पेश करते हैं। स्कूल वाहन चालकों की लापरवाही को देखकर ऐसा लगता है जैसी जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर किसी हादसे के बाद ही खुलेगी। ‘आज समाज’ की टीम ने जब कई स्कूलों के वाहनों को चेक किया तो प्राइवेट स्कूलों की छुट्टी के समय अधिकांश स्कूली बसों के ड्राइवर नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए सड़कों पर दौड़ते नजर आए। सबसे गंभीर स्थिति आटो में सवार बच्चों की थी। सामान्यत तीन से चार की क्षमता वाले आटो में फिर से 10 से 15 बच्चों को भरकर ले जा रहे हैं। इन पर न तो ट्रेफिक पुलिस की नजर इन पर पड़ रही है और न ही प्रशासन इस संबंध में कोई कार्रवाई कर रहा है। स्कूल संचालक भी  वाहन चालकों की लापरवाही की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन हर रोज सड़कों पर स्कूली बसों, आॅटो और प्राइवेट वाहनों में बच्चों को बुरी तरह से सामान की तरह ठुंस-ठुंस कर भरकर ले जाते देखा जा सकता है। स्कूल वाहन चालकों की यह तस्वीर देखकर ऐसा लगता है जैसे जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर से किसी बड़े हादसे के बाद ही खुलेगी।

की जाएगी सख्त कार्रवाई

स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चों को आॅटो में भरकर ले जाता आटो चालक।
ट्रेफिक नियमों की अवहेलाना करने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा। ट्रेफिक पुलिस की टीम गठित कर पूरे शहर में अभियान चलाए जाएंगे। स्कूलों में जाकर वाहन चालकों को भी ट्रेफिक नियमों का पालन करने के लिए जागरुक किया जाएगा। पहले वाहन चालकों को अभियान चलाकर जागरुक किया जाएगा। अगर फिर भी वाहन चालक नियमों की अवहेलना करते पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सज्जन सिंह
ट्रेफिक इंचार्ज, जींद


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