रविवार, 22 जुलाई 2012

आईटी विलेज के इतिहास में जुड़ा एक ओर नया अध्याय

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ बिगुल बजाकर पंचायत ने शुरू की नई पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर के इतिहास में शनिवार को एक ओर अध्याय जुड़ गया। ग्राम पंचायत ने सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के नेतृत्व में कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति के विरोध में बिगुल बजा दिया। गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हुई इस महापंचायत में हरियाणा के अलावा दूसरे प्रदेशों से आए खाप चौधरियों ने खुलकर कन्या भ्रूण हत्या को विरोध किया। खाप चौधरी के अलावा महिला खाप प्रतिनिधि व अन्य सामाजिक संगठनों से आई महिला अधिकारी भी इस सामाजिक बुराई के विरोध में जमकर बरसी। बीबीपुर पंचायत ने महापंचायत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में यह लड़ाई शुरू कर 2004 में खाप पंचायतों द्वारा शुरू किये गए अभियान को गति प्रदान कर दी है। इस महापंचायत के फैसले को सुनने के लिए आस-पास के लोगों के अलावा दूर-दूर से शोधार्थी, शिक्षाविद व सामाजिक संगठनों के लोग भी आए हुए थे। इस महापंचायत के फैसले पर प्रदेश ही नहीं अपितू दूसरे प्रदेशों के लोगों की भी नजर टिकी हुई थी। लोगों को उम्मीद थी कि महापंचायत कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कोई नया फतवा जारी करेगी और बड़े-बडेÞ विवादों को चुटिकियों में सुलझाने वाली खाप पंचायतें शायद इस समस्या का भी कोई तोड़ निकाल कर दुनिया को नया रास्ता दिखाएंगी।

जागरुकता के अलावा नहीं नजर आया कोई रास्ता

खाप पंचायतों ने भले ही वर्षों पुराने विवादों का तोड़ ढुंढ़ कर दुनिया के सामने मिशाल कायम की हो, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए खाप चौधरियों को केवल जागरुकता के अलावा ओई कोई उपाय नहीं सुझा। लगातार पांच घंटे तक हुए गहन मंथन के बाद खाप प्रतिनिधि इसी फैसले पर पहुंचे कि अगर कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है तो इसके लिए उन्हें लोगों को जागरुक करना होगा। इसलिए महापंचायत में चौधरियों ने पूरे उत्तर भारत के लोगों को जागरुक करने का फैसला लिया और सभी खाप पंचायतों को अपने-अपने क्षेत्र में जागरुकता अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी।

पढ़े लिखे लोगों ने ही बोया कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई का बीज

महापंचायत में जितने भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे सभी के विचारों से एक बात तो साफ हो गई कि इस बुराई का बीज गांव के अनपढ़ लोगों ने नहीं बल्कि पढ़े लिखे शहरी बाबूओं ने बोया है। खाप प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि गांव के अनपढ़ लोगों को तो इस रास्तों का पता ही नहीं था। शहरी लोगों ने ही उन्हें यह रास्ता दिखाया है। इसलिए तो आज भी गांवों में एक-एक परिवार में कई-कई लड़कियां मिल जाती हैं, लेकिन शहर में 99 प्रतिशत परिवारों में एक लड़की के सिवाए दूसरी लड़की नहीं मिलती। इससे यह बात साफ है कि शहर के पढ़े लिखे लोग जिन्हें समाज की प्रगति की सीढ़ी कहा जाता है कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में आगे हैं।

लेडिज फर्स्ट

महापंचायत में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। महापंचायत की कार्रवाई राजकीय कॉलेज की लेक्चरार सुप्रिया ढांडा द्वारा ‘कोर्ट मै एक कसूता मुकदमा आया, एक सिपाही कुत्ते नै बांध कै लाया’ कविता के साथ शुरू हुई। इसके साथ ही गांव की महिलाएं हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार गीत गाती व नाचती हुई स्कूल में पहुंची। इसके बाद सरपंच सुनील जागलान की बहन रीतू जागलान द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियों ने ‘बेटी है अनमोल’ नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष किया। नाटक में लड़कियों ने ‘चाहे मुझको प्यार न देना चाहे मुझको दुलार ने देना, करना बस इतना काम मुझको गर्भ में न देना मार’ गीत प्रस्तुत कर पंचायत में मौजूद लोगों को भावुक कर दिया।

बेटी पर खर्च होता है प्रोपार्टी का केवल दस प्रतिशत हिस्सा

 महापंचायत में पहुंचने के बाद हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार नृत्य करती महिलाएं।

 कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में नाटक प्रस्तुत करती लड़कियां।

 पंचायत की कार्रवाई शुरू होने से पहले कविता प्रस्तुत करती सुप्रिया ढांडा।
महिला प्रधान डा. संतोष दहिया ने कहा कि उन्होंनें कन्या भ्रूण हत्या पर काफी शोध किया है और वे लोगों को जागरुक करने के लिए 35 हजार हस्ताक्षर भी करवा चुकी हैं। इस दौरान महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या करवाने का मुख्य कारण यह सामने आया है कि महिलाएं समझती हैं कि जो दुख उन्होंने सहन किए हैं, वे दुख उनकी बेटी का न सहन करना पड़े इसलिए वे कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कार्य में संलिप्त होती हैं। दहिया ने बताया कि आज महिलाएं घर व बाहर कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत महिलाएं अपनी जमीन अपने भाई के नाम कर देती हैं। लेकिन क्या कभी कोई ऐसा भाई देखा है जिसने अपनी जमीन अपनी बहन या दूसरे भाई के नाम की हो। दहिया ने कहा कि प्रत्येक बाप अपनी प्रोपार्टी का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही बेटी पर खर्च करता है।



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