गुरुवार, 5 जुलाई 2012

‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’


नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों व कीटों के बीच छिड़ी इस जंग ने खाप पंचायतों को भी असमंजश में डाल दिया है। बड़े-बडे विवादों को चुटकियों में निपटाने के लिए मशहूर हरियाणा की खाप पंचायतों के लिए यह मशला अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के किसानों व पंचायतों की नजर अब हरियाणा की खाप पंचायतों पर टिक गई हैं। 18 पंचायतों के बाद 19वीं पंचायत में खाप के प्रतिनिधि जो फैसला सुनाएंगे वह कोई मामूली नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक फैसला होगा और उस फैसले पर ही हमारी आने वाली पीढि़यों की जिंदगी की नींव रखी जाएगी। इस झगड़े को निटवाने तथा अपने वंश को बचाने के लिए खाप पंचायत की शरण में पहुंचे जीव प्रणियों को अब प्रदेश की खाप पंचायत से बड़ी उम्मीद है। मंगलवार को निडाना में हुई सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की बैठक में कीट मित्र किसानों ने खाप के चौधरियों के समक्ष आवाज उठाते हुए कहा कि ‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’। पंचायत के समक्ष उठे इस स्लोगन ने पंचायत में मौजूद चौधरियों के दिलों पिंघला कर रख दिया। जिसके बाद पंचायत के प्रतिनिधियों के लिए भी बिना अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किए वहां से निकला मुश्किल कर हो गया। आइए जाने क्या रही खाप प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया।

पंचायत के सामने पहली बार आया है ऐसा मामला

 नफे सिंह नैन
आज तक पंचायतों के सामने इस तरह का मामला नहीं आया है। पंचायत के सामने इस तरह का यह पहला मामला है।इस मुद्दे पर फैसला देने से पहले पंचायत को मामले को गं•ाीरता से लेते हुए इसकी तहत तक जाना होगा। किसी चौपाल या बैठक में बैठकर इस मुद्दे पर फैसला देना पंचायत के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस मामले पर फैसला देने से पहले पंचायत को किसानों के बीच पहुंचकर इस झगड़े की असलियत को जानना होगा। 
नफे सिंह नैन, प्रधान
बिनैन खाप


 

 

काफी पेचीदा है मामला

सूबे सिंह गिल।



यहां आने से पहले उन्हें इसका बिल्कुल ही अहसास नहीं था कि यह झगड़ा वास्तव में इतना पेचीदा है। जब कीट हमारी फसल में किसी तरह का नुकसान ही नहीं करते हैं तो फिर में हम उन्हें बिना वजह क्यों मारने पर तुले हुए हैं। अगर किसान कीटों की पहचान कर लें तो उन्हें कीटनाशकों के लिए बाजार में भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। 
सूबे सिंह गिल, प्रतिनिधि
समैन-बिठमड़ा खाप

  

 

क्यों पड़ रही है कीटों को मारने की जरुरत

 अमीर सिंह पूनिया
किसानों ने बताया कि कपास की फसल में 109 किस्म के शाकाहारी व मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। जिसमें 27 किस्म के शाकाहारी व 82 किस्म के मासाहारी कीट  शामिल हैं। जब मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से ज्यादा है तो फिर किसानों को इन कीटों को मारने की जरुरत क्यों पड़ती है तथा कीटों व किसानों का झगड़ा किस बात पर है। इन सवालों के जवाब लिए बिना इस मुद्दे पर किसी प्रकार का फैसला नहीं दिया जा सकता।
अमीर सिंह पूनिया
पंचग्रामी प्रधान, खरक पूनिया

झगड़े निपटाने के लिए मशहूर हैं हरियाणा की पंचायतें

 कुलदीप ढांडा
मनुष्य का जीवन कीटों पर ही निर्भर करता है। प्राकृतिक ने सभी जीवों के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं, लेकिन इंसान अपने स्वार्थ के वशभूत होकर प्राकृतिक के निमयों को तोड़ रहा है। अगर किसान इसी तरह रासायनिक पदार्थों के प्रयोग पर जुटे रहे तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे तथा फसल पैदा होनी बंद हो जाएगी। लखनऊ के नवाब का किस्सा सुनाते हुए ढांडा ने कहा कि हरियाणा की पंचायतें विवादों को निपटाने के लिए दूसरे प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इसलिए इस झगड़े का भी समाधान जरुर ढुंढ़ निकालेंगी।
कुलदीप ढांडा, प्रधान
बराह कलां बारहा
 

 

क्या है किसानों व कीटों की लड़ाई

खाप पंचायत के प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 
कीट कमांडो किसान रोशन ने बताया कि किसानों व कीटों की लड़ाई फसल की पैदावार को लेकर है। रोशन ने उदहारण देते हुए कहा कि पिछले वर्ष उसकी चार एकड़ में कपास के 8502 पौधे थे, प्रति एकड़ के हिसाब से उसके खेत में 2125 पौधे थे। 8502 पौधों से उसे 34 क्विंटल यानि 85 मण कपास की पैदावार मिली। प्रति एकड़ के हिसाब से उसे 21 से 22 मण की औसत पड़ी। रोशन ने कहा कि अगर किसान अपने खेत में सवा तीन बाई सवा तीन फुट पर कपास का पौधा लगाए तो एक एकड़ में 4100 से 4200 के करीब पौधे लगाए जा सकते हैं। जब उसे एक एकड़ में 2125 पौधों से 21 मण की औसत पड़ती है तो उसी एक एकड़ में दो गुणा पौधे लगने से पैदावार अपने आप ही बढ़ जाएगी। रोशन ने कहा कि पैदावार बढ़ाने के लिए कीटों को मारने की नहीं, बल्कि पौधों की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है।

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