इंद्र देव की बेरुखी से धरतीपुत्रों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें
महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझा रहे हैं किसान
नरेंद्र कुंडू
जींद। मानसून की बेरुखी ने धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। धान का सीजन सिर पर है, लेकिन बढ़ते पारे ने किसानों की सांसें फुला दी हैं। भीषण लू के थपेड़ों में हर रोज किसानों की उम्मीद दम तोड़ रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। इंद्र देवता की बेरुखी के कारण किसानों को महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझानी पड़ रही है। कृषि विभाग द्वारा इस बार एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का टारगेट निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी।
भीषण गर्मी से जहां जनजीवन प्रभावित हो गया है वहीं किसानों की फसल भी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। मानसून नहीं आने से खेती किसानी पूरी तरह बिखरने लगी है। इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। बरसात न होने के कारण जहां किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों की फसल भी खराब हो रही हैं। बारिश के लिए आसमान ताक रहे किसानों की धान की रोपाई अधर में लटकी हुई है। वहीं दलहन फसलों, ज्वार, बाजरे व कपास की फसलें भी बिना बारिश के चौपट हो रही हैं। भीषण गर्मी और उमस से परेशान लोगों को राहत की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। किसानों का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ की आधी फसल तो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक दो दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई संकट में पड़ जाएगी। किसान अपनी फसल को बचाने के लिए अब आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बार जिले में कृषि विभाग द्वारा एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। इसके अलावा जिले में इस बार किसानों द्वारा 60 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की गई है। किसानों का मानना है कि अगर मानसून में थोड़ी सी देरी ओर हुई तो धान की रोपाई का सीजन हाथ से निकल जाएगा और किसानों को मजबूरन दूसरी फसलों की बिजाई करनी पड़ेगी।
जींद। मानसून की बेरुखी ने धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। धान का सीजन सिर पर है, लेकिन बढ़ते पारे ने किसानों की सांसें फुला दी हैं। भीषण लू के थपेड़ों में हर रोज किसानों की उम्मीद दम तोड़ रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। इंद्र देवता की बेरुखी के कारण किसानों को महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझानी पड़ रही है। कृषि विभाग द्वारा इस बार एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का टारगेट निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी।
भीषण गर्मी से जहां जनजीवन प्रभावित हो गया है वहीं किसानों की फसल भी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। मानसून नहीं आने से खेती किसानी पूरी तरह बिखरने लगी है। इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। बरसात न होने के कारण जहां किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों की फसल भी खराब हो रही हैं। बारिश के लिए आसमान ताक रहे किसानों की धान की रोपाई अधर में लटकी हुई है। वहीं दलहन फसलों, ज्वार, बाजरे व कपास की फसलें भी बिना बारिश के चौपट हो रही हैं। भीषण गर्मी और उमस से परेशान लोगों को राहत की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। किसानों का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ की आधी फसल तो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक दो दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई संकट में पड़ जाएगी। किसान अपनी फसल को बचाने के लिए अब आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बार जिले में कृषि विभाग द्वारा एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। इसके अलावा जिले में इस बार किसानों द्वारा 60 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की गई है। किसानों का मानना है कि अगर मानसून में थोड़ी सी देरी ओर हुई तो धान की रोपाई का सीजन हाथ से निकल जाएगा और किसानों को मजबूरन दूसरी फसलों की बिजाई करनी पड़ेगी।
पानी के स्रोत सूखे
गर्मी के कारण पानी का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जिससे कई ट्यूबवेल भी सूखने लगे हैं। नदियों में भी पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। बढ़ते पारे के कारण जहां भू जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, वहीं बिना बारिश के तालाब भी खाली होने लगे हैं। पानी के स्त्रोत सूखने के कारण पशुधन पर भी संकट मंडरा रहा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार पेयजल संकट गहरा रहा है।
कब तक है बिजाई का सीजन
बिना बारिश के सूखा पड़ा धान का खेत। |
कृषि अधिकारियों के अनुसार 14 जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू हो जाता है। 14 जून से पहले धान की रोपाई का कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबंधित है। 14 जून के बाद पूरे जुलाई माह तक धान की रोपाई का कार्य चलता है। 20 जुलाई के बाद तो किसान केवल बासमती धान की रोपाई पर ही जोर देते हैं।
चिंतित न हों किसान
मानसून में देरी के कारण धान की रोपाई का कार्य थोड़ा लेट चल रहा है। लेकिन किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरुरत नहीं है। अगर मानसून थोड़ा लेट आता है तो फसल की पैदावार को कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी किसानों के पास धान की रोपाई के लिए काफी समय है। जुलाई के आखिरी सप्ताह तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। कपास, ज्वार, सब्जियों की फसलों में किसान हल्का-हल्का पानी लगाकर फसल को नुकसान से बचा सकते हैं।
अनिल नरवाल, सहायक पौध संरक्षण अधिकारी
कृषि विभाग, जींद
अनिल नरवाल, सहायक पौध संरक्षण अधिकारी
कृषि विभाग, जींद
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