स्टेज तक खींच लाया शौक और जनसमर्थन ने दिया हौंसला
दर्शकों की कमी के कारण स्टेज से मुहं मोडऩे लगे हैं रामलीला के कलाकार
नरेंद्र कुंडू
जींद। शौक उन्हें स्टेज तक खींच लाया और जनसमर्थन ने दिया हौंसला लेकिन अब दर्शकों की कमी के कारण रामलीला के कलाकार रामलीला से मुहं मोडऩे लगे हैं। रामलीला के मंच पर खड़े कलाकारों के लिए मैदान में मौजूद दर्शकों की भीड़ ही एनर्जी का काम करती थी। मैदान में दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कलाकार उतने ही अधिक हौंसले के साथ अपने किरदार का मंचन करते थे। मंचन के दौरान दर्शकों की तालियां व किलकारियां कलाकारों के लिए फास्ट रिलिफ का काम करती और कलाकार अपनी सारी थकान को भूलकर पूरी तरह से अपने अभिनय में खो जाते थे। दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कार्यक्रम भी उतना ही ज्यादा लंबा होता चला जाता था और कलाकारों को पता ही नहीं चलता था कि कब रात बीती व कब सुबह हुई। लेकिन आधुनिकता के दौर में बढ़ते मनोरंजन के साधनों ने कलाकारों से उनकी यह संजीवनी छीन ली। बदलती मानसिकता व बढ़ते मनोरंजन के साधनों के कारण रामलीला से लोगों का मन हटने लगा। दर्शकों ने रामलीला से ऐसा मन मोड़ा कि कलाकारों के हौंसले जवाब दे गए और उनका शौक खत्म होता चला गया। बदलती मानसिका के कारण कलाकारों के हुनर का जादू भी दर्शकों को अपनी तरफ नहीं खींच पाया। इस प्रकार दर्शकों की बेरूखी के कारण कई-कई वर्षों से रामलीला के मंचन में लगे कलाकार भी थक हार कर स्टेज छोड़ने पर मजबूर हो गए।
श्री सनातन धर्म आदर्श रामलीला (किला) में फिलहाल रावण का किरदार निभाने वाले विक्की परूथी का कहना है कि वे पिछले 12 वर्षों से रामलीला में कलाकार की भूमिका निभा रहे हैं। इस दौरान वे मेघनाथ, परशुराम का किरदार निभा चुके हैं। उनके पिता जी रामलीला में सेवा करते थे और उन्ही से प्रेरित होकर वे भी रामलीला में आए। जिस समय उन्होंने रामलीला के मंच से पर कदम रखा उस वक्त दर्शकों की संख्या काफी ज्यादा होती थी। दर्शकों की संख्या के कारण ही उनका उत्साह बढ़ता था लेकिन बदलते परिवेश के कारण दर्शकों ने भी रामलीला से मुहं मोडऩा शुरू कर दिया।
जींद। शौक उन्हें स्टेज तक खींच लाया और जनसमर्थन ने दिया हौंसला लेकिन अब दर्शकों की कमी के कारण रामलीला के कलाकार रामलीला से मुहं मोडऩे लगे हैं। रामलीला के मंच पर खड़े कलाकारों के लिए मैदान में मौजूद दर्शकों की भीड़ ही एनर्जी का काम करती थी। मैदान में दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कलाकार उतने ही अधिक हौंसले के साथ अपने किरदार का मंचन करते थे। मंचन के दौरान दर्शकों की तालियां व किलकारियां कलाकारों के लिए फास्ट रिलिफ का काम करती और कलाकार अपनी सारी थकान को भूलकर पूरी तरह से अपने अभिनय में खो जाते थे। दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कार्यक्रम भी उतना ही ज्यादा लंबा होता चला जाता था और कलाकारों को पता ही नहीं चलता था कि कब रात बीती व कब सुबह हुई। लेकिन आधुनिकता के दौर में बढ़ते मनोरंजन के साधनों ने कलाकारों से उनकी यह संजीवनी छीन ली। बदलती मानसिकता व बढ़ते मनोरंजन के साधनों के कारण रामलीला से लोगों का मन हटने लगा। दर्शकों ने रामलीला से ऐसा मन मोड़ा कि कलाकारों के हौंसले जवाब दे गए और उनका शौक खत्म होता चला गया। बदलती मानसिका के कारण कलाकारों के हुनर का जादू भी दर्शकों को अपनी तरफ नहीं खींच पाया। इस प्रकार दर्शकों की बेरूखी के कारण कई-कई वर्षों से रामलीला के मंचन में लगे कलाकार भी थक हार कर स्टेज छोड़ने पर मजबूर हो गए।
राम की वेशभूषा में सजा विनय अरोड़ा का फाइल फोटो।
विनय अरोड़ा ने बताया कि उसे 1985 में पहली बार रामलीला के मंच पर आने का अवसर मिला था। इस दौरान उसे रामलीला में सीता का किरदार निभाया था। विनय ने बताया कि उनके पिता जी अमृतलाल अरोड़ा रामलीला में राम का किरदार निभाते थे। अपने पिता जी के किरदार के कारण ही उनके अंदर भी रामलीला में मंचन का शोक पैदा हुआ। जिसके बाद उन्होंने लगातार 10-12 वर्षों तक रामलीला में राम, लक्ष्मण, सीता व अन्य कई प्रकार के किरदार किए। इसके अलावा उनकी फिल्मों में जाने की भी तीव्र इच्छा थी और जींद में रामलीला के अलावा दूसरा कोई प्लेटफार्म नहीं था। इसलिए भी उसने अपने हुनर को तरासने के लिए रामलीला को चूना था। लेकिन बाद में दर्शकों की विमुखता के कारण उनका मन भी इससे हटने लगा और उन्होंने 1998 के बाद से रामलीला के किरदार छोड़ कर स्टेज का कामकाज संभाल लिया।
नीरज शर्मा ने बताया कि वह शहर के कठियाना मौहल्ले में रामलीला के आयोजन में अहम भूमिका निभाता था। रामलीला के डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ रामलीला में राम, शत्रुघन, शंकर व अन्य छोटे किरदार निभाता था। जिस समय उन्होंने रामलीला के मंच पर पैर रखा था उस समय रामलीला देखने के लिए दर्शकों में काफी उत्साह होता था। दर्शकों के उत्साह के कारण ही उनका हौंसला बढ़ता था लेकिन बाद में रामलीला से दर्शकों का मन भरने के कारण उनका हौंसला भी जवाब दे गया।
राम की वेशभूषा में सजे कलाकार नीरज शर्मा का फाइल फोटो। |
कपिल मिनोचा ने बताया कि उसने रामलीला के मंच पर जौकर के किरदार से शुरूआत की। जब उन्होंने पहली बार स्टेज पर कदम रखा तो दर्शकों की संख्या को देखकर उनके पैर कांपने लगे और वे बीच में ही मंच छोड़कर भाग गए। बाद में मुकेश उर्फ मुकरी ने उनका हौंसला बढ़ा कर उसके अंदर बैठे डर को बाहर निकाला। इसके बाद तो उन्होंने लगभग 13 वर्षों तक रामलीला में राम, खेवट, भरत सहित कई किरदार निभाए तथा दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। लेकिन दर्शकों की कमी के कारण ही उन्होंने रामलीला में किरदार छोड़कर स्टेज को संभालने में लग गए।
सबसे मुश्किल होता है कॉमेडियन का किरदार
मंच पर हास्य कलाकार की भूमिका में मुकेश उर्फ मुकरी का फाइल फोटो। |
रामलीला के मंच पर लगभग चार दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन कर दर्शकों के दिलों पर अपने हुनर की छाप छोडऩे वाले मुकेश उर्फ मुकरी का कहना है कि किसी भी कार्यक्रम में सबसे मुश्किल काम हास्य कलाकार का होता है। क्योंकि हास्य कलाकार के अलावा और जो भी किरदार होते हैं उन सभी के डायलॉग या संवाद पहले से ही लिखे होते हैं। लेकिन हास्य कलाकार को अपने डायलॉग स्वयं स्टेज पर खड़े होकर दर्शकों के चेहर को देखकर तैयार करने होते हैं। एक हाजिर जवाब कलाकार ही हास्य कलाकार की भूमिका निभा सकता है। मुकेश ने बताया कि जिस दिन रामलीला मैदान में दर्शकों की ज्यादा भीड़ होती उस दिन उतनी ही अच्छी कॉमेडी होती थी। दर्शकों के चेहर को देखकर उनके अंदर जोश भर जाता था लेकिन दर्शकों की बेरूखी ने ही उनसे उनका यह हुनर उनसे छीन लिया।
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