निडाना में हो रही है एक नई क्रांति की शुरूआत : दलाल


कीट ज्ञान हासिल करने किसान आयोग के सचिव व जबलपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइसचांसलर भी पहुंचे निडाना

नरेंद्र कुंडू
जींद। चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के भूतपूर्व रजिस्ट्रार एवं हरियाणा किसान आयोग के सचिव डा. आर.एस. दलाल ने कहा कि निडाना के किसानों ने कीट ज्ञान की जो मशाल जलाई है यह देश, कृषि क्षेत्र, विज्ञान, शिक्षा क्षेत्र व मानव के लिए एक नई क्रांति है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ मानव हित में नहीं है, क्योंकि प्रकृति अपना हिसाब-किताब रखती है। डा. दलाल मंगलवार को किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए निडाना किसान पाठशाला में सर्व खाप पंचायत की बैठक में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। बैठक की अध्यक्षता सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत के प्रधान नफे सिंह नैन, सर्व खाप के प्रैस प्रवक्ता सूबे सिंह समैन, बूरा खाप के प्रधान हरिनारायण बूरा व जबलपुर यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व वाइसचांसलर डा. डी.पी. सिंह भी मौजूद थे। 
पाठशाल की शुरूआत कीट अवलोकन, निरीक्षण के साथ की गई। कीट निरीक्षण के बाद किसानों ने कीट बही 
 कीट बही खाता तैयार करते किसान। 
खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक ने कहा कि कपास की फसल में मौजूद काला बाणिया व लाल बाणिया कपास के अंदर मौजूद बीज का रस चूसते हैं लेकिन किसानों को फसल में इसका नुक्सान नजर नहीं आता। किसानों को इसके नुक्सान का पता उस वक्त लगता है जब किसान अपनी फसल को बेचने के लिए मंडी में पहुंच कर उसका वजन करवाता है। काले व लाल बाणिये द्वारा बीज का रस चूसने के कारण कपास का वजन कम हो जाता है। कीटनाशक के प्रयोग से मिलीबग नामात्र ही कंट्रोल होता है। जबकि इसके बच्चों पर कीटनाशक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्योंकि मिलीबग अपने अंड़े एक थैली में देता है और थैली के अंदर तक कीटनाशक पहुंच नहीं पाता। मलिक ने बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में कीटों की संख्या कम होने की बजाय ज्यादा बढ़ती है। क्योंकि इससे पौधों की सुगंध छोडऩे की शक्ति गड़बड़ा जाती है और विभिन्न किस्म के कीट भ्रमित होकर एक साथ फसल में दस्तक दे देते हैं। मनबीर रेढ़ू ने बताया कि कपास के जीवनचक्र के दौरान 13 किस्म के पर्णभक्षी कीट फसल में आते हैं। फसल की शुरूआत में सलेटी भूंड, टिड्डे आते हैं। इनके बाद पत्ता लपेट, सुरंगी कीड़ा, कुबड़ा व अर्धकुबड़ा कीड़ा, तम्बाकू वाली सूंडी, लाल बालों वाली बिहारण सूंड़ी आती हैं। इनके अलावा फसल में आने वाले फलहारी कीट अमरिकन व चितकबरी सूंडी, चैपर बिटल तो कभी-कभार ही नजर आते हैं। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि किसानों को खेत के ईद-गिर्द खड़ी खरपतवार को नष्ट नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस खरपतवार पर ही सबसे ज्यादा मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अकेले कांग्रेस घास पर ही मिलीबग को खाने वाले 36 किस्म के मासाहारी कीट मिल जाते हैं। 

खुद का ज्ञान पैदा करो सफलता तो झक मारती पीछे चली आएगी।

कीटनाशक रहित फसल का अवलोकन करते प्रतिनिधि।
किसान आयोग के सचिव डा. आर. एस. दलाल ने कहा कि आज स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में केवल किताबी पढ़ाई रह गई है। यहां ज्ञान के नाम पर कुछ भी नया नहीं सीखने को नहीं मिलता है। उन्होंने अमीर खान की थ्री इडियट्स फिल्म के डायलाग को दोहराते हुए कहा कि कामयाबी के पीछे मत दौड़ो काबिल बनो कामयाबी तो झक मारती पीछे चली आएगी। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे खुद का ज्ञान पैदाकर काबिल बनें सफलता तो उनके पीछे-पीछे झक मारती चली आएगी। डा. दलाल ने कहा कि वे कीट ज्ञान को बढ़ाने व लोगों को कीटों की पहचान के लिए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व चोराहों पर कीटों के होर्डिंग लगवाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों से सिफारिश करेंगे।

कीट ज्ञान में पी.एच.डी. वाले अधिकारियों को भी पछाड़ा

निडाना के किसानों ने जो मुहिम चलाई है वह काबिले तारीफ है। निडाना के किसानों ने देश के अन्य किसानों को रास्ता दिखाने का काम किया है। यहां के किसानों ने कीट ज्ञान में पी.एच.डी. करने वाले अधिकारियों को भी पीछे छोड़ दिया है। कीटों के बारे में जिनती जानकारी यहां के किसानों को है उतने कीटों की जानकारी तो उन्हें स्वयं भी नहीं है। यहां के किसान कीटों का बही खाता तैयार कर कीटों के पूरे आंकड़े तैयार कर कीटों पर एक प्रकार की पी.एच.डी. ही कर रहे हैं। 
डा. डी.पी. ङ्क्षसह, भूतपूर्व वाइसचांसलर 
जबलपुर यूनिवर्सिटी 
अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान। 







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में रखा कदम : धर्मपाल प्रजापत

किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना ईगराह का मनबीर रेढ़ू

सेवा भारती संस्था समाज के सहयोग से नि:स्वार्थ भाव से कार्य करती है : डॉ. सुरेंद्र पाल