शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

... ताकि कम हो सके थाली से जहर


निडाना के अलावा जिले के अन्य गांवों के किसानों ने भी कीटनाशक रहित खेती की तरफ बढ़ाए कदम

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित निडाना गांव की धरती से 4 साल पहले उठी कीट ज्ञान की चिंगारी अब क्रांति का रूप लेने लगी है। इस क्रांति का प्रभाव जिले के अन्य गांवों में भी देखने को मिल रहा है। निडाना की किसान खेत पाठशाला से कीट ज्ञान हासिल कर जिले के कई गांवों के किसान अब निडाना गांव के किसानों की तर्ज पर कीटनाशक रहित खेती की राह पकड़ चुके हैं और इससे किसानों को सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। किसान बिना किसी पेस्टीसाइड का प्रयोग किए फसल का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। मुहिम को मिल रहे अच्छे रिस्पांश से एक बात साफ हो रही है कि लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए निडाना के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का रंग अब जिले के अन्य किसानों पर भी चढऩे लगा है। अब यह किसान अपने-अपने क्षेत्र के किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरेंगे और दूसरे किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित करेंगे। 
अलेवा गांव के प्रगतिशील किसान जोगेंद्र ने बताया कि उसने एम.ए. तक पढ़ाई की है तथा एम.ए. के अलावा भिन्न-भिन्न कोर्स के 17 डिप्लोमे भी किए हुए है। जोगेंद्र ने बताया कि वह 1988 से कृषि के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है तथा वह अपने खेती-बाड़ी का पूरा लेखाजोखा रखता है। जोगेंद्र ने बतया कि पहले जब उसका परिवार सामूहिक था तो वे 28 एकड़ की खेती करते थे लेकिन अब 2 वर्षों से जमीन का बटवारा हो चुका है और वह अब सिर्फ 5 एकड़ की ही खेती करता है। जोगेंद्र ने खेतीबाड़ी का अपना लेखाजोखा दिखाते हुए बताया कि 1988 से लेकर अब तक उसके परिवार द्वारा पेस्टीसाइड पर खर्च लगभग 74 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं। जोगेंद्र ने बताया कि उसने निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला से जुड़कर कीट ज्ञान हासिल किया और अब उसे 32 कीटों की पहचान है। निडाना के किसानों से प्रभावित होकर इस वर्ष उसने बिना कीटनाशक खेती की है और उसके उत्पादन में कोई कमी नहीं हुई है। 
वरिष्ठ पशु चिकित्सक राजबीर चहल ने बताया कि वह नौकरी के साथ-साथ 30 एकड़ में खेती करता है। इस बार उसने 30 एकड़ में धान की फसल लगाई हुई है। चहल ने बताया कि पेस्टीसाइड पर हर वर्ष उसका एक लाख रुपए खर्च हो जाते थे लेकिन इस वर्ष उसने 25 एकड़ में एक छटांक भी पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं किया है। इस बार उसने सिर्फ ङ्क्षजक, यूरिया व डी.ए.पी. के मिश्रण का घोल तैयार कर छिड़काव किया है और उत्पादन भी अन्य किसानों के बराबर है। चहल ने कहा कि अगले वर्ष वह अन्य किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित करेंगे। 
राजपुरा भैण निवासी बलवान ने बताया कि वह ढाई एकड़ में कपास की खेती करता है और इसमें उसे हर वर्ष 5 हजार रुपए का खर्च आता था। बलवान ने बताया कि अकेले उसके गांव में हर वर्ष 3 करोड़ रुपए के कीटनाशकों का प्रयोग होता है। वह पिछले 4 वर्षों से किसान खेत पाठशाला से जुड़ा हुआ था लेकिन वह बिना पेस्टीसाइड की खेती के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाता था। इस बार उसने अपनी ढाई एकड़ की फसल में एक बूंद भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। 
फरमाना निवासी संजय ने बताया कि उसने पहली बार कपास की खेती की है। मोर पंजे के कारण उसकी एक एकड़ की फसल खराब हो गई थी लेकिन उसने ङ्क्षजक, यूरिया व डी.ए.पी. का घोल तैयार कर 4 बार इसका छिड़काव किया। इस बार उसकी कपास की फसल में प्रति पौधा 60 से 80 ङ्क्षटड्डे आए, जिनसे उसने 4 बार कपास की चुगवाई कर ली है और कम से कम एक बार ओर कपास की चुगवाई की जानी है।
किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते वरिष्ठ पशु चिकित्सक।
निडाना निवासी सुरेश तथा लाखनमाजरा निवासी नारायण ने बताया कि अमरूद का बाग है। पहले फलों को फ्रूट फ्लाई व अन्य बीमारियों से बचाने के लिए वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। इससे फल का टेस्ट भी बदल जाता और फल की गुणवता में भी कमी आती थी। सुरेश व नारायण ने बताया कि अब वह फलों पर किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं और बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। कीटों की पहचान होने के कारण अब उन्हें कीटों व बीमारी के बीच का अंतर पता चल गया है। इसके अलावा खरक रामजी निवासी रोशन, ईंटल कलां निवासी चत्तर ङ्क्षसह तथा रधाना निवासी जगङ्क्षमद्र ङ्क्षसह भी इन किसानों की तरफ बिना पेस्टीसाइड के अच्छा उत्पादन लिया है। 



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