अब सहज व सुहाना नहीं रहा रोडवेज का सफर
सिकुड़ रहा रोडवेज का बेड़ा
महज 150 बसों के सहारे साढ़ 13 लाख आबादी का सफर
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में आबादी बढ़ रही है लेकिन रोडवेज के जींद डिपो का बेड़ा तेजी से सिकुड़ता जा रहा है। डिपो में नई बसों की इंट्री इतनी रफ्तार से नहीं हो रही है, जितनी रफ्तार से कंडम बसें बेड़े से बाहर हो रही हैं। इस वक्त जींद डिपो के बेड़े में 150 बसें दौड़ रही हैं। इन बसों के दम पर ही जिले की साढ़े 13 लाख की आबादी का सफर तय हो रहा है। कभी जींद डिपो के बेड़े में 275 से ज्यादा बसें होती थी, जो इतिहास बन चुकी हैं।
अब जिले के लोगों के लिए रोडवेज का सफर सहज व सुहाना नहीं रह गया है। इसका कारण है कि रोडवेज के बेड़े में इतनी बसें नहीं बची हैं, जो यात्रियों के सफर को सुहाना व आरामदायक बना दें। जिस रफ्तार से जिले में आबादी बढ़ रही है उससे तेज रफ्तार से रोडवेज बेड़े से बसें कंडम होकर बाहर हो रही हैं। रोडवेज में सफर करना यात्रियों के जी का जंजाल बन जाता है। बसों में इतनी भीड़ होती है कि महिलाओं व बच्चों की जान सांसत में आ जाती है। इतना ही नही बसें ओवरलोड होकर चलती हैं। विद्यार्थी रोजाना बसों की छतों पर सफर करते देखे जा सकते हैं। इससे रोडवेज का सफर खास विद्यार्थियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसके लिए रोडवेज डिपो में बसों के टोटे को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले 20 सालों के दौरान जींद डिपो का बेड़ा तेजी से सिकुड़ता गया है। वर्ष 1986 में रोडवेज बेड़े में 275 बसें सड़कों पर दौड़ती थी। वर्ष 1995 में रोडवेज बेड़े से बसें कम होकर 250 रह गई। वर्ष 1995 तक बेड़े से करीबन 100 बसें बाहर हो चुकी थी। इसके बाद तो बेड़े से बसों के हटने का सिलसिला तेज रफ्तार पकड़ गया। वर्कशॉप कर्मचारियों की मानें तो हर माह 10-12 बसें कंडम होकर बेड़े से बाहर हो रही हैं। आलम यह है कि आज इस बेड़े में महज 150 बसें रह गई हैं। खास बात यह है कि इस दौरान जिले की आबादी तेजी से बढ़ी। आबादी में करीब-करीब दोगुनी बढ़ौतरी दर्ज की गई है। आज जिले की आबादी साढ़े 13 लाख तक पहुंच चुकी है। साफ है कि जितनी रफ्तार से जिले की आबादी बढ़ी, उससे ज्यादा तेजी से बसों की तादाद कम होती गई। लेकिन आबदी की रफ्तार के साथ नई बसें बेड़े में शामिल नहीं हुई। इसका परिणाम यह है कि आज रोडवेज का बेड़ा सिकुड़़कर 150 बसों पर आ टिका है। जिले के साढ़े 13 लाख लोगों को 150 बसें ही जैसे-जैसे ढोह रही हैं।
2 परिवहन मंत्रियों के बाद भी हाथ मलता रह गया डिपो
इसे जींद जिले के लोगों की भाग्य की विडंबना ही कहा जा सकता है कि 2-2 परिवहन मंत्री देने के बावजूद भी बेड़े में सुधार आने की बजाय घटता ही गया। वर्ष 2005 के दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और जिले के नरवाना हलके से रणदीप ङ्क्षसह सुरजेवाला विधायक बने। सुरजेवाला को परिवहन विभाग का मंत्री बनाया गया। उनके मंत्री बनने के बाद जिले के लोगों को उम्मीद बंधी थी कि शायद अब मंत्री जी कम से कम जींद डिपो की सुध जरूर लेंगे। जींद डिपो में पर्याप्त बसें शामिल होंगी और उनका मुश्किलों भरा सफर कुछ हद तक सुहाना होगा। लेकिन जिला वासियों की आस जल्द ही टूट गई, क्योंकि मंत्रीजी ने जींद डिपो की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई और उस वक्त भी जींद डिपो बसों के लिए तरसता रहा। इसके बाद जींद के विधायक मांगेराम गुप्ता मंत्री बने तो उनको भी परिवहन विभाग दिया गया। लोगों ने गुप्ता से भी उम्मीदें लगाई, जो पूरी नहीं हो पाई। इस दौरान भी जींद डिपो की स्थिति पहले वाली रही। डिपो में चंद नई बसें शामिल हुई होंगी, लेकिन कंडम बसें उससे ज्यादा बाहर हुई।
ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था हो रही है प्रभावित
रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को हो रही है। बसों की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों की सेवाएं बंद पड़ी हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्र से शहर में नौकरी के लिए आने वाले व्यक्तियों व पढ़ाई के लिए स्कूल व कालेजों में आने वाले विद्याॢथयों को सबसे ज्यादा दिक्कत उठानी पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने के कारण ज्यादातर लोग या तो अपना निजी वाहन लेकर शहर में आते हैं या फिर प्राइवेट वाहनों का सहारा लेते हैं।
छात्रों के लिए जानलेवा साबित हो रहा सफर
बस की छत पर सवाहर होकर सफर करते स्कूली बच्चों का फोटो।
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रोडवेज का सिकुड़ता बेड़ा छात्रों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। बसों के टोटे का खामियाजा सबसे ज्यादा इन्हीं को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि आम यात्री तो बसों का मोह छोड़कर मैक्सी कैबों का रूख कर लेते हैं। लेकिन छात्रों ने पास बनवाए होते हैं और निजी वाहनों में किराए की परेशानी से बचने के लिए वे हर हाल में रोडवेज बस के सफर को ही वरीयता देते हैं। बसों के अंदर जगह नहीं मिलने से छात्र छतों पर चढ़ जाते हैं। इसमें कई बार छात्र नीचे गिर जाते हैं और अपनी जान तक गंवा देते हैं।
शैड्यूल बनाकर सभी रूटों पर चलाई जा रही हैं बसें : टी.एम.
इस बारे में रोडवेज के यातायात प्रबंधक रघुबीर ङ्क्षसह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस वक्त जींद डिपो में 150 के लगभग बसें हैं, जो सड़कों पर दौड़ रही हैं। समय-समय पर बेड़े में नई बसें शामिल हो रही हैं। जींद डिपो को भी कोटे के अनुसार बसें मिल रही हैं। फिर भी यात्रियों की सुविधा के लिए सही शेडयूल बनाकर विभिन्न रूटों पर बसें चलाई जा रही हैं। रोडवेज का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को बसों की सुविधा मुहैया हो सके।
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