बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति असंभव : डी.सी.


राजपुरा भैण में किसानों ने मनाया किसान खेत दिवस

नरेंद्र कुंडू 
जींद। उपायुक्त डा. युद्धबीर सिंह ख्यालिया ने कहा कि फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी और मासाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों की जानकारी जुटाकर ही थाली को जहरमुक्त बनाया जा सकता है। बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति पाना असंभव है। जींद जिले के लगभग एक दर्जन गांवों के किसानों ने कीट ज्ञान की जो मशाल जलाई है आज उसका प्रकाश जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर भी पहुंचने लगा है। इसकी बदौलत ही आज पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसान भी जींद जिले में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए आ रहे हैं। उपायुक्त जींद जिले के राजपुरा भैण गांव में किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। 
उपायुक्त ने कहा कि जींद जिले में पिछले कई वर्षो से किसान खेत पाठशालाएं चलाई जा रही हैं। इन पाठशालाओं में किसानों ने अपने बलबुते शाकाहारी और मांसाहारी कीटों की खोज कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। शाकाहारी कीट पौधों की फूल-पतियां खा कर अपना जीवनचक्र चलाते हैं, तो मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर वंशवृद्धि करते हैं। प्रकृति ने जीवों के बीच संतुलन बनाने के लिए यह एक अजीब चक्र बनाया है। इसलिए हमें कभी भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। डी.सी. ने कहा कि किसानों की इस अद्वितीय खोज को पूरे जिला के किसानों को अपनाने के लिए कार्य योजना तैयार की है। इसके लिए कई गांवों में इस प्रकार की किसान खेत दिवसों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने किसानों की मांग पर गांवों में प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए किसानों को कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा और उसके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाने की बात कही। उप कृषि निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने उपायुक्त का स्वागत किया। अपनी तरह के इस किसान खेत दिवस के मौके पर उपायुक्त ने कृषि विभाग के ए.डी.ओ. डा. सुरेन्द्र दलाल के प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। किसान बलवान सिंह ने बताया कि उनके ये कीट कमांडो किसान भले ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हों, लेकिन इन्होंने खेत पाठशालाओं में 163 किस्म के मासाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इनमें 104 किस्म के परभक्षी, 21 परपेटिए, 6 किस्म के परअंडिए, 4 किस्म के परप्यूपिए, 2 किस्म के परजीवी, 21 किस्म की मकड़ी, 5 किस्म के रोगाणु हैं। इसके अलावा 43 किस्म के शाकाहारी कीट हैं। मासाहारी कीट फसल में प्राकृतिक तौर पर स्प्रे का काम करते हैं। मानव द्वारा निॢमत स्प्रे में मिलावट हो सकती है, जिस कारण उनके अच्छे परिणाम की संभावनाएं कम हो जाती हैं लेकिन प्रकृति के कीट स्प्रे के परिणामों शत प्रतिशत सही होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और जरूरत पूरी होने के बाद भिन्न-प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मासाहारी कीटों को बुलाते हैं। निडाना गांव की महिला किसान अंग्रेजो ने कार्यक्रम में अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने 4 साल से खेत में कोई स्प्रे नहीं किया है ,फिर भी अच्छी पैदावार ले रहे हैं। मिनी मलिक नामक महिला किसान ने कहा कि उसने 148 मांसाहारी तथा 43 शाकाहारी कीटों की पहचान की है। जब पौधे को जरूरत होती है तो वह कीटों की अपनी ओर स्वत: ही आकर्षित कर लेते हंै। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग करके हम प्राकृतिक सिस्टम से छेड़छाड करते हंै। पाठशाला में ईंटलकलों के कृष्ण, ललित खेड़ा की मनीषा, हसनपुर के रविन्द्र, निडानी के जयभगवान ने भी अपने विचार सांझा किए। इस अवसर पर कार्यक्रम में कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला  उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कुलदीप ढांडा भी मौजूद थे। 

2001 में कपास में हुए थे सबसे ज्यादा स्प्रे का प्रयोग

 कार्यक्रम के दौरान कीटों पर तैयार किए  गए गीत सुनाती महिलाएं।
ए.डी.ओ. डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में 2001 में अमेरीकन सुंडी  का प्रकोप हुआ था। जिस काबू करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों के 40-40 स्प्रे किए थे। डा. दलाल ने कहा कि कीटों को काबू करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो कीटों की पहचान की। उन्होंने कहा कि धान की एक बैल में लगभग 100 दाने होते हैं। इनका वजन लगभग अढ़ाई ग्राम होता है। अगर धान की फसल में तनाछेदक आती है और पूरे खेत में एक हजार बैल खराब होती हैं तो इनका वजन लगभग अढ़ाई किलो बनता है। किसान इस अढ़ाई किलो दानों को बचाने के लिए इससे ज्यादा खर्च कर देता है। डा. दलाल ने कहा कि हमें अगर अपनी आने वाली पीढिय़ों को बचाना है तो सबसे पहले इस जहर से छुटकारा दिलवाना होगा। 

90  प्रतिशत आमदनी विदेशों में जाता है। 

ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी ने बताया कि राजपुरा भैण गांव में कुल 1330 हैक्टेयर जमीन है। इसमें से 1205 हैक्टेयर में कास्तकार होती है। इसमें से 290 हैक्टेयर में कपास, 650 हैक्टेयर में धान, 240 हैक्टेयर में गन्ना तथा लगभग 50 हैक्टेयर में गवार की फसल की बिजाई की जाती है। डा. सैनी ने बताया कि अकेले राजपुरा भैण में 6 माह में कीटनाशकों पर कपास की फसल में 11 लाख, धान की फसल में 29 लाख, गन्ने की फसल में 13 लाख रुपए खर्च होते है। डा. सैनी ने बताया कि पूरे भारत में 90 लाख हैक्टेयर में कपास और 100 लाख हैक्टेयर में धान की खेती होती है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे देश में फसलों पर 
 कीटों के चित्र देखते किसान। 
कीटनाशकों पर कितना खर्च होता है। कीटनाशकों पर हम जितना खर्च करते हैं, उसका 90 प्रतिशत भाग विदेशों में जाता है। 

पंजाब के किसानो ने भी अर्जित किया कीट ज्ञान 


 कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। 
 कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। 
पंजाब के नवांशहर से डा. अशविंद्र, डा. नितिन के नेतृत्व में आए 25 किसानों ने बताया कि वे यहां के किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखने आए हैं, क्योंकि उनके क्षेत्र में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग होता है। जिस कारण कीटों पर कीट नाशकों का प्रभाव नहीं होतो है। कीटों की पहचान सीख कर वे अपने क्षेत्र को जहरमुक्त बनाना चाहते हैं। 



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