सोमवार, 20 मई 2013

......ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए


दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश दे गए कीट क्रांति के जन्मदाता

नरेंद्र कुंडू
जींद। 'जब तुम दुनिया में पैदा हुए जग हंसा तुम रोए, ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए'। ऐसी ही करणी कर कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल करके दुनिया से विदा हो गए। उनकी पूर्ति समाज भले ही न कर पाए लेकिन वो जिस काम के लिए दुनिया में आए थे उसे पूरा कर गए। डा. सुरेंद्र दलाल के जीवन का मकसद दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाकर दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश देना था और यह संदेश उन्होंने दुनिया को दे दिया। डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने सफल प्रयोगों से यह साबित करके दिखा दिया कि बिना कीटनाशकों के खेती हो सकती है और इससे उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसका प्रमाण उन्होंने दुनिया के सामने रख दिया। डा. दलाल के प्रयासों से वर्ष 2008 में निडाना के खेतों से शुरू हुई कीट क्रांति की इस मुहिम का असर अकेले जींद जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी नजर आने लगा है। इसी का परिणाम है कि दूसरे प्रदेशों से भी किसान यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आने लगे हैं। डा. दलाल की इस मुहिम की सबसे खास बात यह है कि आज तक जो महिलाएं खेतों में सिर्फ पुरुषों का हाथ बटाती थी आज वो महिलाएं कीटों की मास्टरनी बनकर फसलों में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों पर प्रयोग कर रही हैं। 
 डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में ललितखेड़ा में चल रही महिला किसान पाठशाला का फोटो।

खाप पंचायतों को दिखाई राह 

आनर किलिँग तथा तुगलकी फरमान सुनाने के नाम से बदनाम हो चुकी उत्तर भारत की खाप पंचायतों को डा. सुरेंद्र दलाल ने राह दिखाने का काम किया है। डा. दलाल ने वर्ष 2012 में दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाने के लिए खाप पंचायतों को किसानों की तरफ से फरियाद भेजी। किसानों की फरियाद को स्वीकार करने के बाद खाप प्रतिनिधियों को इस मसले पर फैसला करने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक निडाना गांव के खेतों में जाकर किसानों के बीच बैठकर कक्षाएं लगानी पड़ी थी। इन कक्षाओं के बाद इस विवाद का फैसला करने के लिए खाप प्रतिनिधियों द्वारा जनवरी 2013 माह में निडाना में एक बड़ी खाप पंचायत बुलाकर इस पर फैसला सुनाना था लेकिन दिसम्बर माह में जाट आरक्षण के बाद यह पंचायत नहीं हो पाई। इस विवाद का फैसला अभी भी खाप पंचायतों के पास है। खाप पंचायतें इस विवाद पर क्या फैसला सुनाती हैं यह भले ही अभी भविष्य के गर्भ में हो लेकिन खाप पंचायतों को इस मुहिम में शामिल कर डा. दलाल ने खाप पंचायतों को राह दिखाने का काम किया। 

2002 में हुई कृषि विभाग की फजिहत से लिया सबक

डा. सुरेंद्र दलाल कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2002 में कपास की फसल में अमेरीकन सूंडी के प्रकोप ने किसानों की नींद हराम कर दी थी। अमेरीकन सूंडी के प्रकोप से बचने के लिए किसानों से कपास की फसल में कीटनाशकों के 40-40 स्प्रे किए थे लेकिन इसके बाद भी उत्पादन बढऩे की बजाए कम हुआ। उत्पादन कम तथा लागत बढऩे के कारण किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। कृषि विभाग की इस असफलता पर इसी वर्ष एक इंगलिस न्यूज़ पेपर में कृषि विभाग के खिलाफ एक लेख प्रकाशित हुआ था और इस लेख से देश में कृषि विभाग की खूब फजिहत हुई थी। इस लेख से सबक लेकर डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने प्रयोग शुरू कर कीट ज्ञान की मशाल जलाई। इस मुहिम में डा. सुरेंद्र दलाल के गुरु बने जिले के रुपगढ़ गांव के राजेश नामक किसान। 

महिलाओं को सिखाया फसलों पर प्रयोग करना

वर्ष 2008 में निडाना में किसान खेत पाठशाला शुरू हुई और यहां किसानों ने कीट ज्ञान हासिल करना शुरू किया। इसके बाद 2010 में निडाना में पहली महिला किसान पाठशाला की शुरूआत की गई। इस पाठशाला के सफल आयोजन के बाद 2012 में ललितखेड़ा में दूसरी महिला किसान पाठशाला चलाई गई। इस तरह कीटनाशक रहित खेती की इस मुहिम से आज निडाना, निडानी, ललितखेड़ा गांवों की लगभग 65 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। जिन महिलाओं को पहले खेतों में पुरुषों का हाथ बटाते देखा जाता था आज वे महिलाएं कीट ज्ञान हासिल कर फसलों पर प्रयोग कर रही हैं। फसलों पर अपने सफल प्रयोगों के कारण ही कीटों की यह मास्टरनी पूरे वर्ष मीडिया की सुर्खियां बनी रही। 

ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी दिया कीटनाशक रहित खेती का संदेश  

कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल ने ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी कीटनाशक रहित खेती का संदेश दिया है। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा कीट साक्षरता केंद्र, अपना खेत अपनी पाठशाला, महिला खेत पाठशाला, प्रभात कीट पाठशाला ब्लाग पर कीटों के क्रियाकलापों तथा फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव की पूरी जानकारी दी जाती थी। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा लिखे गए इन ब्लागों को विदेशों में बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा जाता है। आज लाखों लोग इन ब्लागों से जानकारी हासिल कर रहे हैं। 

मुहिम को संभालना किसानों के लिए बना चुनौती 

डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीटनाशक रहित खेती की मुहिम को संभालना इस मुहिम से जुड़े कीट कमांडो किसानों के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल किसानों को एकजुट करना है। कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, महाबीर पूनिया, महिला किसान अंग्रेजो, मीना, गीता, राजवंती का कहना है कि डा. सुरेंद्र दलाल के चले जाने से उनकी इस मुहिम को बड़ा झटका लगा है। उनका यह अभियान नेतृत्व विहिन हो गया है। कीट कमांडो किसानों का कहना है कि डा. दलाल की इस मुहिम को संभालने के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि ये मुहिम अकेले उनकी नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति की है। इसलिए सभी को इसमें सहयोग करने की जरुरत है।  



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