गुरुवार, 20 जून 2013

मानव जाति पर कस रहा कैंसर का शिकंजा

कैंसर के कारण हर वर्ष मौत के मुंह में समा जाती हैं लाखों जिंदगियां

नरेंद्र कुंडू
जींद। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी का शिकंजा मानव पर लगातार कसता जा रहा है। कैंसर के मरीजों की बेहताशा वृद्धि के कारण सम्पूर्ण मानव जाति परेशान है। आज कैंसर ने एक गंभीर चुनौति का रूप धारण कर लिया है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग 6 करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा 2 लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजनिग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। अगर इसी संगठन की रिपोर्ट पर गौर फरमाया जाए तो कैंसर जैसी बीमारी का फैलने का मुख्य कारण सामने आता है किसानों द्वारा खाद्य पदार्थो यानि फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करना। डब्ल्यू.एच.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार खेतों में कीटनाशकों के स्प्रे नहीं करने वाले किसानों के मुकाबले कीटनाशकों के स्प्रे करने वाले किसानों में कैंसर होने की संभावना संख्यकीय तौर पर ज्यादा है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। फसलों में अत्याधिक पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से आज दूध, सब्जी, पानी तथा हर प्रकार के खाद्य पदार्थों पर जहर का प्रभाव बढ़ रहा है। इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काफी मात्रा में जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहा है। पेस्टीसाइड के अत्याधिक प्रयोग से केवल कैंसर ही नहीं बल्कि हार्ट अटैक, शुगर, लकवा, पौरुष हीनता, सैक्स समस्या जैसी न जाने कितनी बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में विभिन्न किस्म के पेस्टीसाइडों में से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशक हैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है। देश में पेस्टीसाइड ने सबसे पहले काजू बैलट में दस्तक दी और उसके बाद कॉटन बैलट में भी पैर जमा लिए। इसके बाद धीरे-धीरे धान व सब्जियों की फसलों और अब तो हर तरह की फसलों में इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और आज परिणाम हमारे सामने हैं। पंजाब में तो हालात और भी बुरे हैं। यहां बड़े-बड़े शहरों में ट्रेन के रूप में कैंसर एक्सप्रेस ही नहीं बल्कि टैक्सी स्टैंडों पर भी कैंसर के मरीजों को राजस्थान के बीकानेर में स्थित कैंसर के अस्पताल में लाने-लेजाने के लिए कैंसर टैक्सियों के नाम से गाडिय़ां आसानी से मिल जाती हैं। पंजाब में कैंसर के मरीजों की तादात बढऩे का मुख्य कारण है यहां पेस्टीसाइड का अत्याधिक इस्तेमाल। पंजाब के बाद अब हरियाणा भी कैंसर की चपेट में आ चुका है।फसलों से अधिक उत्पादन की चाह में किसान अंधाधुंध पेस्टीसाइडों का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन किसानों का यह लालच मानव जाति के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है। इसके लिए हम सारा दोष अकेले किसान को भी नहीं दे सकते, क्योंकि हमारी सरकार भी इसमें बराबर की जिम्मेदार है। इतने बड़े खतरे की दस्तक के बाद भी सरकार की नींद नहीं टूट रही है। इसी का परिणाम है कि आज स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष रूप से हमारा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। कैंसर जैसे बड़े खतरे को देखते हुए सबसे पहले कृषि विभाग को जागने की जरुरत है। इसके लिए कृषि विभाग को हरियाणा के जींद जिले के निडाना-निडानी के आस-पास के गांवों के किसानों से प्रेरणा लेने की जरुरत है। क्योंकि यहां के किसानों ने कीट ज्ञान की मशाल जलाकर किसानों को नई दिशा देने का काम किया है। यहां सैंकड़ों ऐसे किसान हैं, जो बिना कीटनाशकों के इस्तेमाल के अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लेकर लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के प्रयास में लगे हुए हैं। अगर इन किसानों के अनुभव को सही नजरिये से देखा जाए तो किसानों को कीटनाशकों की नहीं बल्कि कीट ज्ञान की जरुरत है। फसलों में पाए जाने वाले कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों को जानने की जरुरत है। क्योंकि कीट ज्ञान के हथियार के बिना इस पेस्टीसाइड के चक्रव्यूह को भेद पाना किसानों के लिए संभव नहीं है। 

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