शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

कीटों की मास्टरनियों के अनुभवों को किया कैमरे में कैद

दूरदर्शन की टीम ने ललितखेड़ा के खेतों में पहुंचकर 4 घंटों तक सांझा किए महिलाओं के अनुभव 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम महिलाओं के क्रियाकलापों की रिकर्डिंग करने के लिए वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। दूरदर्शन की टीम ने लगभग 4 घंटे तक खेतों में बैठकर महिलाओं के क्रियाकलापों को देखा और उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान टीम के सदस्यों ने महिलाओं द्वारा कीटों पर आधारित गीतों को भी शूट किया। टीम द्वारा शूट किए गए कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर को दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में सुबह के शैड्यूल में किया जाएगा।  
दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में लगभग 1 बजे ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। इस दौरान उनके साथ प्रसारण कार्यकारी अधिकारी विकास डबास तथा कैमरामैन डी.पी. सिंह भी थे। टीम के सदस्यों ने महिलाओं से उनके क्रियाकलापों पर विस्तार से बातचीत की। कीटों की मास्टरनियां राजवंती, अंग्रेजो, नीलम, सविता, नारो, शीला, मिनी मलिक, कमलेश ने बताया कि वह 5-5 के ग्रुप बनाकर फसल में मौजूद कीटों की पहचान करती हैं और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाती हैं। कीटों का आकार काफी छोटा होता है। इसलिए वह इनकी पहचान के लिए सुक्ष्मदर्शी लैंसों का सहारा लेती हैं। इसके बाद पौधों पर मौजूद कीटों की गिनती कर उनकी समीक्षा करती हैं। इस दौरान महिलाओं ने टीम के सदस्यों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई। कीटों को नियंत्रण करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी 2 किस्म के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट पौधों, पत्तों और फल-फूल को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उसी तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं। कीट न हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुशमन। कीट किसान को हानि या लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। इस प्रकार दोनों के जीवन यापन की इस प्रक्रिया में किसान को लाभ पहुंचता है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण उन्हें कीटों के नाम याद रखने में परेशानी होती थी। इसलिए उन्होंने इनके नाम याद रखने के लिए इनके क्रियाकलापों के आधार पर इनके आम बोलचाल के नाम रख लिए हैं। अंग्रेजो ने बताया कि जब वह अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते थे तो कपास की चुगाई के वक्त उन्हें एलर्जी, सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती थी लेकिन जब से उन्होंने कीटनाशकों का प्रयोग बंद किया है, तब से उन्हें कपास की चुगाई के दौरान एलर्जी व सिरदर्द की समस्या नहीं होती है और उनके उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। कीटनाशकों का इस्तेमाल छोड़कर उन्हें 2 फायदे हुए हैं। एक तो उनकी थाली से जहर कम हुआ है और दूसरा उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहने लग है। इससे बीमारियों पर खर्च होने वाला उनका पैसा बच रहा है। रधाना से आई महिला किसान कमला व सरोज ने बताया कि उनके गांव में इस वर्ष से महिलाओं की क्लाश शुरू हुई है। ललितखेड़ा की महिलाएं उनके गांव में पढ़ाने के लिए आती हैं। इस मुहिम से जुडऩे से पहले वह इस काम से बिल्कुल अनभिज्ञ थी लेकिन अब उन्हें कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है। कीट ज्ञान के बल पर ही इस बार वह जहरमुक्त खेती कर रही हैं। जहरमुक्त खेती करने से उनका परिवार बेहद खुश हैं। कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि चूल्हे-चौके के साथ-साथ अब वह भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी का भी पूरा कार्य संभालती हैं। 
 महिलाओं के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद करती दूरदर्शन की टीम।

कीटों पर की है गीतों की रचना 

कीटों की मास्टरनियों के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुकी ललितखेड़ा की महिलाओं की मुहिम यहीं खत्म नहीं होती। इन महिलाओं ने अपने मनोरंजन के साथ-साथ दूसरे किसानों को भी इस मुहिम की तरफ आकर्षित करने के लिए कीटों पर दर्जनभर से भी ज्यादा गीतों की रचना भी की है। महिलाओं की मुहिम की कवरेज के लिए ललितखेड़ा गांव पहुंची दूरदर्शन की टीम को महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत 'हे बिटल म्हारी मदद करो, हामनै तेरा एक सहारा है। 'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़कै हो' गीत भी सुनाए। दूरदर्शन की टीम ने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किए गए इन दोनों गीतों की रिकर्डिंग भी की।
ग्रुप में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियां।


कृषि दर्शन पर देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों को शूट करने के लिए आज जींद पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम

नरेंद्र कुंडू
जींद। ललितखेड़ा गांव की कीटों की मास्टरनियां अब दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम के माध्यम से देशभर के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। इस कार्यक्रम के दौरान कीटों की मास्टरनियां देशभर के किसानों को कीट ज्ञान हासिल कर खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने का संदेश देंगी। इसके लिए वीरवार को दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में ललितखेड़ा गांव में पहुंचेगी। ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंचकर टीम द्वारा कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों तथा खेती के तौर तरीकों को कैमरे में कैद किया जाएगा। इसके बाद शुक्रवार को टीम के सदस्य राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के कार्यों को भी कैमरे में शूट किया जाएगा।    
खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की वीरांगनाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर के किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम वीरवार को 2 दिन के लिए जींद के दौरे पर आ रही है। दूरदर्शन की टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के कीटाचार्य किसानों तथा कीटों की मास्टरियों के अनुभव को कैमरे में कैद किया जाएगा। इस दौरान महिलाओं द्वारा कीटों पर अधारित गीतों को भी शूट किया जाएगा। दिल्ली दूरदर्शन की टीम के प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना तथा प्रसारण कार्यकारी विकास डबास का कहना है कि आज किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण खेती में खर्च लगातार बढ़ रह है। इसलिए खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है तथा बेजुबान जीवों की हत्या भी हो रही है। खान-पान तथा दूषित होते वातावरण के कारण इंसान लगातार भिन्न-भिन्न प्रकार की लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ रहा है। देश के किसानों को इस बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ही उनकी टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के किसानों के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया जाएगा। विकास डबास का कहना है कि खेती के कार्यों में अभी तक महिलाओं का 70 प्रतिशत योगदान होता था लेकिन ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाकर चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती में अपना 100 प्रतिशत योगदान दर्ज करवाया है। इससे समाज के सामने महिलाओं का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है। महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में अपनी 100 प्रतिशत भागीदारी दर्ज करवाकर यह भी साबित कर दिया है कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। डबास ने बताया कि टीम द्वारा वीरवार को ललितखेड़ा गांव की महिलाओं तथा शुक्रवार को राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में आने वाले किसानों के अनुभवों को कैमरे में शूट किया जाएगा। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियों

15-15 मिनट के 2 कार्यक्रम होंगे शूट

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा वीरवार और शुक्रवार को महिलाओं तथा पुरुष किसानों के 15-15 मिनट के 2 अलग-अलग कार्यक्रम शूट किए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में इन कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाएगा। पहले कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर तथा दूसरे कार्यक्रम का प्रसारण 1 अक्तूबर को होगा। 


हमारी जीवनदायनी वस्तुएं हो चुकी हैं जहरीली

एक दिवसीय किसान संगोष्ठी में किसानों ने सांझा किए अपने अनुभव

नरेंद्र कुंडू
जींद।  दूरदर्शन हिसार के तकनीकि डिप्टी डायरैक्टर जिले सिंह जाखड़ ने कहा कि किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए 2 चीजें सबसे ज्यादा जरुरी हैं। एक स्वच्छ वातावरण और दूसरा शुद्ध भोजन लेकिन आज हमारी ये जीवनदायनी दोनों ही वस्तुएं जहरयुक्त हो चुकी हैं। जाखड़ सोमवार को कृषि विभाग तथा ईंटल कलां के किसानों द्वारा ईंटल कलां गांव में आयोजित एक दिवसीय विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, आल इंडिया रेडियो रोहतक से सम्पूर्ण, कृषि विभाग के बी.ई.ओ. जे.पी शर्मा, ए.डी.ओ. राजेंद्र, रमेश, डा. कमल सैनी, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसुम दलाल, अक्षत दलाल, आई.पी.एम. सैंटर फरीदाबाद से डा. एस.सी. शर्मा, डा. विनोद, बी.पी. सिंह जगपाल, सुनील कंडेला तथा ईंटल कलां के सरपंच महाबीर सिंह विशेष रूप से मौजूद थे। किसानों ने अतिथिगणों को पगड़ी पहनाकर स्वागत किया।
जाखड़ ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि इंसान को पैसे देने के बावजूद भी शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा है, यानि इंसान पैसे देकर भी जहर खाने पर मजबूर है। इसका मुख्य कारण जागरूकता के अभाव में किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना है। अधिक मात्रा में फसलों में कीटनाशकों के 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान तथा कार्यक्रम में मौजूद किसान।
प्रयोग से वातावरण और खाद्य वस्तुओं का जहरयुक्त होना पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है। डा. कमल सैनी और कीटाचार्य रणबीर मलिक ने कहा कि आज खेती में खर्च ज्यादा बढऩे के कारण किसान पैदावार से संतुष्ट नहीं है। जहां पैदावार बढ़ रही है, वहीं कीटनाशकों और उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण खर्च भी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि कीटों को लेकर किसान भ्रमित है। कीटों और बीमारियों के बीच के अंतर के बारे में किसान को जानकारी नहीं है। इसलिए सबसे पहले किसानों को इस भ्रम को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि आज के दिन कपास की फसल में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मरोडिय़े (लीपकरल) की है। पूरी दुनिया में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। यह एक वायरस है और सफेद मक्खी इसको फैलाने में वाहक का काम करती है। एक सफेद मक्खी भी इस बीमारी को पूरे खेत में फैला सकती है। इसका तो सिर्फ एक ही समाधान है और वह है पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक देना। पौधे को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने से पौधा इस बीमारी से लडऩे की क्षमता पैदा कर लेता है। मलिक ने कहा कि पौधों और कीड़ों का गहरा रिश्ता है। मनबीर रेढ़ू ने कीड़ों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कीड़े न तो हमारे मित्र हैं और न हमारे दुश्मन। कीड़े तो अपना जीवन यापन करने के लिए पौधों पर आते हैं और उनके जीवन यापन के इस चक्र में किसान का फायदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि अगर किसान को 20 कीटों की पहचान भी हो जाती है तो वह कभी भी फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेगा। इस अवसर पर विभिन्न गांवों से आए किसानों ने भी अपने अनुभव रखे। जिला कृषि उप-निदेशक ने किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर किसानों ने अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया। 

 मंच पर मौजूद अतिथिगण तथा सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिले सिंह जाखड़। 



शौक को बना लिया रोजगार

मूर्ति कला के दम पर प्रदेशभर में मनवाया प्रतिभा का लोहा

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकता के इस युग में एक तरफ जहां मूर्ति कला का कार्य दम तोड़ रहा है और बड़े-बड़े मूर्ति कलाकर मूर्ति निर्माण के अपने पुस्तैनी कार्य को छोड़कर अपनी इच्छा के विपरित काम करने को मजबूर हैं, वहीं गांव बुराडहर-बुआना निवासी मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर दूर-दूर तक अपना लोहा मनवा चुका है। अजमेर जांगड़ा मूर्ति कला के क्षेत्र में आज भी अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। पूर्वजों से विरासत में मिली मूर्ति निर्माण की कला को अजमेर जांगड़ा आज भी पूरे उत्साह के साथ संजोए हुए है। अपनी मूर्ति कला के बूते आज अजमेर जांगड़ा मूर्ति निर्माण का अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार का पालन-पौषण भी ठीक तरह सेकर रहा है। 26 वर्षीय अजमेर पिछले 10 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और अजमेर द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।  
गांव बुराडहर-बुआना में एक गरीब परिवार में जन्मे अजमेर जांगड़ा को बचपन से ही मूर्ति निर्माण का शौक था। अजमेर को यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। अजमेर के पड़दादा (दादा के पिता) कन्हैया राम मूर्ति निर्माण का कार्य करते थे। इसके बाद अजमेर के दादा और फिर पिता सतपाल जांगड़ा तथा अब खुद अजमेर मूर्ति निर्माण का कार्य कर अपने पूर्वजों से विरासत में मिली इस कला को आधुनिकता के इस युग में भी संजोए हुए है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से होता था लेकिन अब आधुनिकता के कारण मूर्तियों का निर्माण सीमैंट से होता है। अजमेर अपने चाचा रामपाल को अपना गुरु मानते हैं और उन्होंने अपने चाचा रामपाल से ही मूर्ति निर्माण का यह हुनर सीखा है। गांव के सरकारी स्कूल से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजमेर ने 2004 में मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया। 2004 से अब तक अजमेर कुरुक्षेत्र, जींद, पानीपत, करनाल, कैथल, फरीदाबाद, अंबाला, हिसार, सोनीपत सहित कई जिलों में अपनी मूर्ति कला का प्रदर्शन कर चुका है। इस अवधी के दौरान अजमेर ने हजारों मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें ज्यादातर मूर्तियां आराध्य देवों की हैं। धार्मिक मूर्तियों के अलावा अजमेर ने शहीदों की मूर्तियों का निर्माण भी किया है। इस तरह अजमेर द्वारा बनाई गई आराध्य देवों की मूर्तियां आज हरियाणा प्रदेश के विभिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं। अपनी कला के बूते फिलहाल अजमेर धार्मिक नगरी कुरुक्षेत्र के मंदिरों के लिए मूर्तियों का निर्माण कर रहा है। इस प्रकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार पेट भी भर रहा है।
 मूर्ति निर्माण का कार्य करता कलाकार अजमेर जांगड़ा।

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है।

सरकार को करनी चाहिए मदद

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि आज बढ़ती महंगाई तथा आधुनिकता के कारण मूर्तियों की कम होती मांग के कारण मूर्ति निर्माण का कार्य दम तोडऩे लगी है। इसके चलते कलाकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है। आर्थिक तंगी तथा सरकार द्वारा कलाकारों की कोई आर्थिक मदद नहीं दिए जाने के कारण मूर्ति कला दम तोड़ रही है। मूर्ति कलाकार आर्थिक परेशानी के चलते अपना पुस्तैनी कार्य छोडऩे को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि वे इस तरह के कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कलाकारों की आर्थिक मदद करे। ताकि लुप्त होती कला को बचाया जा सके।

मूर्ति कलाकार अजमेर द्वारा तैयार की जा रही मूर्तियां । 



रविवार, 8 सितंबर 2013

कीटनाशकों से होती है महज 7 प्रतिशत ही रिकवरी

अज्ञान के कारण किसान फसलों में कर रहा है अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि अगर कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसान फसलों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए अर्थार्त कीटों से फसल को होने वाले नुक्सान को रोकने के लिए जो कीटनाशकों का प्रयोग करता है, उससे महज 7 प्रतिशत की ही रिकवरी होती है लेकिन इस 7 प्रतिशत अधिक उत्पादन से जो आमदनी किसान को होती है, उससे ज्यादा पैसे तो किसान इन कीटनाशकों पर खर्च कर देता है। इस तरह बिना जानकारी के किसान को दोहरा नुक्सान होता है। एक तो किसान का पैसा बर्बाद होता है और दूसरा उसकी थाली में जहर का स्तर बढ़ रहा है। रणबीर मलिक शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी तथा मल्टीपलैक्स फर्टीलाइजर कंपनी के एस.आर. संजय कुमार भी मौजूद थे। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
रणबीर मलिक ने कहा कि किसान के पास न तो खुद का ज्ञान और न ही खुद के औजार हैं। इसलिए तो किसान और कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से यह अंतहीन जंग चली आ रही है। किसान तो दूसरों के ज्ञान और पराए हथियारों के दम पर ही किसान इस जंग को जीतने के सपने संजोए हुए है, जो कि संभव नहीं है। अगर यह लड़ाई इसी तरह चलती रही तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त मानव जाति एक गंभीर संकट में फंस कर खड़ी हो जाएगी और देश की बड़ी-बड़ी कीटनाशक कंपनियां तथा कृषि से सम्बंधित दूसरे विभाग भी इसके लिए किसानों को ही दोषी ठहराएंगे। मलिक ने कहा कि जब फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है तो फिर किसानों को कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने के लिए क्यों गुमराह किया जा रहा है। डा. कमल सैनी ने किसानों को बताया कि गांव राजपुरा भैण में किसान रामस्वरूप के जिस खेत में पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस फसल में शुरूआत से ही मरोडिय़ा (लीपकरल) का प्रकोप है और यह अब तक बरकरार है लेकिन इसके बावजूद कपास की यह फसल पूरी बढ़ौतरी कर रही है और इसमें टिंड्डे भी पूरे हैं। इस फसल में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 40-45 इस वक्त दर्ज की गई है। जबकि मरोडिय़ा के प्रकोप के चलते दूसरे जिले के किसानों ने तो कपास की खड़ी की खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुतवा दिया। इसका कारण यह है कि एक तो यहां के किसानों ने एक छटांक भी 
 एक-दूसरे के साथ अपने विचार सांझा करते किसान। 
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और दूसरा यह कि इन किसानों ने फसल को समय पर जिंक, डी.ए.पी. और यूरिया के घोल की पर्याप्त खुराक दी है। पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने के कारण मरोडिय़े से होने वाले नुक्सान की भरपाई पौधों ने इस घोल से पूर कर निरंतर अपनी वृद्धि की है और इसका परिणाम यह रहा कि यहां के किसानों को दूसरे जिलों के किसानों की तरह खेतों में खड़ी फसल को जोतने की नौबत नहीं आई। 




बुधवार, 4 सितंबर 2013

रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण धूमिल हो रही साधु-संतों की छवि

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत की धरती सदियों से संत-महात्माओं की धरती रही है। यहां लोग भगवान की तरह संत-महात्माओं की पूजा करते हैं। यहां पर संत-महात्माओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन समय के साथ-साथ हो रहे इस बदलवा में संत-महात्माओं का रुप भी बदलता जा रहा है। आए दिन संतों पर लगे रहे रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण संत-महात्माओं की छवि भी लगातार धूमिल होती जा रही है। हाल ही में आशाराम पर एक नाबालिग के साथ रेप के आरोप ने फिर से साधु-संतों का एक अलग रुप समाज के सामने पेश किया है। लोग जगह-जगह आशाराम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और पुतले फूंक रहे हैं। इससे यह बात साफ हो रहा है कि कभी संत-महात्माओं की धरा के नाम से जानी जाने वाली यह धरती अब धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रही है। जिन संत-महात्माओं को कभी यहां के लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे आज उन संत-महात्माओं को लोग हीन दृष्टि से देखने लगे हैं।

सबके लिए समान हो कानून

आम आदमी हो या कोई संत या नेता कानून सबके लिए एक समान होने चाहिएं। आशाराम पर रेप के आरोप लगने के बावजूद आशाराम को समन देकर बुलाने का कोई औचित्य नहीं बचता, क्योंकि कानून में कहीं भी रेप के आरोपी को समन देने जैसा कोई प्रावधान नहीं है। रेप के आरोपी को बिना समन दिए पुलिस सीधे
 एडवोकेट विनोद बंसल
गिरफ्तार कर सकती है। जैसा की मुम्बई और दिल्ली के रेप कांड में हुआ था। जब मुम्बई और दिल्ली रेप कांड के सभी आरोपियों को बिन समन दिए गिरफ्तार किया गया है तो फिर आशाराम को समन क्यों दिया गया। इससे जनता के बीच यह संदेश जाता है कि आम आदमी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए कानून अलग-अलग है। अगर पुलिस चाहती तो आशाराम को भी बिना समन दिए गिरफ्तार कर सकती थी। सरकार को चाहिए कि आशाराम के मामले की सुनवाई भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो, ताकि आशाराम को इस मामले के गवाहों की लाबिंग करने का वक्त नहीं मिले। अगर सुनवाई के दौरान आशाराम पर आरोप तय होते हैं तो आशाराम को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

आंख बंद कर साधु-संतों पर विश्वास न करे जनता 

सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से ले और आरोपियों के खिलाफ बिना देरी किए सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस तरह के मामलों को कम किया जा सके। लोगों को भी चाहिए कि वे इस तरह के मामलों पर गंभीरता से विचार-विमर्श करें। किसी भी साधु-संत पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करें।
 श्यामलाल गुप्ता का फोटो। 
क्योंकि भगवा वस्त्र धारण करने वाला हर व्यक्ति साधु-संत नहीं होता। साधु-संत के वेश में कोई पाखंडी भी हो सकता है। सरकार को चाहिए कि कानून व न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए आशाराम के मामले की निष्पक्ष व जल्द से जल्द जांच पूरी कर आगामी कार्रवाई करे। अगर आशाराम पर आरोप सिद्ध होते हैं तो सजा भी सख्त से सख्त दी जाए, ताकि दूसरा कोई व्यक्ति इस तरह का कदम उठाने की हिम्मत नहीं करे।
श्यामलाल गुप्ता, समाजसेवी

इस तरह के मामलों को गंभीरत से ले संत समाज

आरोप लगाना और आरोप तय होनों दोनों अलग बात हैं। आशाराम पर अभी आरोप लगा है, आरोप तय होना बाकी है। आरोप तय हुए बिना कुछ भी कहना ठीक नहीं है। पुलिस को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच करे, ताकि सच्चाई जनता के सामने आ सके। अगर आशाराम ने ऐसा घिनोना कार्य किया है तो इसके लिए उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, अगर आरोप झूठा है तो शिकायतकत्र्ता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। आए दिन साधु-संतों पर लग रहे ऐसे आरोपों को संत समाज को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर संत समाज ने इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढिय़ां संत समाज को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगी।
 स्वामी धर्मदेव का फोटो। 
स्वामी धर्मदेव
गुरुकुल कालवा 

दाल में कुछ न कुछ काला जरुर है

यह एक गंभीर विषय है। हां लेकिन एक बात साफ है कि दाल में कुछ काला जरुर है। क्योंकि आशाराम का समाज में एक ऊंचा स्थान है और इतने ऊंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाना आसान काम नहीं है। वैसे अभी मामले की जांच चल रही है। सच्चाई का पता तो जांच पूरी होने के बाद ही लग पाएगा। अगर आशाराम दोषी सिद्ध होते हैं तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। इस तरह के मामलों के लिए कहीं ना कहींअभिभावक भी दोषी हैं। अभिभावकों को भी धर्म में इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे अच्छे और बुरे की जानकारी ही नहीं रहे। धर्म की भी कुछ सीमाएं होती हैं। आंखें बंद कर धर्म के पथ पर चलना कहां की समझदारी है। भगवान को प्राप्त करने के लिए जरुरी नहीं कि सत्संग, तीर्थ या किसी गुरु के पास जाना जरुरी है। भगवान तो हर इंसान के अंदर होता है। बस जरुरत है उसे ढूंढऩे की। भगवान को प्राप्त करने के लिए कोई ढोंग करना जरुरी नहीं है।
 प्रो. वजीर सिंह का फोटो। 
प्रो. वजीर सिंह
राजकीय महिला कालेज, जींद

मकडिय़ों ने किया फसलों से हर किस्म के कीटों का सफाया

पाठशाला में किसानों ने की शाकाहारी कीटों पर चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। इस समय धान व कपास की फसल में आने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस समय फसलों में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। कपास की फसल में इस समय मकडिय़ों की औसत प्रति पौधा 4-5 दर्ज की जा रही है और मकडिय़ां हर प्रकार के कीटों को अपना भोजन बना लेती हैं। बशर्त यह की किसान द्वारा अपनी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन कर कीटों का बही खाता भी तैयार किया। पाठशाला में किसानों ने कपास की फसल में अब तक देखे गए शाकाहारी कीटों पर भी विस्तार से चर्चा की।
फसल में पाई जाने वाली मकडिय़ों का फोटो।
डा. कमल सैनी ने कहा कि मकड़ी किसी भी कीट को खाने से परहेज नहीं करती है। यह हर प्रकार के कीट को आसानी से अपना शिकार बना लेती है। इस समय धान व कपास की फसल में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। उन्होंने परीक्षण वाले खेत का जिक्र करते हुए कहा कि इस खेत में कपास के 4325 पौधे हैं और प्रति पौधे पर 4-5 मकडिय़ों की संख्या दर्ज की जा रही है। इस प्रकार कपास के इस खेत में 17 से 18 हजार मकडिय़ां हैं। एक मकड़ी एक समय में 10 से 12 तेलों, 18 से 20 सफेद मक्खी के बच्चों तथा 30 से 35 चूरड़ों का खात्मा कर देती है। इस प्रकार अगर एक खेत में इतनी ज्यादा संख्या में मकडिय़ां हैं तो किसानों को फसल में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं है। मकडिय़ां खुद ही किसान के खेत में कीटनाशक का काम कर देती हैं। डा. सैनी ने साप्ताहिक कीट समीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अगर साप्ताहिक कीट समीक्षा पर नजर डाली जाए तो अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नुक्सान पहुंचाने के आॢथक स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं। साप्ताहिक कीट समीक्षा के आधार पर सफेद मक्खी की औसत 1.7, हरा की तेला 0.8 और चूरड़े की संख्या 0.1 दर्ज की गई है। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने शाकाहारी कीटों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक कीटों की पहचान की है। इन 20 कीटों में से सिर्फ सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को ही यहां के किसान मेजर कीट मानते हैं, जो फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन जिन-जिन किसानों ने अपनी फसलों में
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है, उन फसलों में अभी तक इन कीटों का नुक्सान सामने नहीं आया है और जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां इन कीटों ने खूब हाहाकार मचाया हुआ है। इनके अलावा लाल बानिया, काला बानिया, माइट, मिलीबग व अल को यहां के किसान सूबेदार मेजर मानते हैं। लाल व काला बानिया कपास के बिनोले का रस चूसकर किसानों को नुक्सान पहुंचाता है लेकिन किसान को लाल व काले बानिये का नुक्सान कभी नजर नहीं आता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये का पक्का ग्राहक होता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये को अपना शिकार बनाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। इसी प्रकार बिटल अल तथा अंगीरा, जंगीरा और फंगीरा मिलीबग को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं।