बुधवार, 4 सितंबर 2013

रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण धूमिल हो रही साधु-संतों की छवि

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत की धरती सदियों से संत-महात्माओं की धरती रही है। यहां लोग भगवान की तरह संत-महात्माओं की पूजा करते हैं। यहां पर संत-महात्माओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन समय के साथ-साथ हो रहे इस बदलवा में संत-महात्माओं का रुप भी बदलता जा रहा है। आए दिन संतों पर लगे रहे रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण संत-महात्माओं की छवि भी लगातार धूमिल होती जा रही है। हाल ही में आशाराम पर एक नाबालिग के साथ रेप के आरोप ने फिर से साधु-संतों का एक अलग रुप समाज के सामने पेश किया है। लोग जगह-जगह आशाराम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और पुतले फूंक रहे हैं। इससे यह बात साफ हो रहा है कि कभी संत-महात्माओं की धरा के नाम से जानी जाने वाली यह धरती अब धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रही है। जिन संत-महात्माओं को कभी यहां के लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे आज उन संत-महात्माओं को लोग हीन दृष्टि से देखने लगे हैं।

सबके लिए समान हो कानून

आम आदमी हो या कोई संत या नेता कानून सबके लिए एक समान होने चाहिएं। आशाराम पर रेप के आरोप लगने के बावजूद आशाराम को समन देकर बुलाने का कोई औचित्य नहीं बचता, क्योंकि कानून में कहीं भी रेप के आरोपी को समन देने जैसा कोई प्रावधान नहीं है। रेप के आरोपी को बिना समन दिए पुलिस सीधे
 एडवोकेट विनोद बंसल
गिरफ्तार कर सकती है। जैसा की मुम्बई और दिल्ली के रेप कांड में हुआ था। जब मुम्बई और दिल्ली रेप कांड के सभी आरोपियों को बिन समन दिए गिरफ्तार किया गया है तो फिर आशाराम को समन क्यों दिया गया। इससे जनता के बीच यह संदेश जाता है कि आम आदमी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए कानून अलग-अलग है। अगर पुलिस चाहती तो आशाराम को भी बिना समन दिए गिरफ्तार कर सकती थी। सरकार को चाहिए कि आशाराम के मामले की सुनवाई भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो, ताकि आशाराम को इस मामले के गवाहों की लाबिंग करने का वक्त नहीं मिले। अगर सुनवाई के दौरान आशाराम पर आरोप तय होते हैं तो आशाराम को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

आंख बंद कर साधु-संतों पर विश्वास न करे जनता 

सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से ले और आरोपियों के खिलाफ बिना देरी किए सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस तरह के मामलों को कम किया जा सके। लोगों को भी चाहिए कि वे इस तरह के मामलों पर गंभीरता से विचार-विमर्श करें। किसी भी साधु-संत पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करें।
 श्यामलाल गुप्ता का फोटो। 
क्योंकि भगवा वस्त्र धारण करने वाला हर व्यक्ति साधु-संत नहीं होता। साधु-संत के वेश में कोई पाखंडी भी हो सकता है। सरकार को चाहिए कि कानून व न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए आशाराम के मामले की निष्पक्ष व जल्द से जल्द जांच पूरी कर आगामी कार्रवाई करे। अगर आशाराम पर आरोप सिद्ध होते हैं तो सजा भी सख्त से सख्त दी जाए, ताकि दूसरा कोई व्यक्ति इस तरह का कदम उठाने की हिम्मत नहीं करे।
श्यामलाल गुप्ता, समाजसेवी

इस तरह के मामलों को गंभीरत से ले संत समाज

आरोप लगाना और आरोप तय होनों दोनों अलग बात हैं। आशाराम पर अभी आरोप लगा है, आरोप तय होना बाकी है। आरोप तय हुए बिना कुछ भी कहना ठीक नहीं है। पुलिस को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच करे, ताकि सच्चाई जनता के सामने आ सके। अगर आशाराम ने ऐसा घिनोना कार्य किया है तो इसके लिए उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, अगर आरोप झूठा है तो शिकायतकत्र्ता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। आए दिन साधु-संतों पर लग रहे ऐसे आरोपों को संत समाज को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर संत समाज ने इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढिय़ां संत समाज को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगी।
 स्वामी धर्मदेव का फोटो। 
स्वामी धर्मदेव
गुरुकुल कालवा 

दाल में कुछ न कुछ काला जरुर है

यह एक गंभीर विषय है। हां लेकिन एक बात साफ है कि दाल में कुछ काला जरुर है। क्योंकि आशाराम का समाज में एक ऊंचा स्थान है और इतने ऊंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाना आसान काम नहीं है। वैसे अभी मामले की जांच चल रही है। सच्चाई का पता तो जांच पूरी होने के बाद ही लग पाएगा। अगर आशाराम दोषी सिद्ध होते हैं तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। इस तरह के मामलों के लिए कहीं ना कहींअभिभावक भी दोषी हैं। अभिभावकों को भी धर्म में इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे अच्छे और बुरे की जानकारी ही नहीं रहे। धर्म की भी कुछ सीमाएं होती हैं। आंखें बंद कर धर्म के पथ पर चलना कहां की समझदारी है। भगवान को प्राप्त करने के लिए जरुरी नहीं कि सत्संग, तीर्थ या किसी गुरु के पास जाना जरुरी है। भगवान तो हर इंसान के अंदर होता है। बस जरुरत है उसे ढूंढऩे की। भगवान को प्राप्त करने के लिए कोई ढोंग करना जरुरी नहीं है।
 प्रो. वजीर सिंह का फोटो। 
प्रो. वजीर सिंह
राजकीय महिला कालेज, जींद

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