रविवार, 5 जनवरी 2014

क्या हरियाणा में आया राम, गया राम से बनेगी सरकार?

हरियाणा में अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं कोई भी राजनैतिक दल 
थ्री इडियट फिल्म के 'ऑल इज वैल' के फार्मूले को अपना रही है कांग्रेस पार्टी

नरेंद्र कुंडू
जींद। साल 2014 से चुनावी मौसम शुरू होने वाला है। इसी को मद्देनजर रखते हुए सभी राजनैतिक दलों ने अपने लंगर-लंगोट कसने शुरू कर दिए हैं। हरियाणा में पूरी तरह से राजनीति माहौल गर्मा चुका है। सभी राजनैतिक दलों ने अपने-अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए अपने घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में घोषित हुए दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ व मिजोरण के चुनाव परिणाम ने प्रदेश की राजनीति में उफान पैदा कर दिया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ चुनाव में भाजपा को विजयश्री मिलने तथा दिल्ली में सबसे ज्यादा सीटें भाजपा के पक्ष में जाने के बाद कांग्रेस पार्टी हिलोरे खाने लगी है। इसी के चलते अब दिल्ली में बैठे कांग्रेस के सिपेसलहारों ने आगामी चुनाव में अपनी लाज बचाने के लिए पार्टी की कार्यप्रणाली पर मंथन भी शुरू कर दिया है। वहीं हाल ही में कांग्रेस पार्टी की इस बड़ी हार ने हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा के माथे पर भी चिंता की लकीरें पैदा कर दी। क्योंकि इससे एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रदेश में कांग्रेस विरोधी लहर पैदा होने का भय सता रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के ही उन नेताओं का डर है जो सत्ता में काबिज होने के दौरान भी उनके विरोध में खड़े हैं। फिलहाल हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस 2 धड़ों में बटी हुई है। सांसद बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा, ईश्वर सिंह तथा राव इंद्रजीत सिंह सहित कई अन्य नेताओं का एक बड़ा धड़ा आज मुख्यमंत्री के समक्ष बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करना एक छेद वाले मटके को पानी से भरने के बराबर है। क्योंकि पड़ोसी राज्यों में जहां कांग्रेस विरोधी लहर चल रही है तो हरियाणा में पार्टी के अंदर ही बगावत के सुर फूट रहे हैं। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अब एक बाजिगर की तरह हारी हुई बाजी को जीतने के लिए अपने पैंतरे फैंकने शुरू कर दिए हैं। मुख्यमंत्री ने पहला पैंतरा 10 नवम्बर को गोहाना में आयोजित शक्ति रैली में कर्मचारियों को लुभाने के लिए कर्मचारी हित की घोषणाओं की झड़ी लगाकर फैंका है, तो दूसरा पैंतरा केंद्र सरकार से केंद्र में जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश करवाकर फैंक दिया है लेकिन यहां सरकार के दोनों ही पैंतरे उल्ट पड़ते नजर आ रहे हैं। जाटों को केंद्र में आरक्षण की सिफारिश की घोषणा के बाद से मुख्यमंत्री पर एक जाति विशेष का मुख्यमंत्री का आरोप लगाते हुए प्रदेश के भिन्न-भिन्न पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया है, तो दूसरी तरफ 22 दिसम्बर को रोहतक में आयोजित हल्ला बोल रैली में प्रदेश के कर्मचारी वर्ग ने भी सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का बिगुल फूंकते हुए आगामी चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतने की चेतावनी दे डाली है। इस प्रकार हरियाणा में लगातार कांग्रेस के विपक्ष में तैयार हो रहे इस माहौल से कांग्रेस सरकार की नैया डांवाडोल होती नजर आ रही है लेकिन कांग्रेस सरकार इससे सबक लेने की बजाए थ्री इडियट फिल्म के मशहूर डॉयलाग ऑल 'इज वैल' के फार्मूले को अपनाकर अपने दिल को तसल्ली देने में जुटी है कि प्रदेश में तीसरी बार भी कांग्रेस की सरकार बनेगी। वहीं प्रदेश के दूसरे राजनैतिक दलों के लिए भी सत्ता की कुर्सी पर काबिज होना टेडी खीर साबित होगी। क्योंकि भाजपा पार्टी को हरियाणा में दिग्गज नेताओं की कमी खल रही है तो हजकां प्रदेश की जनता का विश्वास  जीत कर अभी तक अपना जनाधार नहीं बना पाई है। इसी तरह इनैलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला को जेबीटी घोटाले में सजा होने के बाद इनैलो अभी तक अपना अगला सेनापति ही तय नहीं कर पा रही है। वहीं दिल्ली में मिले भारी जनसमर्थन से आसमान में उड़ रही आप पार्टी ने अब हरियाणा में भी चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है लेकिन हरियाणा में आप का यह सपना सच होते इसलिए नजर नहीं आ रहा है क्योंकि दिल्ली में आप को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने में शिक्षित व जागरूक तबके का बड़ा हाथ है लेकिन हरियाणा में शहरी की बजाए ग्रामीण लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां प्रचार-प्रसार के अभाव के कारण शिक्षा व जागरूकता का काफी अभाव है। इस प्रकार हरियाणा में बन रहे समीकरण से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए या तो हरियाणा में इनैलो, भाजपा व हजकां महागठबंध कर सकती हैं या फिर भाजपा हजकां का साथ छोड़कर इनैलो के साथ आएगी, क्योंकि यहां हजकां की बजाए इनैलो पार्टी काफी ज्यादा मजबूत है। इसके अलावा तीसरा रास्ता यह भी निकल सकता है कि आया राम, गया राम (खरीद-फरोख्त) से कांग्रेस तीसरी बार सत्ता में काबिज होने में कामयाब हो सकती है। 


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