खाद्य एवं पूर्ति विभाग का नया फरमान
अब बिना आई.डी. के नहीं मिलेगा राशन
अफसरशाही के नियमों के जाल में फंसी सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना
नरेंद्र कुंडू जींद। गरीब लोगों को भरपेट दाल-रोटी देने की सरकार की योजना अफसरशाही के नियमों के जाल में फंसकर रह गई है। खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा राशन वितरण करने के लिए आए दिन नए-नए फरमान जारी किए जा रहे हैं। राशन वितरण के लिए खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा हर रोज निर्धारित किए जा रहे नए-नए नियमों के कारण राशन वितरण की प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। इसके चलते विभाग के कर्मचारियों से लेकर राशन लेने वाले पात्र लोगों तक को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ लेने के लिए एक सप्ताह पहले विभाग द्वारा जहां परिवार के सभी सदस्यों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य किया गया था, वहीं अब विभाग ने इस नियम में फेरबदल करते हुए परिवार के सभी सदस्यों का एक पहचान पत्र होने का नया नियम तैयार कर दिया है। विभाग के नए नियमानुसार बिना पहचान पत्र वाले सदस्य को राशन नहीं दिया जाएगा। वहीं राशन लेने से पहले कार्ड धारक को अलग से एक नया फार्म भी भरना होगा।
देशभर के गरीब लोगों को 2 वक्त की दाल-रोटी मुहैया करवाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा देश में खाद्य सुरक्षा योजना लागू की गई थी। सरकार की इस योजना के तहत प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिमाह 2 रुपए किलो के भाव से 5 किलो गेहूं और बी.पी.एल. कार्ड धारक को अढ़ाई किलो दाल 20 रुपए प्रतिकिलो के भाव से हर माह देने का ऐलान किया था लेकिन खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा सरकार की इस योजना को अमल में लाने के लिए हर रोज नए-नए नियम निर्धारित किए जा रहे हैं। विभाग के महानिदेशक ने लगभग एक सप्ताह पहले पत्र जारी करते हुए योजना का लाभ लेने वाले सभी लोगों के लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य कर दिया था लेकिन सभी लोगों के पास आधार कार्ड नहीं होने के कारण लोगों को होने वाली परेशानी को देखते हुए विभाग ने एक सप्ताह में ही इस नियम में फेरबदल करते हुए एक ओर नया नियम खड़ा कर दिया। विभाग के इस नए नियम के अनुसार अब राशन लेने से पहले कार्ड धारक को अपने परिवार के सभी सदस्यों की आई.डी. डिपोधारक को दिखानी होगी। अगर कार्ड धारक के पास परिवार के किसी सदस्य की आई.डी. नहीं है तो बिना आई.डी. वाले सदस्य को राशन नहीं दिया जाएगा। इस तरह से विभाग द्वारा राशन वितरण के लिए हर रोज तैयार किए जा नियमों के जाल में उपभोक्ता उलझते जा रहे हैं।
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