बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

किसान होता है सबसे बड़ा शोधकर्ता : डा. सिवाच

कहा, कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश में फैलाने के लिए प्रयास करें कृषि अधिकारी
ईगराह गांव में हुआ राज्य स्तरीय किसान सम्मेलन का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद। हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनुसंधान एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. सुरेंद्र सिवाच ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीटों पर शोध कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। कृषि विभाग के अधिकारियों को इनकी इस मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिएं। इस काम को किसानों पर जबरदस्ती थोपने की बजाए किसानों में इस काम के प्रति रुचि पैदा कर दूसरे जिले के किसानों को इस मुहिम से जोड़ा जाए ताकि किसानों को जागरूक कर अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों पर रोक लगाकर खाने की थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके और पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सके। डा. सिवाच वीरवार को कृषि विभाग तथा कीट साक्षरता अभियान से जुड़े किसानों द्वारा ईगराह गांव में आयोजित राज्य स्तरीय खेत दिवस में बतौर मुख्यातिथि शिरकत कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. देवेंद्र मलिक, एच.ए.यू. के कपास विभाग के अध्यक्ष डा. आर.एस. सांगवान, जींद हमेटी के डायरैक्टर डा. बी.एस. नैन, वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक डा. पालेराम, हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, जींद कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, के.वी.के. पिंडारा से वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक,  पंचकूला से उप-कृषि निदेशक डा. सुरेंद्र मलिक, डा. बलजीत लाठर, डा. कमल सैनी, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसम दलाल तथा विजय दलाल भी विशेष रूप से मौजूद थे।
मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान।
डा. सिवाच ने कहा कि कृषि विभाग के अधिकारियों को कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल से सीख लेनी होगी। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा रिसर्च सैंटर किसान का खेत होता है और किसान ही सबसे बड़ा शोधकर्ता होता है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह अपना तजुर्बा कृषि अधिकारियों के साथ सांझा करें, ताकि कृषि अधिकारी उनके तजुर्बे को कृषि वैज्ञानिकों के बीच रखकर उसे तकनीकी रूप से मंजूरी दिलवा सकें। डा. सिवाच ने कहा कि जींद के किसानों ने लीक से हटकर काम किया है। आज तक इससे पहले कभी भी कीटों पर इस तरह के शोध नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि वह जींद के किसानों के इस शोध को पूरे प्रदेश के किसानों तक पहुंचाने के लिए कृषि विभाग से जींद के किसानों को रिसर्च सैंटरों पर भेजने तथा किसानों के इस काम को एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के शोध में शामिल करने की सिफारिश करेंगे। इस अवसर पर हरियाणा के अलावा पंजाब से भी किसान कीट ज्ञान हासिल करने के लिए इस सम्मेलन में पहुंचे थे।

कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए खाप पंचायत करेंगी किसानों का सहयोग

बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि खाप पंचायतें किसी को कत्ल की मंजूरी नहीं देती बल्कि खापें तो बड़े-बड़े विवादों को सुलझा कर आपसी भाईचारे को कायम करने का काम करती हैं। ढांडा ने कहा कि खाप पंचायतें पिछले 2 वर्षों से इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं और अब तक 105 खापों के प्रतिनिधि इन किसानों की पाठशालाओं में पहुंचकर इनके कार्य का अवलोकन कर चुके हैं। ढांडा ने कहा कि फसल कटने के बाद किसान जो अवशेषों को फूंक देते हैं, उससे भी जमीन में मौजूद सुक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। इसलिए किसानों को फसों के अवशेष जलाने से रोकने के लिए खाप पंचायतें किसानों को जागरूक करने तथा इन किसानों के साथ मिलकर कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाने में इनका सहयोग करेंगी।
मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान।

इस प्रकार अपना खर्च कम कर सकते हैं किसान

कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कीट कमाडों किसानों द्वारा पौधों को पर्याप्त खुराक देने के लिए 100 लीटर पानी में अढ़ाई किलो यूरिया, अढाई किलो डी.ए.पी. तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर फसलों में छिड़काव किया जाता है। इस प्रकार 6 बार खाद के घोल का फसल पर छिड़काव करने पर किसान का खर्च महज 498 रुपए आता है जबकि कीटनाशकों पर किसान कम से कम 2500 से 3000 खर्च कर देते हैं। डा. सैनी ने कहा कि इस फार्मुले को अपनाकर किसान अपना खर्च कम कर सकते हैं।
गांव का नाम पेस्टीसाइड रहित खेत की पैदावार  पेस्टीसाइड खेत की पैदावार
राजपुरा 1805 किलो 1510 किलो
ईगराह 1555 किलो 1000 किलो
निडानी 1845 किलो 1250 किलो
रधाना 2430 किलो 1050 किलो
ललितखेड़ा 2025 किलो 1450 किलो
नोट :यह उन 5 गांव का आंकड़ा है, जिन गांवों में इस वर्ष किसान खेत पाठशालाएं लगाई गई थी।



सम्मेलन में किसानों को सम्बोधित करते मुख्यातिथि। 




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