अल के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए किसान समय पर दें पर्याप्त खुराक

अल की रोकथाम के लिए किसी भी तरह के कीटनाशकों का प्रयोग ना करें किसान
फसल में मौजूद कूदरती कीटनारियों की मदद से ही होगा अल पर कंट्रोल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले कई दिनों से मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण गेहूं तथा सरसों की फसल में अल (चेपा) का प्रकोप बढऩे लगा है। गेहूं और सरसों की फसल मेंं बढ़ते अल के प्रकोप को देखकर किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं। अल को कंट्रोल करने के लिए किसान फसल में महंगे-महंगे कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं। महंगे-महंगे कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी सरसों व गेहूं की फसल से अल का प्रकोप कम नहीं हो रहा है। वहीं कृषि विभाग ने किसानों की परेशानी को समझते हुए अल का तोड़ फसल में ही मौजूद मांसाहारी कीटों में ढूंढ़ निकाला है। कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को अल को कंट्रोल करने के लिए फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाये फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों की पहचान करने तथा फसल को पर्याप्त खुराक देने की गाइड लाइन जारी की गई हैं।  

क्या है अल (चेपा)

एडीओ डॉ. कमल सैनी के अनुसार अल कोई बीमारी नहीं है। यह एक शाकाहारी कीट है, जो पौधों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करता है। इस कीट का प्रकोप मुख्यत फरवरी से मार्च माह तक अधिक होता है। यह कीट हरे रंग की जूं की तरह होता है। अल शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही अवस्थाओं में पौधों की कोमल पत्तियों व गेहूं की बालियों से रस चूसता है। अल से प्रकोपित पौधे की पत्तियां मुराझा जाती हैं। यह कीट शर्करायुक्त चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। इससे चीटियां इन पौधों की तरफ आकॢषत होती हैं। इस कीट की साल में १२ से १४ पीढिय़ां पाई जाती हैं, जो समय-समय पर अलग-अलग फसलों में आती रहती हैं। इसलिए इस कीट की बीजमारी नहीं हो सकती।  

फसल में कब बढ़ता है अल का प्रकोप

फसल में नाइट्रोजन युक्त खाद का अधिक प्रयोग करने तथा आसमान में बादल छाए रहने के कारण फसल में अल की शुरूआत होती है। छिटपुट बारिश के कारण अल का प्रकोप ज्यादा बढ़ता है। इस समय बारिश का मौसम रहने के कारण गेहूं तथा सरसों की फसल में इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। 

किसान कैसे करें अल की रोकथाम

जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग का कहना है कि जानकारी के अभाव में किसान आमतोर पर कीटों को नियंत्रित करने के लिए रासायनों का प्रयोग करते हैं लेकिन ज्यादातर देखने को मिलता है कि रासायनों के प्रयोग से भी कीट नियंत्रित नहीं हो पाते। डॉ. सिहाग ने बताया कि कीटों को नियंत्रित करने के लिए हमारी फसलों में मौजूद मांसाहारी कीट ही हमारे लिए कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। इस समय गेहूं तथा सरसों के पौधों पर अल के प्राकृतिक कीटनाशी या परभक्षी कीट देखेे जा सकते हैं। इनमें सिॢफड मक्खी, लेडी बर्ड बीटल के बच्चे, क्राइसोपा के बच्चे प्रमुख हैं जो अल को बड़े चाव के साथ खाकर इसे नियंत्रित करने का काम करते हैं। इसके साथ-साथ एक्डियस नामक कीट अल का परजीवी है जो कि अल के पेट में अपने अंडे देता है, जिससे अल का आकार बढ़ जाता है और एक्डियस नामक कीट को जन्म देता है। इस प्रकार फसल में मौजूद यह मांसाहारी कीट अपने आप ही अल को कंट्रोल कर देते हैं। अल को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक की जरूरत नहीं है। बस जरूरत है तो किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी लेने की। 
मांसाहारी कीट क्राइसोपा का फोटो।

पौधों को समय पर दें पर्याप्त खुराक

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फसल को अल के प्रकोप से बचाने के लिए फसल को पर्याप्त रूप से खुराक देना भी बेहद जरूरी है। अल के प्रकोप के दौरान समय-सयम पर फसल मेें पोषक तत्वों का छिड़काव करें। इसमें प्रति एकड़ के लिए अढ़ाई किलो यूरिया, अढ़ाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक  29 प्रतिशत का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में इसका छिड़काव करें। एक-एक सप्ताह के अंतराल पर इसका छिड़काव किया जा सकता है। यह घोल अल से फसल को होने वाले नुकसान की पूर्ति कर फसल को दोगुणा फायदा पहुंचाता है। इसके प्रयोग से पैदावार में भी बढ़ौतरी होती है। 

फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करने वाली लेड़ी बर्ड बीटल का फोटो।

गेहूं की फसल में मौजूद अल को चट करता मांसाहारी कीट का फोटो। 




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