शनिवार, 8 मार्च 2014

कीटों को मारने की नहीं पहचानने की जरूरत

एकीकृत कीट प्रबंधन विषय पर एक दिवसीय सेमिनार
सेमिनार में कीट प्रबंधन पर कृषि अधिकारियों और किसानों के बीच हुई चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को बचाने के लिए हरियाणा किसान आयोग तथा कृषि विभाग के सौजन्य से शुक्रवार को जींद के रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन विषय पर बुद्धिशीलता सत्र का आयोजन किया गया। हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस परोदा ने सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि तथा सचिव डॉ. आरएस दलाल, सिरसा रीजनल सेंटर के डायरेक्टर डॉ. डी. मोंगा, एनसीआईपीएम के डायरैक्टर सी चटोपाध्या, हमेटी के डायरैक्टर डॉ. बीएस नैन, जिला उप-कृषि निदेशक डॉ. आरपी सिहाग, हिसार उद्यान विभाग के डीएचओ. डॉ. बलजीत भ्याण और बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद रहे। सेमिनार में किसान आयोग, कृषि विभाग के अधिकारियों तथा किसानों के बीच फसलों में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई। कृषि विभाग के अधिकारियों तथा किसानों ने बारी-बारी अपने-अपने विचार रखे। डॉ. आरएस परोदा ने कहा कि जींद के किसानों ने एक अच्छी पहल शुरू की है। इसलिए इस पर रिसर्च की जरूरत है। 

कीटों को काबू करने की नहीं कीटों को पहचानने की जरूरत 

सेमिनार में मौजूद कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि कीटों से फसलों को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए पहले कृषि विभाग ने कीटों को नियंत्रण करने का प्लान बनाया लेकिन कीट नियंत्रित नहीं हुये। इसके बाद कीटों का प्रबंधन करने की सोची लेकिन यहां भी विभाग को कोई सफलता नहीं मिली। अब समकेतिक कीट प्रबंधन पर जोर दिया जा लेकिन इससे भी बात नहीं बन रही है। मलिक ने कहा कि कीटों को न तो काबू करने की जरूरत है और न ही कीटों का प्रबंधन करने की जरूरत है। जरूरत है तो सिर्फ किसानों को कीटों की पहचान करवाने की। अगर किसानों को फसलों में मौजूद कीटों की पहचान हो गई तो आगे का फैसला किसान खुद-बे-खुद कर लेगा। 
 प्रोजेक्टर के माध्यम से कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान।

कीटों को न समझें मित्र और समझें दुश्मन

मास्टर ट्रेनर किसान मनबीर रेढ़ू ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल में 18 प्रतिशत नुकसान कीटों से होता है लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इस नुकसान को बचाने के लिए इससे ज्यादा खर्च फसल पर कर देता है। रेढ़ू ने कहा कि किसान और कृषि विभाग के अधिकारियों के बीच भाषा का अंतर है। विभाग द्वारा कीटों को दो भागों में बांट कर मित्र और दुश्मन की श्रेणी में रखा गया है। जबकि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुश्मन। कीट तो फसल में अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं और पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर अपनी सुरक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं। रेढ़ू ने कपास की फसल में पाई जाने वाली ब्रिस्टल बिटल का उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रिस्टल बिटल कपास के फूल, पत्तियां और नर पुंकेशर को खाती है। इसको देखकर किसान भयभीत हो जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि कपास के उत्पादन में ब्रिस्टल बिटल का अहम योगदान है। क्योंकि ब्रिस्टल बिटल फूल के मादा भाग पर बैठकर पुंकेशर तथा पत्तियां खाती है। इस प्रक्रिया में नर का पोलन मादा तक पहुंचता है और इससे आगे चलकर टिंड्डे बनते हैं। 

यह रखे सुझाव 

सेमिनार में मौजूद महिला किसान।
बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि इस मुहिम को प्रदेश में फैलाने के लिए मास्टर ट्रेनर किसानों को अन्य जिलों के किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए समय-समय दूसरे जिलों में भेजा जाए। 
किसानों द्वारा एक एकड़ के लिए 100 लीटर पानी में अढ़ाई किलो डीएपी, अढ़ाई किलो यूरिया तथा आधा किलो जिंक का जो घोल तैयार कर फसलों में छिड़काव किया जाता है, उसे कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से वैज्ञानिक तौर पर मंजूरी दिलवाई जाए। 

प्रोजेक्टर के माध्यम से दिया कीट ज्ञान 

सेमिनार में मौजूद महिला किसानों ने भी प्रोजेक्टर के माध्यम से फसलों में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। महिला किसान सविता ने बताया कि अगस्त माह में कपास की फसल के पत्ते बड़े हो जाते हैं और इससे नीचे के पत्तों तक धूप नहीं पहुंचती। इससे पौधे की भोजन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस दौरान पौधे अपनी सहायता के लिए टिड्डों को बुलाते हैं। टिड्डे ऊपरी पत्तों के बीच में छोटे-छोटे छेद कर देते हैं। इससे नीचे के पत्तों तक भी धूप पहुंच जाती है और पौधे के सभी पत्ते भोजन बनाने लगते हैं। 


सेमिनार में भाग लेते कृषि अधिकारी तथा किसान। 







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