कागजों में ही सिमटी पायका खेल योजना
ऐसे में कैसे तैयार होंगे खिलाड़ी
जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009 -10 में ग्राम पंचायतों को भेजा गया था खेल का सामान
चार साल बाद भी मैदान में नहीं लग पाए बास्केट बाल और वालीबाल के पोल
नरेंद्र कुंडूजींद। भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पंचायत युवा क्रीडा योजना (पायका) कागजों तक ही सिकुड कर रह गई है। जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009-10 में ग्राम पंचायतों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल आज तक मैदान में नहीं लग पाए हैं। जिला खेल विभाग तथा ग्राम पंचायतों की बेरुखी के चलते चार साल से बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल जमीन पर ही जंग की भेंट रहे हैं लेकिन न तो ग्राम पंचायतें इनकी सुध ले रही हैं और न ही खेल विभाग इन पोलों को मैदान में लगवाने में रुचि दिखा रहा है। जिला खेल विभाग की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्र के खिलाडिय़ों को सरकार की इस योजना का कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को निखार कर ग्रामीण आंचल से अच्छे खिलाड़ी तैयार करने के उद्देश्य से पंचायत युवा क्रीड़ा योजना (पायका) शुरू की है। सरकार की इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए सभी गांवों में कोच व खेल किटें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। सरकार खेल प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए पायका योजना के माध्यम से करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। पायका योजना के तहत खेल विभाग द्वारा गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए प्रत्येक गांव में एक-एक लाख रुपए खर्च कर बास्केट बाल, वालीबाल, रेसलिंग मैट तथा वेट ट्रेनिंग सेट दिए जा रहे हैं। पायका योजना के तहत 2009-10 में जिले से 50 गांवों को चुना गया था। खेल विभाग द्वारा इन 50 गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए 35 गांवों को वालीवाल व बास्केटबाल का सामान तथा 15 गांवों को रेसलिंग के मैट दिए गए थे। इसके अलावा इन सभी 50 गांवों में वेट ट्रेनिंग सैट भी दिए गए थे।
यह था प्रावधान
पायका योजना के तहत 2009-10 में गांवों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोलों को मैदान में सैट करवाने की जिम्मेदारी खेल विभाग ने गांव के लिए नियुक्त किए गए कोच, गांव के सरकारी स्कूल के मुख्याध्यापक तथा ग्राम पंचायत को सौंपी थी। बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल को मैदान में सैट करवाने के बाद कोच व ग्राम पंचायत को इस पर आने वाले खर्च का बिल तैयार करवाकर जिला खेल कार्यालय को देना था। इसके बाद जिला खेल कार्यालय द्वारा इस खर्च का भुगतान किया जाना था लेकिन न तो कोच व ग्राम पंचायत ने इस तरफ ध्यान दिया और न ही खेल विभाग ने। कुछ गांवों में तो कोच व ग्राम पंचायत ने अपने स्तर पर इन पोलों को मैदान में लगवा दिया लेकिन विभाग की अनदेखी के चलते ज्यादातर गांवों में आज भी बास्केट बाल तथा वालीबाल के यह पोल खुले आसमान के नीचे जंग खा रहे हैं।विभाग की लापरवाही के कारण पिल्लूखेड़ा खंड के भूराण गांव में पड़ा बास्केट बाल का पोल। |
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