शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

आधुनिकता की चकाचौंध में टूट रहे परिवार

एकल परिवार तथा पति-पत्नी के बीच अविश्वसनियता के चलते दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही दरार

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकत्ता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। परिवारिक कलह के कारण महिला संरक्षण कार्यालय में मामलों की संख्या लगातार बढ़ी जा रही है। महिला संरक्षण कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में हर माह दो दर्जन परिवार दहेज व घरेलू कलह की आग से झुलस कर टूट रहे हैं। यह आधुनिकता के इस दौर का ही परिणाम है कि हर माह 40 से 50 मामले न्याय की तलाश में महिला संरक्षण तथा महिला सैल के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। पिछले लगभग एक साल में महिला संरक्षण कार्यालय में 217 मामले आ चुके हैं। महिला सैल कार्यालय में पहुंच रहे मामलों में सबसे ज्यादा मामले पत्नी-पत्नि के बीच आपसी कलह, मार पिटाई तथा मानसिक व शारीरिक हरासमैंट के होते हैं।
आधुनिकता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आज दाम्पत्य जीवन में दरार लगातार बढ़ रही है। परिवारिक कलेह, दाम्पत्य जीवन में बढ़ती अविश्वसनियता व दहेज प्रताडऩा से विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। आधुनिकता के कारण सामाजिक तानाबाना टूटने तथा महिलाओं व उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून में लचिलेपन के कारण परिवार लगातार टूट कर बिखर रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हर माह दहेज व घरेलू कलेह की आग में झुलस कर 40 से 50 मामले महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल के पास आ रहे हैं। दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही कड़वाहट के कारण सैंकड़ों परिवार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। टूटते हुए परिवारों को बचाने के लिए सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में जिला महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल का गठन किया गया है। ताकि टूटते परिवारों में अपसी सुलह करवाकर उन्हें एक नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जा सके। महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल की परिवारों को जोडऩे की मुहिम काफी हद तक सफल रहती है तो कुछ परिवारों में सहमति नहीं बन पाने के कारण कुछ परिवारों की डोर टूट जाती है। पिछले लगभग ११ माह में अब तक जिला महिला संरक्षण कार्यालय में २१७ मामले आए हैं। इन 217 मामलों में से कुछ मामलों में तो समझौते हो चुके हैं और कुछ मामले अभी जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास विचाराधीन हैं तो कुछ मामले समझौता नहीं होने के कारण अदालत के दरवाजे पर पहुंच गए हैं।

टूट रहा परिवारों का तानाबाना

जिला महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल में पहुंचने वाले ज्यादात्तर मामलों में महिलाओं की एकल परिवार में रहने की इच्छा से विवाद शुरू होता है लेकिन बाद में यह दहेज प्रताडऩा के मामले बनकर अदालत तक पहुंच जाते हैं। एकल परिवार में रहने की इच्छा के कारण संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहा हैं। संयुक्त परिवारों का चलन समाज में गिने-चूने जगह पर ही दिखाई देता है। संयुक्त परिवार से टूटकर मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिससे एकल परिवार के बच्चों में भी संस्कारों की कमी भी दिखाई देने लगी है।

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंच 238 मामले

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण के पास कुल 238 मामले आए हैं। इनमें से 68 मामले अदालत द्वारा भेजे गए हैं। 14 मामले पुलिस द्वारा तथा १५६ मामले सीधे महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं और एक मामला एनजीओ के माध्यम से आया है। महिला संरक्षण अधिकारी के पास सीधे पहुंच रहे मामलों की संख्या को देखते हुए यह साफ हो रहा है कि महिला अधिकारों के प्रति महिलाओं में जागरूकता बढ़ रही है और वह किसी कोर्ट-कचहरी या पुलिस के चक्कर में पडऩे की बजाए सीधे महिला संरक्षण कार्यालय पहुंच रही हैं।

समझौता करवा दोबारा से टूटे परिवारों को जोडऩे का किया जाता है काम

दहेज प्रताडऩा व घरेलु कलह के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण लोगों की छोटी मानसिकता है। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर बड़ी समस्या का रूप दे दिया जाता है। उनके पास आने वाले ज्यादातर मामलों में पति-पत्नी के बीच आपसी अनबन रहना तथा विचारों का मतभेद होना रहता है। उनके पास आने वाले दंपत्तियों के परिवारों को दोबारा जोडऩे का हर संभव प्रयास किया जाता है। सबसे पहले दोनों पक्षों में सुलह करवाने की कोशिश की जाती है अगर किसी कारण से दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती तो मामले की गहण जांच की जाती है। इसके बाद आगामी कार्रवाई के लिए मामले को अदालत में भेजा दिया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं
बाल विवाह निषेध अधिकारी
महिला संरक्षण अधिकारी कृष्णा चौधरी का फोटो। 



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