शनिवार, 5 अप्रैल 2014

बालिकाएं आज भी बन रही हैं वधू

बाल विवाह का चलन जारी
लड़कियों के प्रति नहीं बदल रही लोगों की सोच 

नरेंद्र कुंडू
जींद। 21वीं सदी में भी बाल विवाह जैसी कूप्रथा रह-रहकर सिर उठा रही है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए बाल विवाह अधिनियम के बावजूद भी बाल विवाह का चलन रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से प्राप्त हुए एक वर्ष के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो बाल विवाह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास अब तक 9 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मामले पुलिस के माध्यम से तो एक मामला इस कूप्रथा का शिकार होने वाली नाबालिग की सूझबुझ से पहुंचा है। जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से मिले आंकड़ों से यह साफ हो रहा है कि आज भी जागरूकता के अभाव या मजबूरी में बालिकाएं वधू बन रही हैं।
देश में सदियों से चली आ रही बाल विवाह जैसी परम्परा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सख्त कदम उठाते हुए बाल विवाह अधिनियम बनाया गया है। इस कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं लेकिन सरकार तथा विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाह का चलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे जागरूकता का अभाव कहा जाए या लोगों की मजबूरी जिस कारण 21वीं सदी में भी बालिकाएं वधू बन रही हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय में अप्रैल 2013 से दिसम्बर 2013 तक बाल विवाह के 4 मामले सामने आए हैं। वहीं जनवरी 2014 में 2 और फरवरी 2014 में कुल 3 मामले महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं। 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे मामलों में 8 मामले तो पुलिस के माध्यम से पहुंचे हैं और एक मामला खुद इस कूप्रथा का शिकार हो रही बालिका द्वारा दिया गया है।

लड़की को आज भी समझा जाता है जिम्मेदारी

समाज में लड़कियों को लड़कों के बराबर का दर्जा दिलवाने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के बाद भी लोगों की सोच में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो रहा है। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास पहुंच रहे बाल विवाह के ज्यादातर मामलों में यह सामने आया है कि परिवार के लोगों ने लड़की को जिम्मेदारी समझ कर बाल अवस्था में ही लड़की को विवाह के बंधन में बांधा जाता है।

दो साल की सजा का है प्रावधान

बाल विवाह अधिनियम के तहत बाल विवाह करवाने के आरोप में दो साल की सजा का प्रावधान है।
लड़कियों के प्रति लोगों की सोच नहीं बदली है। आज भी लोग लड़की को एक जिम्मेदारी समझते हैं और इस जिम्मेदारी को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए ही वह बाल विवाह जैसी कूप्रथा के चलन को जारी रखे हुए हैं। लोगों को सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। बिना सोच बदले इस कूप्रथा को रोक पाना संभव नहीं है। लोगों को जागरूक करने के लिए उनके द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी, जींद
फोटो कैप्शन
जिला महिला संरक्षण अधिकारी व पुलिस टीम। 






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