बाजार में गैर प्रमाणिक बीटी की किस्मों की भरमार, किसान परेशान
कृषि विभाग नहीं कर पा रहा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश
कृषि विश्वविद्यालय की नहीं मंजूरी, पर्यावरण मंत्रालय का सहारा
नरेंद्र कुंडूजींद। गेहूं की फसल की कटाई के बाद कपास की बिजाई का सीजन शुरू होने जा रहा है। किसान गेहूं की कटाई की तैयारियों के साथ-साथ कपास की बिजाई की तैयारियों में भी जुटे हुए हैं लेकिन बीटी कॉटन के बीज की किस्म के चयन को लेकर किसान पूरी तरह से असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि बाजार में बीटी के भिन्न-भिन्न किस्मों के बीजों की भरमार है। इस समय बाजार में 600 से भी ज्यादा बीटी की किस्में बाजार में आ चुकी हैं, लेकिन हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार इनमें से किसी की सिफरिश नहीं कर रहा है। बीटी के बीज के चयन को लेकर किसान विकट परिस्थितियों में फंसा हुआ है कि आखिरकार वह अपने खेत में बीटी की किस किस्म की बिजाई करें। इसमें सबसे खास बात यह है कि आज बाजार में बीटी की जितनी भी किस्में हैं, उनमें से कोई भी किस्म कृषि विश्वविद्याल द्वारा प्रमाणित नहीं है। इस कारण कृषि विभाग के अधिकारी भी किसानों को बीटी की किसी भी किस्म की बिजाई की सिफारिश नहीं कर पा रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश नहीं किए जाने तथा बीटी के बीज को लेकर किसानों के पास विभिन्न विकल्प होने के कारण आज किसान कपास के उत्पादन तथा इसमें आने वाली बीमारियों की तरफ से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है। बीटी बीज निर्माणता कंपनियों ने पर्यावण मंत्रालय की मंजूरी तो ले ली है, लेकिन इससे किसानों का भ्रम जस का तस बना हुआ है। किसान किस किस्म और कंपनी के बिज का चुनाव करें इस पर स्थिति साफ नहीं है।
बीटी के कारण बाजार में आई कीटनाशकों की बाढ़
कपास के क्षेत्र में बीटी की भिन्न-भिन्न किस्मों के साथ-साथ कीटनाशकों की बाढ़ भी आ गई है। बीटी की बिजाई से कपास में सुंडियों से बचाव के लिए होने वाले कीटनाशकों का प्रयोग कम हुआ हो लेकिन दूसरी तरफ पिछले तीन-चार साल से अन्य कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है।हरियाणा में 200 करोड़ का कारोबार
इसमें कोई शक नहीं है कि बीटी से कपास के युग में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है और इससे उत्पादन में काफी बढ़ौतरी हुई है लेकिन बीटी अपने साथ बीज और कीटनाशकों का एक बहुत बड़ा बाजार भी लेकर आई है। कृषि विभाग के अनुसार बीज और कीटनाशकों के क्षेत्र में अकेले हरियाणा प्रदेश में 200 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार होता है। क्योंकि हरियाणा में लगभग 5.5 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में कपास की खेती होती है, जिसमें लगभग 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी की बिजाई होती है और बीटी की सभी किस्में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन हैं। आज दो दर्जन से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां बीटी का बीज तैयार कर रही हैं और बीटी की 600 से ज्यादा किस्में बाजार में उपलब्ध हैं।एक किस्म तैयार करने में लगता है 9-10 वर्ष का समय
कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसी भी बीज की सिफारिश करने से पहले उस बीज पर लगभग 9-10 साल तक रिसर्च होता है। इस 9-10 साल के लंबे सत्र के दौरान कृषि वैज्ञानिक नई किस्म के उत्पादन तथा फसल में आने वाली बीमारियों व नुकसान पर गहन रिसर्च करते हैं। इसके बाद ही वह कृषि विभाग को बीज की सिफारिश करते हैं। 9-10 साल के लंबे रिसर्च के बाद एक किस्म ईजाद हो पाती हैं। जबकि बाजार में आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां आए दिन लुभान्वित नामों से नई-नई किस्में उतार रही हैं।बीटी के बीज की खरीदारी करने के दौरान बीज विक्रेता से विचार-विमर्श करते किसान। |
बीटी के बीज पर विश्वास करना संभव नहीं
जितनी भी बीटी की किस्में आई हुई हैं किसी भी किस्म की कृषि विश्वविद्यालय सिफारिश नहीं करता है, क्योंकि बीटी का बीज कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित नहीं है। बीटी के बीज तैयार करने वाली कंपनियों द्वारा कृषि विश्वविद्यालय से बीज की बिक्री की अनुमति लेने की बजाए उत्तर भारत पर्यावरण मंत्रालयों से सीधी अनुमति ली जाती है। इसलिए बीटी के बीजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता और इसके नुकसान या फायदे के बारे में भी कुछ कह पाना संभव नहीं है। बीटी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को अपने सभी खेतों में बीटी की अलग-अलग किस्मों की बिजाई करनी चाहिए या बीटी के साथ-साथ बीच-बीच से देशी कपास की भी बिजाई किसान कर सकते हैं।डॉ. यशपाल मलिक, कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र, पांडू पिंडारा, जींद
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