शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक

कानूपर में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में किसानों ने प्रस्तुत की प्रजंटेशन
कहा, बिना कीटों की पहचान के नहीं संभव होगा थाली को जहरमुक्त करना

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय समेकित नाशी जीव प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) द्वारा कानपूर (उत्तरप्रदेश) में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में म्हारे किसानों का कीट ज्ञान देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि वैज्ञानिक उनके कायल हो गये। कार्यक्रम में नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट (विषय वस्तु विशेषज्ञों) के अलावा कई प्रगतिशील किसानों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में जींद जिले के कीटाचार्य किसानों की तरफ से मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक व सुरेश अहलावत प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए। रणबीर मलिक ने कृषि अधिकारियों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि किस तरह से फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग की शुरूआत हुई और अब किसानों के सामने क्या स्थिति है तथा वह किस तरह से किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। कीटाचार्य किसानों की कीट ज्ञान की पद्धति को देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि अधिकारियों ने उनकी पीठ थपथपाई और उन्हें एक तरह से इस कार्यक्रम का हीरो बताया।  
एनसीआईपीएम द्वारा 26 व 27 अगस्त को नार्थ जोन के कृषि वैज्ञानिकों के लिए कानपूर में दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में जींद के कीटाचार्य किसानों को भी उनकी पद्धति के बारे में कृषि अधिकारियों को रूबरू करवाने के लिए बुलाया गया था। मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक ने अपनी प्रस्तुति देते हुए बताया कि किसान और कीट के बीच यह लड़ाई 25 प्रतिशत के नुकसान से शुरू हुई थी। किसानों को बताया गया था कि कीट फसल में 25 प्रतिशत नुकसान करता है और इस नुकसान को बचाने के लिए किसान को कीटों को नियंत्रित करना होगा लेकिन जब कई वर्षों की मेहनत के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं हुए तो कृषि अधिकारियों ने किसान को इसका जिम्मेदार बताते हुए इस लड़ाई का नाम बदलकर कीट प्रबंधन रख दिया। वर्ष 2001 में यह प्रबंध उस समय टूट गया जब 30-35 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद भी अमेरिकन सूंडी का प्रबंध नहीं हो पाया। मलिक ने बताया कि अब इस लड़ाई का नाम बदलकर समेकीत कीट प्रबंधन किया गया है और हर तरह से कीट को काबू करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक किसान को कीटों की पहचान नहीं होगी उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक यह लड़ाई खत्म होने वाली नहीं है। पौधे के लिए कीट बेहद जरूरी हैं और पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से कीटों को बुलाता है। इस दौरान उन्होंने कृषि अधिकारियों को कई तरह के कीटों की सलाइड व वीडियो भी दिखाई। कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि अधिकारियों ने उनके कीट ज्ञान को देखकर उनकी जमकर प्रशंसा की। 

जींद के किसानों की प्रस्तुति काफी सरहानिय रही

जींद जिले के किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर कार्यक्रम में पहुंचे मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक की प्रस्तुति काफी सरहानिय रही। इन किसानों द्वारा एक तरह से लीक से हटकर कार्य किया जा रहा है। यह पद्धति को पूरे देश में फैलाने की जरूरत है और इसी उद्देश्य से उन्हें यहां बुलाया गया था। 
डॉ. अजंता बिराह, वरिष्ठ वैज्ञानिक
एनसीआईपीएम, नई दिल्ली




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