रविवार, 31 अगस्त 2014

पौधों और कीटों के बीच है गहरा संबंध

पौधे अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं कीटों को 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्या नीता तथा सविता ने कहा कि कीट दो प्रकार के होते हैं, एक शाकाहारी और दूसरे मांसाहारी। फसल में पहले शाकाहारी कीट आते हैं और फिर उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। पौधों और कीटों का गहरा संबंध है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। इसलिए पौधों और कीटों के आपसी संबंध को बारीकी से समझना जरूरी है। कीटाचार्या नीता तथा सविता शनिवार को निडाना गांव में चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित कर रही थी। इस अवसर पर खेल गांव निडानी के सरपंच अशोक कुमार ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की तथा महाबीर पूनिया भी विशेष रूप से मौजूद थे। सरपंच अशोक कुमार ने महिलाओं के कार्य के प्रयासों की सराहना करते हुए महिलाओं को समय-समय पर हर तरह की संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर महिला किसानों ने सरपंच को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया। 
महिला किसानों के सामने अपने अनुभव सांझा करती मास्टर ट्रेनर किसान।
कीटाचार्या इश्वंती व नीलम ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे 24 घंटे में लगभग साढ़े चार ग्राम भोजन तैयार करते हैं उसको तीन भागों में बांटे हैं। इसका एक तिहाई भाग जड़ों को, एक तिहाई पौधे के ऊपरी भाग को देते हैं तथा एक तिहाई अपने पास रिजर्व के तौर पर रखते हैं। ताकि मुसिबत के समय उस भोजन से अपना काम चला सकें। यदि पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो पौधो उस जमा किये गए अतिरिक्त भोजन को निकालने के लिए भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और यह शाकाहारी कीट रस आदि चूसकर रिजर्व भोजन को बाहर निकालकर एक तरह से पौधों की मदद करते हैं। जब तक यह शाकाहारी कीट ईटीएल लेवल तक रहते हैं तो पौधे को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यदि यह ईटीएल लेवल से ऊपर निकलते हैं तो पौधे पर इसका नुकसान आता है लेकिन शाकाहारी कीटों को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर तक पहुंचने से रोकने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधों की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जब पौधे के ऊपरी पत्तों की छाया नीचे के पत्तों पर पड़ती है तो नीचे के पत्ते भोजन बनाना बंद कर देते हैं। ऐसे में पौधो अपनी सुरक्षा के लिए टिड्डों को बुलाता है और टिड्डे पौधे के ऊपरी पत्तों को बीच से खाकर छोटे-छोटे सुराग कर देते हैं। इस प्रक्रिया में टिड्डों का जीवन यापन हो जाता है और पौधे के नीचले हिस्सों तक धूप पहुंच जाती है। इसके बाद जब पौधे के टिंड्डों को धूप की जरूरत होती है तो वह सूंडियों को बुलाता है और सूंंडियां पत्तों को खाकर पूरी तरह से छलनी कर देती है। इससे टिंड्डों तक धूप पहुंच जाती है और टिंड्डे पक जाते हैं। कीटाचार्या नवीन तथा शकुंतला ने बताया कि पौधे के फूलों के रूप में सिंगार करते हैं। इसलिए फूल की पंखुडियां रंग-बिरंगी होती हैं ताकि कीटों को आकर्षित किया जा सके। क्योंकि कपास की फसल में परपरागन में कीटों की अहम भूमिका होती हैं। फूल खाने वाले कीट मादा भाग पर बैठकर फूल की पंखुडियों व नर भाग को खाते हैं और इस प्रक्रिया में कीट के शरीर पर नर के पराग कण मादा तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने जो भी कीट बनाया है उसकी अपनी अहमियत होती है। 
सरपंच अशोक कुमार को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

कीटनाशक के छिड़काव वाले प्लांट में बढ़ी कीटों की संख्या

महिला किसानों द्वारा फसल के अवलोकन के दौरान एकत्रित किये गए आंकड़े के अनुसार आईपीएम पद्धति वाले प्लांट में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 5.2, हरे तेले की 0.1 व चूरड़े की 0.1 थी। कीट ज्ञान की पद्धति वाले प्लांट में सफेद मक्खी की 2.2, हरा तेला  व चूरड़ा न के बराबर थे। वहीं जिस प्लांट में कीटनाशकों का चार-चार बार छिड़काव किया गया है उस खेत में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 25 मिल रही है, जबकि हरा तेला 0.7 तथा चूरड़ा न के बराबर है। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि कीटनाशक के छिड़काव वाले प्लांट में कपास के सभी पत्ते पूरी तरह से काले हो चुके हैं और इस प्लांट में 65 प्रतिशत नुकसान नजर आ रहा है। 



फसल में मौजूद शाकाहारी कीट झोटिया बग। 

फसल में मौजूद रसचूसक कीट लालड़ी। 






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