बुधवार, 6 अगस्त 2014

भारतीय मूल्यों को संजोये हुए है कालवा गुरुकुल

योग गुरू स्वामी रामदेव व आचार्य बाल कृष्ण की कर्मस्थली रहा है कालवा गुरुकुल
वैदिक धर्म की शिक्षा का किया जा रहा प्रचार-प्रसार

नरेंद्र कुंडू
जींद। पिल्लूखेड़ा कस्बे में स्थित कालवा गुरुकुल आधुनिकता के इस दौर में भी वैदिक संस्कृति व भारतीय मूल्यों को संजोये हुए है। कालवा गुरुकुल में आज भी हमारी वैदिक संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। आज भी यहां के ब्रह्मचारियों व आचार्यों की सुबह की शुरूआत हवन से होती है। हालांकि मोबाइल क्रांति के बाद से गुरुकुल के प्रति युवाओं का रूझान कम जरूर हुआ है लेकिन कालवा गुरुकुल में आज भी दूसरे प्रदेश के कई ब्रह्मचारी यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कालवा गुरुकुल योग गुरु बाबा रामदेव व बालकृष्ण की भी कर्म स्थली रही है। स्वामी रामदेव व बालकृष्ण ने भी कालवा गुरुकुल से ही अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी की है। कालवा गुरुकुल लोगों को वैदिक धर्म की शिक्षा देने के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध करवा रहा है। कालवा गुरुकुल के औषद्यालय में हर प्रकार की बीमारियों का उपचार देशी दवाओं से किया जाता है और सांप के काटे का उपचार तो बिल्कुल निशुल्क किया जाता है। 
कालवा गुरुकुल में हवन में आहुति देते ब्रह्मचारी व आचार्य।

1968 में हुई थी कालवा गुरुकुल की स्थापना

स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की गई थी। जून 1968 में स्वामी चंद्रवेश व स्वामी सत्यवेश ने कालवा में गुरुकुल की स्थापना की। गुरुकुल की स्थापना के दौरान यहां पर सिर्फ छोटे बच्चों को ही शिक्षा दी जाती थी। उस दौरान बड़े बच्चों के लिए यहां शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। 1971 में आचार्य बलदेव ने यहां पर स्टीक ब्रह्मचारी व वैदिक धर्म के प्रचारकों को शिक्षा देने का काम शुरू किया। श्रावणी पर्व 1971 में यहां पर बड़े ब्रह्मचारियों के पठन-पाठन का काम शुरू किया गया। 
कालवा गुरुकुल का फोटो।

स्वामी रामदेव व आचार्य बाल कृष्ण की कर्मस्थली रहा है गुरुकुल कालवा

कालवा गुरुकुल ने वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए देश को कई महान ब्रह्मचारी दिये हैं। योग गुरु स्वामी रामदेव व आचार्य बाल कृष्ण ने कालवा गुरुकुल से ही अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी की है। 1987 से 1992 तक स्वामी रामदेव व आचार्य बाल कृष्ण ने एक साथ कालवा गुरुकुल में रहकर यहां से वैदों की शिक्षा ग्रहण की। इसके अलावा आचार्य अर्जुन देव, आचार्य नरेश, आचार्य ज्ञानेश्वर, आचार्य अखिलेश, आचार्य जगतदेव, स्वामी धर्मदेव, आचार्य राजेंद्र, आचार्य आत्मप्रकाश, स्वामी सीमानंद ने भी कालवा गुरुकुल से ही वैदिक धर्म की शिक्षा दीक्षा ली और नैष्ठिक ब्रह्मचार्य का प्रचार-प्रचार किया। 
गुरुकुल में लाठी चलाने का प्रशिक्षण लेते प्रशिक्षु।

पहले ग्रामीण जीवन व गुरुकुल के जीवन में नहीं था कोई अंतर

आचार्य राजेंद्र ने बताया कि आज से लगभग 15-20 वर्ष पहले ग्रामीण जीवन व गुरुकुल के जीवन में कोई ज्यादा अंतर नहीं था। इसलिए गुरुकुल में शिक्षा-दीक्षा लेने के लिए आने वाले ब्रह्मचारी आसानी से गुुरुकुल के आचरण में ढल जाते थे लेकिन देश में मोबाइल क्रांति के बाद से काफी तेजी से परिवर्तन हुआ है। पहले गुरुकुल के ब्रह्मचारियों व भजनियों द्वारा गांव-गांव जाकर वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार किया जाता था। लोग बड़ी रुचि के साथ प्रवचन और भजन सुनते थे लेकिन ज्यों-ज्यों मनोरंजन के साधन बढ़ते गए वैसे-वैसे ही लोगों का गुरुकुल के प्रचार-प्रसार से मोह भंग होता चला गया। इसके चलते नैतिक मूल्यों से भरी शिक्षा का स्थान अशलील व दिशाहीन कार्यक्रमों ने ले लिया। स्वामी धर्मदेव का कहना है कि गुरुकुल का उद्देश्य वैदों की रक्षा करते हुए वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करना और सामाजिक कुरीतियों को खत्म करना है।  

यह होती है गुरुकुल के ब्रह्मचारियों की दिनचर्या

गुरुकुल में रहने वाले सभी ब्रह्मचारी सुबह पौने चार बजे उठते हैं। शौच आदि से निवृत्ति होने के बाद ब्रह्मचारियों को व्यायाम, योगाभ्यास व प्राणायाम करवाया जाता है। इसके बाद ब्रह्मचारी स्नान इत्यादि करके 15-20 मिनट तक ऋषि ग्रंथों का स्वाध्याय करते हैं। पांच मिनट तक वेदपाठ होता है, इसी दौरान कुछ देर वेद मंत्रों पर चर्चा होती है और फिर हवन होता है। इसके बाद प्रार्थना होती है और फिर आठ बजे से सायं चार बजे तक विद्यालय चलता है। विद्यालय के दौरान 11 से 12.30 बजे भोजन व विश्राम का समय होता है। इसके बाद चार बजे तक फिर कक्षाएं चलती हैं। साढ़े चार बजे के बाद फिर से व्यायाम व प्राणायाम किया जाता है। सायं के समय हवन होता है और इसके बाद भोजन किया जाता है। 






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें