बुधवार, 6 अगस्त 2014

जींद जिले से होगी अगली सुरक्षित हरित क्रांति की शुरूआत

किसानों के कीट ज्ञान की पद्धति को परखने के लिए जींद पहुंची एनसीआईपीएम की टीम

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आज देश में प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड का 44 प्रतिशत हिस्सा अकेला कपास में प्रयोग हो रहा है। इसका कारण यह है कि किसानों को गुमराह कर कीटों के प्रति उनके मन में भय पैदा किया गया है लेकिन जींद जिले के किसानों ने कीट ज्ञान की एक अनोखी मुहिम शुरू की है। यहां के किसानों द्वारा पेस्टीसाइड बंद किये जाने का मुख्य कारण इन किसानों को ईटीएल लेवल की जानकारी होना है। इससे पहले फसल में कीटनाशकों के 
एनसीआईपीएम की टीम का स्वागत करती महिला किसान। 
प्रयोग की जरूरत नहीं होती। यह बात राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सहगल ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजंता बिराह, डॉ. सोमेश्वर भगत, वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार, प्रधान तकनीकी अधिकारी एसपी सिंह, उप-कृषि निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, एसडीओ डॉ. सिवाच, खंड कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र शर्मा, डॉ. कमल सैनी, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसुम दलाल, दिल्ली दूरदर्शन, हिसार दूरदर्शन तथा आकाशवाणी रोहतक केंद्र की टीम भी मौजूद थी। 
डॉ. सहगल ने कहा कि अगली सुरक्षित हरित क्रांति की शुरूआत जींद जिले से ही होगी। जींद जिले के किसानों द्वारा कीटों पर किया जा रहे शोध एक अनोखी पद्धति है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज तक इस पद्धति पर देश के वैज्ञानिकों की सरकारी मोहर नहीं लग पाई है। उन्होंने कहा कि कीट ज्ञान की इस पद्धति पर वैज्ञानिकों की मोहर लगवाने के लिए ही वह यहां आए हैं। उनकी इस पद्धति को परखने के लिए एनसीआईपीएम द्वारा इस बार निडाना गांव में तीन अलग-अलग प्लांट लगाए गए हैं। एक प्लांट में एनसीआईपीएम अपनी पद्धति के अनुसार से खेती करवाई जा रही है, एक प्लांट में किसान द्वारा खुद अपनी सामान्य पद्धति द्वारा खेती कर रहा है तथा एक प्लांट में कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसान अपनी पद्धति से खेती कर रहे हैं। यदि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों की पद्धति से फसल का उत्पादन एनसीआईपीएम की पद्धति के बराबर भी आता है तो कीट ज्ञान की मुहिम की पद्धति को देशभर में लागू करने की सिफारिश की जाएगी। डॉ. अजंता बिराह ने कहा कि उनके द्वारा भी ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास के द्वारा कीटों का प्रबंधन करने के लिए किसानों को जागरूक किया जाता है लेकिन जींद जिले के किसानों ने तो उनकी पद्धति से भी अच्छी पद्धति ढूंढ़ निकाली है। उनके द्वारा इस पद्धति पर किया जा रहा शोध अगर सफल होता है तो वह इन 
 वैज्ञानिकों को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान।
किसानों की मदद से देश के अन्य किसानों को भी जागरूक करवाने के लिए योजना तैयार करेंगे। इस अवसर पर जींद जिले के अलावा बरवाला, हांसी, हिसार से भी काफी संख्या में किसानों ने कार्यक्रम में भाग लिया। 

महिलाओं का कीट ज्ञान देखकर दंग रह गई वैज्ञानिकों की टीम

कीटाचार्य महिला किसानों ने एनसीआईपीएम की टीम के वैज्ञानिकों को बताया कि वह केवल कीटों की पहचान कर कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। वह इस दौरान यह देखते हैं कि कीटों ने फसल में ईटीएल लेवल को पार किया है या नहीं। यदि कीट ईटीएल लेवल को पार नहीं करते हैं तो फिर कीटनाशी का प्रयोग करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि अपने ६ वर्षों के अनुभव के दौरान अभी तक न तो कीटों ने ईटीएल लेवल पार किया है और न ही उन्हें कीटनाशी का प्रयोग करने की जरूरत पड़ी है। महिला किसानों के कीट ज्ञान को देखकर वैज्ञानिकों की टीम दंग रह गई।



महिला किसानों के अनुभव को कैमरे में कैद करती दिल्ली दूरदर्शन की टीम। 




  


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