रविवार, 2 अगस्त 2015

कीटनाशकों से शाकाहारी कीटों के साथ मर जाते हैं कुदरती कीटनाशी

कपास के साथ-साथ सब्जियों पर भी शुरू हुआ प्रयोग 
कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पंजाब से भी पहुंचे किसान 

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला/जींद। आज कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह से भयभीत हैं। क्योंकि सफेद मक्खी को काबू करने में कीटनाशक भी बेअसर साबित हो रहे हैं। यह बात कीटों की मास्टरनी राजवंती, कमलेश, बिमला, रोशनी व सुमन ने शनिवार को जेवरा गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में किसानों को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बरवाला व आस-पास के सैंकडों किसानों के अलावा नूरमहल जालंधर से गुरप्रीत, चैनलाल, सरपंच लखविंद्र ने भी शिरकत की। पाठशाला में मौजूद किसानों ने सब्जियों व कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया। किसानों को कीटों के जीवन चक्र व क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण शाकाहारी कीट सफेद का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि किसानों द्वारा सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जिस कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, उस कीटनाशक से सफेद मक्खी के साथ-साथ उसे नियंत्रित करने के लिए उसके पेट में पल रहे दूसरे मांसाहारी कीट भी मर जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृति ने एक चैन सिस्टम बनाया हुआ है लेकिन मनुष्य ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर इस चैन सिस्टम को तोड़ दिया है और इसी के कारण यह परेशानी आज किसानों के सामने आ रही है। पौधा अपनी जरूरत के अनुसार ही शाकाहारी कीटों को बुलाता है लेकिन उसके साथ ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीटों को भी बुला लेता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इनो व इरो नामक परपेटिया मांसाहारी कीट फसल में मौजूद होते हैं। इनो व इरो सफेद मक्खी के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो का अंडा, बच्चा व प्यूपा तीन ही प्रक्रिया सफेद मक्खी के पेट में होती हैं। प्रौढ़ बनने के बाद यह सफेद मक्खी के पेट से बाहर आती है लेकिन जब किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करता है तो सफेद मक्खी के साथ-साथ उसके पेट में पल रहे इन मांसाहारी कीटों की तीनों स्टेज खत्म हो जाती है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किए गए कीटना
 पाठशाला में मौजूद महिलाएं। 
शक से सफेद मक्खी तो मुश्किल से 50 प्रतिशत ही खत्म होती है लेकिन उसके पेट में पल रहे मांसाहारी कीट इनो-इरो की तो तीनों स्टेज खत्म हो जाती हैं। इसलिए किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जहर डालने की बजाए पौधों को खुराक देने का काम करना चाहिए। ताकि सफेद मक्खी द्वारा पौधे का जो रस चूसा गया है उस खुराक से पौधा उसकी रिकवरी कर सके। महिला किसानों ने बताया कि इस बार यह देखने में आया है कि सफेद मक्खी का प्रकोप नॉन बीटी हाईब्रिड व देशी कपास की बजाए बीटी कपास में ज्यादा है। उन्होंने बताया कि  भिंडी, घीया, मिर्च व बैंगन की सब्जियों पर भी उनका प्रयोग चल रहा है। इनमें भिंडी की फसल में हरेतेले की संख्या ज्यादा है लेकिन इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मकड़ी, क्राइसोपा, इनो-इरो, अंगीरा हथजोड़ा, दैत्यामक्खी, डाकू बुगड़ा पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि दिव्य ज्योतिग्राम के नाम से उनकी संस्था है और यह संस्था लगभग 200 एकड़ में बिना पेस्टीसाइड की खेती कर रही है। यहां पर उनका आने का उद्देश्य कीटों के बारे में प्रशिक्षण हासिल करना था ताकि वह वहां के दूसरे किसानों को भी इसके बारे में प्रशिक्षित कर सकें। 


 सब्जी के पौधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं। 







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