शाकाहारी कीटों के साथ भी होता है पौधे का गहरा रिश्ता
कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत
नरेंद्र कुंडू
बरवाला/जींद। शाकाहारी कीटों के साथ भी पौधों का गहरा रिश्ता है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। इसलिए हमें कीटों को मारने की नहीं बल्कि कीटों को पहचानने की जरूरत है। यह बात कीटाचार्या किसान विजय, प्रमिला, कमल, आशीम, शकुंतला ने शनिवार को बरवाला के जेवरा गांव में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सब्जियों की फसल पर आयोजित की जा रही महिला किसान खेत पाठशाला को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्यान भी मौजूद रहे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों द्वारा ग्रुप बनाकर करेला, मिर्च, बैंगन, भिंडी, घीया की बेल पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों के बारे में किसानों को बारिकी से जानकारी दी गई।
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि किसानों को भय व भ्रम के जाल में फंसाया जा रहा है। इसी के चलते शाकाहारी कीटों के डर से किसान फसलों पर अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पौधा एक दिन में साढ़े चार ग्राम भोजन बनाता है। डेढ़ ग्राम भोजन ऊपर के हिस्से, डेढ़ ग्राम भोजन जड़ व तने को देता है जबकि डेढ़ ग्राम भोजन को रिजर्व के तौर पर रखता है। ताकि मुसिबत के समय में
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं। |
रिजर्व भोजन का प्रयोग कर पौधा अपना जीवन बचा सके लेकिन अगर पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो उसके पास वह भोजन जमा हो जाता है। एकत्रित किए गए इस भोजन को निकालने के लिए ही पौधा भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाता है और शाकाहारी कीट इस अतिरिक्त भोजन को खाकर अपना गुजारा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में रक्तदान करता है। उसी प्रकार पौधे भी अपने इस अतिरिक्त भोजन को शाकाहारी कीटों को दान करते हैं। जब शाकाहारी कीटों की संख्या बढऩे लग जाती है तो इन्हें नियंत्रित करने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधे के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। पौधे व कीटों की इस प्रक्रिया में किसान का काम चल जाता है। उन्होंने बताया कि सब्जियों में इस समय सफेद मक्खी, तेला व माइट देखने को मिल रहे हैं। जबकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट बीटल, बीटल के बच्चे, क्राइसोपा, ड्रेगन फ्लाई, हथजोड़ा, कातिल बुगड़ा भी काफी संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि भिंडी में तेला ईटीएल लेवल से पार पहुंच चुका है और इसके चलते भिंडी में महज पांच प्रतिशत का नुकसान ही देखने को मिल रहा है। इसके अलावा दूसरी सब्जियों में कीटों की संख्या ईटीएल लेवल से कम ही दर्ज की गई है। किसी भी फसल में शाकाहारी कीट नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बैंगन की सब्जी में गोभ वाली सूंडी आई हुई है लेकिन इससे फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है। गोभवाली सूंडी के आने के बाद पौधा दूसरी फूट निकाल लेता है। इसलिए किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है।
चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती मास्टर ट्रेनर किसान। |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें