फिजूलखर्ची छोड़ जागरूकता के साथ धान की देखभाल करें किसान

थोड़ी सी सावधानी से ही किसान कर सकते हैं धान की फसल की बीमारियों का ऊपचार 
धान की फसल में ज्यादा पानी खड़ा रहने से पनपती हैं ज्यादातर बीमारियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा प्रदेश में खरीफ  की फसलों में से धान एक मुख्य फसल है। यह पानी की फसल होने के कारण इसमें फफूंद, जीवाणु, विषाणु से संबंधित बीमारियां आने का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। किसान जानकारी के अभाव में फसल को इन बीमारियों से बचाने के लिए अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। इससे फसल में किसान की लागत बढ़ती चली जाती है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से ही किसान पेस्टीसाइड पर होने वाले इस फिजूलखर्च से बच सकते हैं। धान की फसल में 16 से 17 किस्म की बीमारियां आती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन, शीत बलाइट, बदरा (ब्लास्ट) रोग, बकानी (पद गलन), जीवाणु अंगमारी, बैक्टेरियल लीफ  फलाइट, टुंगरा इत्यादी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें बीज ऊपचार कर तथा कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें फसल को पर्याप्त खुराक देकर रोका जा सकता है। बस इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। 

सीमित मात्रा में करें खाद का प्रयोग 

धान की फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को चाहिए कि वह धान की रोपाई के बाद 40 दिन तक ही फसल में यूरिया खाद डालें। यूरिया खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार में आधा कट्टे से ज्यादा खाद और पूरे सीजन में 110 किलो से ज्यादा यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। फसल की रोपाई के 40 दिन के बाद फसल में नीचे यूरिया खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल में चार अनुपात दो अनुपात एक के अनुसार खाद का प्रयोग करें। यानि के अगर फसल को चार किलो नाइट्रोजन देनी है तो उसमें दो किलो फास्फोर्स तथा एक किलो पोटास डालें। ताकि पौधों को पर्याप्त खुराक मिल सके।
धान की फसल के लिए खेत तैयार करता किसान।

फफुंदी से फैलने वाले रोग व उपचार 

धान की फसल में सात से आठ किस्म की ऐसी बीमारियां हैं जो फसल में अधिक पानी खड़ा रहने से होती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, पत्त गलन, शीत गलन, बदरा, शीत ब्लाइट नामक रोग फफुंदी से फैलने वाले रोग हैं। यदि फसल में इन रोगों के लक्षण नजर आने लगें तो किसान को फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए फसल में पानी को कम कर देना चाहिए। फसल में पानी कम कर इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। 

बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज

धान की फसल में बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज होती हैं। इसकी शुरूआत पत्ते, फिर तने और इसके बाद गर्दन पर होती है। इस रोग की शुरूआत में पत्ते पर आंख की निशान जैसे धब्बे हो जाते हैं। इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इस रोग से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि फसल के निसरते समय खेत में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए नमी रखें।  

टुंगरा रोग का नहीं कोई उपचार

धान की फसल में आने वाला टुंगरा रोग वायरस से फैलने वाला रोग है और इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इसलिए किसानों को इस रोग से फसल को बचाने के लिए पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए। इस रोग में धान की फसल में कुछ पौधे अन्य पौधों से लंबे बढ़ जाते हैं और फिर यह सफेद हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम केवल बीज ऊपचार से ही हो सकती है। 

खुराक की कमी से होने वाले रोग

धान की फसल में पीलिया व खैरा रोग खुराक की कमी से होते हैं। पीलिया रोग लोहे की कमी से होता है और खैरा रोग जिंक की कमी से होता है। इन रोगों से बचाने के लिए फसल को समय पर पर्याप्त मात्रा में खुराक की जरूरत होती है। 

ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची करते रहते हैं। जबकि किसान थोड़ी सी सावधानी से ही अधिकतर बीमारियों पर काबू पा सकते हैं। किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने से पहले बीज ऊपचार जरूर करना चाहिए। इसके बाद धान की फसल में अधिक पानी खड़ा नहीं करना चाहिए। जहां पर पानी खराब है, उस क्षेत्र के किसानों को फसल में अधिक पानी देने की बजाए केवल नमी रखनी चाहिए। यदि फसल में जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन इत्यादि रोग नजर आएं तो खेत का पानी सुखा देना चाहिए। खाद का प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकार, जींद


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