अध्यापकों की नर्सरी बना जींद जिले का ईक्कस गांव

2700 की आबादी वाले गांव में लगभग प्रत्येक घर में है सरकारी नौकरी, गांव में 100 से भी अधिक हैं अध्यापक

गांव में है सीनियर सेकेंडरी स्कूल व शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी गांव की विशेष पहचान

अर्जुन अवार्ड भी हासिल कर चुका है गांव का बास्केटबाल कोच

 गांव के बारे में जानकारी देते हरपाल व अन्य ग्रामीण।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर हिसार रोड पर स्थित ईक्कस गांव प्रदेश के लिए अध्यापकों की नर्सरी बन चुका है। महज 2700 की आबादी वाले इस गांव में लगभग प्रत्येक घर में एक अध्यापक है। गांव में शिक्षा का अच्छा प्रसार होने के कारण लगभग प्रत्येक घर में सरकारी नौकरी है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। ईक्कस गांव में 100 से भी अधिक अध्यापक हैं। गांव से निकलने वाले यह अध्यापक आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्कूलों में अपनी सेवाएं दे कर विद्यार्थियों को शिक्षा व संस्कार देने का काम कर रहे हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी ईक्कस की विशेष पहचान है। इस गांव से राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी भी निकल चुके हैं। इस गांव के एक खिलाड़ी को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने पर अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जहां ग्रामीणों में आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बना हुआ है, वहीं गांव का युवा वर्ग में भी जागरूकता होने के कारण वह नशे जैसी सामाजिक कुरीति से दूर है। गांव में शिक्षा के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि आजादी से कई वर्ष पहले ही इस गांव में स्कूल की स्थापना हो चुकी थी और आजादी के बाद 1987-88 में ग्रामीणों के प्रयास से गांव में
डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी। यह इसी सेंटर का परिणाम है कि गांव में सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। 

1927 में ग्रामीणों ने चंदे से बनवाई थी स्कूल की बिल्डिंग   

ग्रामीण हरपाल सिंह का कहना है कि गांव में आजादी से कई वर्ष पहले ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव है। वर्ष 1927 में ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाई थी। गांव में स्कूलबनने के बाद गांव में शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला। इसके बाद 1987-88 में गांव में डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी।

खेलों में भी है गांव की विशेष पहचान

गांव में शिक्षा के विस्तार के बारे में जानकारी देते मास्टर धज्जाराम।
ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी गांव की विशेष पहचान है। मास्टर ओम सिंह, मास्टर धज्जा सिंह, मास्टर भीम सिंह, मास्टर गज सिंह, मास्टर सतबीर सिंह ने कई वर्ष तक हरियाणा व पंजाब की कबड्डी की टीम में खेलते हुए टीम का मार्गदर्शन किया। इस गांव से कबड्डी व स्वीमिंग के कई अच्छे खिलाड़ी निकल चुके हैं।

लड़कों के साथ लड़कियों को भी मिला पढ़ाई का अवसर 

सेवानिवृत्ति मास्टर धज्जाराम का कहना है कि उन्होंने 1963  में गांव के स्कूल में प्राइमरी अध्यापक के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी लेकिन उनके गांव में ही स्कूल होने के कारण गांव की ज्यादातर लड़कियां पढ़ाई के लिए स्कूल आती थी। गांव के लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी शिक्षित होकर गांव का नाम रोशन किया।

परिवार से मिली अध्यापक बनने की प्रेरणा

गणित अध्यापिका राजलक्ष्मी का फोटो।
मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा मेरे परिवार से ही मिली। मेरे नाना जी भी अध्यापक थे और मेरे पिता जी भी अध्यापक थे। इसके बाद से ही हमारा पूरा परिवार अध्यापन की लाइन में है। मेरे भाई व भाभी भी अध्यापक हैं। मैं खुद भी गणित अध्यापिका हूं और पास के ही गांव ईंटल कलां के स्कूल में कार्यरत हूं। हमारे गांव में इस समय 100 से भी अध्यापक हैं। 
राजलक्ष्मी, गणित अध्यापिका

शिक्षा का हब बन चुका है गांव

अध्यापिका शालिन्दा का फोटो।
पूरे गांव में शिक्षा के प्रति अच्छा माहौल है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा गांव एक तरह से एजुकेशन का हब बन चुका है। गांव में सबसे अधिक सरकारी नौकरी हैं। मेरे पति भी अध्यापक हैं।
शालिन्दा, अध्यापिका

खेलों के क्षेत्र में तराश रहे युवाओं का भविष्य

स्वीमिंग कोच मनोज का फोटो।
गांव के ही डीपीई मनोज कुमार तथा हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर कार्यरत अशोक कुमार खेलों के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य संवार रहे हैं। डीपीई मनोज कुमार स्वीमिंग के कोच हैं तो एएसआई अशोक कुमार कबड्डी के कोच हैं और खेल कोटे से ही पुलिस में भर्ती हुए हैं। गांव से निकल कर जींद शहर में जाने के बावजूद भी यह दोनों कोच प्रतिदिन शाम को गांव में जाकर युवाओं को खेलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 150  के करीब खिलाड़ी इनसे खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई खिलाड़ी राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं।

अर्जुन अवार्ड हासिल कर चुके हैं कोच ओमप्रकाश

बास्केटबाल कोच ओमप्रकाश का फोटो।
बास्केट बाल कोच ओमप्रकाश ढुल ने बताया कि उन्होंने लगभग साढ़े 22 वर्ष तक आर्मी में सेवा दी और अब जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर सेवा दे रहे हैं। सेना में रहते हुए 1970-80 तक वह इंडिया टीम में खेले। 1975 में उनकी टीम एशिया की टॉप स्कोरर रही। सेना की तरफ से खेलते हुए लगातार 12 वर्ष तक उनकी टीम इंडिया में पहले स्थान की टीम रही। खेलों में उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें 1979-80 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद १९८५ में राष्ट्रपति द्वारा वशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।









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