किसानों द्वारा 10 वर्षों से हो रहा कीटों पर शोध

फसल में कीट ज्ञान पद्धति अपना कर किसान चार गुना तक कम कर सकते हैं लागत 
थाली को जहरमुक्त बनाने की जींद के किसानाें की अनूठी मुहिम

नरेंद्र कुंडू 
जींद।
किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलाें में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकाें व कीटनाशकाें का प्रयोग किया जाता है। इससे फसल में लागत अधिक बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है। इससे किसान कर्ज के दलदल में फंसकर आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। लेकिन जींद जिले के किसानों द्वारा फसल में लागत को कम कर उत्पादन बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान की अनोखी पद्धति इजाद की गई है। यहां के किसान पिछले दस वर्षों से फसलों में मौजूद कीटों पर शोध कर रहे हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ- सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में कीटों पर शोध का कार्य शुरू किया गया था। इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं। कीटाचार्य रणबीर मलिक, सुरेश,  रामदेवा, जगमेंद्र, सविता, अंग्रेजो, मनीषा इत्यादि का कहना है कि फसल के लिए भी कीट जरूरी हैं क्योंकि कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आकृषित करते हैं। कीट दो प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। शाकाहारी पौधों, फल, फूलों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं तो मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। यदि किसान शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो मांसाहारी कीट उन्हें स्वयं ही नियंत्रित कर लेते हैं। कीटनाशकाें के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए उल्टी बढ़ती है। मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। उन्होंने अभी तक 43 किस्म के शाकाहारी तथा 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों से फसल पर पड़ने वाले प्रभाव पर काफी गहराई से शोध किया है। उत्पादन बढ़ाने में कीटनाशकों का कोई योगदान नहीं है। उत्पादन बढ़ाने के लिए पौधों को पोषक तत्व की जरूरत पड़ती है। इनकी इस पद्धति पर मोहर लगाने वालीो राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि इन किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की पद्धति को अपनाकर किसान फसल मे रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को चार गुणा तक कम कर डेढ़ गुणा तक उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। वहीं   रासायनिक उर्वरकों से दूषित होने वाले खान-पान व वातावरण को भी बचाया जा सकता है।


पंजाब में भी दे रहे कीट ज्ञान का प्रशिक्षण
पिछले दो वर्षों से जींद जिले के कीटाचार्य किसान अपने खर्च पर पंजाब के भठिंडा, मानसा व बरनाला जिलों में किसान खेत पाठशालाएं चलाकर किसानों को कीट ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। कीट ज्ञान के सहारे किसानों द्वारा कपास, धान, गेहूं, गन्ना तथा सब्जियों की फसलों में बिना कीटनाशकाें का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया जा रहा है।  





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