व्यवसायिक खेती ने बदली किसानों की तकदीर

बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती से अटेरना और मनोली के किसानों से विदेशों में भी बनाई पहचान 
नरेंद्र कुंडू 
सोनीपत।

आज खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। खेती में लागत अधिक होने तथा पैदावार कम होने के कारण किसान खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। लेकिन हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले के दो गांव ऐसे हैं, जहां के किसानाें ने हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के नक्शे पर अपनी सफलता की छाप छोड़ी है। दिल्ली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे-1 पर स्थित बहालगढ़ से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित अटेरना तथा पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित मनोली के किसानाें ने खेती को व्यवसाय के तौर पर अपना लिया है। इन गांवाें के किसानों ने अपनी परंपरागत खेती को छोड़कर बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती को अपनी आमदनी का जरिया बनाया है। इतना ही नहीं बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के उत्पादन में इन दोनों गांवों के किसानों ने इतनी प्रसिद्धी हासिल की है कि विदेशों से भी किसान यहां खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं। मनोली गांव निवासी दिनेश ने बताया कि बीएससी की  पढ़ाई के बाद से उसने नौकरी की बजाए खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाया। दिनेश ने बताया कि पहले उनके गांव मनोली में ज्यादातर क्षेत्र में धान की खेती होती थी। भारी मात्र में भूजल का दोहन होता था। इससे गांव का भूजल स्तर काफी नीचे चला गया था। इसको देखते हुए उसने खेती में कुछ अलग करने की ठानी। 1998 में स्ट्राबेरी की खेती शुरू की। इसके बाद उसने अपने दोस्त अरूण के साथ मिलकर स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की। शुरूआत में मार्केटिंग को लेकर थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन बाद में फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ सीधे सम्पर्क होने से उनकी मार्केट की समस्या भी खत्म हो गई। देखते ही देखते स्वीट कॉर्न की खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित होने लगी। इसके बाद उन्होंने दूसरे किसानाें को भी इसके लिए प्रेरित किया। उन्हाेंने बताया कि 4500 की आबादी वाले इस गांव के अधिकतर किसान स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं। इससे फसलाें में कीटनाशकाें का प्रयोग बिल्कुल बंद हो गया। पानी की लागत कम होने से भूजल का दोहन बंद हो गया। जमीन का स्वास्थ्य स्तर सुधरने लगा। वातावरण स्वच्छ होने लगा। गांव में ही लोगाें को रोजगार मिलने से गांव से लोगाें का पलायन बंद हो गया। पशुआें को पूरे साल हरा चारा मिलता है, इससे पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई है।

अब बागवानी के लिए भी करेंगे किसानों को प्रेरित 
किसान अरुण, दिनेश, जयद्रथ, प्रवीण व पवन ने बताया कि उन्होंने किसानों का एक ग्रुप बनाया हुआ है। इस ग्रुप में शामिल सभी किसानों द्वारा अपने खेतों में पॉली हाऊस भी लगाए हुए हैं। पॉली हाऊस में उगने वाली सब्जियों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए बॉयोगैस से निर्मित देशी खाद का प्रयोग करते हैं। इस खाद को घोल कर ड्रिप के जरिये पानी के साथ सब्जियों पर इसका छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा कुछ किसानों द्वारा बाग भी लगाए हुए हैं। सब्जियों व स्वीट कॉर्न की खेती के साथ-साथ अब वह किसानाें को बागवानी के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं।
फसल चक्र बदलने से इन गांवों को यह हुआ फायदा
 फसल चक्र में बदलाव से जमीन का स्वास्थ्य स्तर सुधरा है। धान की रोपाई बंद होने से पानी की बचत हुई है। पशुओं के लिए हर माह हरा चारा प्रचुर मात्र में उपलब्ध रहता है। कीटनाशकों का प्रयोग बंद हो गया है। वातावरण में सुधार हुआ है। गांव में ही लोगों को रोजगार मिलने से गांव के लोगों का पलायन रूका है। कैश की फसल का चलन बढ़ने से गांव का आर्थिक स्तर सुधरा है। फूड प्रोसेसिंग कंपनियाें द्वारा सब्जियों के उत्पादन के लिए सीधे किसानों से संपर्क किए जाने से किसानाें को उत्पाद बेचने के लिए एक नई मार्केट उपलब्ध हो गई। बाजार भाव कम रहने के दिनों में प्रोसेसिंग प्लांट में फसल बेचने से आर्थिक नुक्सान नहीं होता।
किसान की फूड, फीड, फोडर, फ्रयूल, फाइनेंस की चिंता खत्म
सेवानिवृत्त कृषि वैज्ञानिक डॉ- साईं दास ने कहा कि अटेरना व मनोली के किसानों ने आस-पास के क्षेत्रें में भी रोजगार की असीमित संभावनाएं पैदा कर यह दिखा दिया है कि स्वप्न केवल देखने के लिए ही नहीं होते किंतु उन्हें धरातल पर भी उतारा जा सकता है। आने वाला समय मक्का खेती का है।। क्योंकि इसमें पानी की लागत तथा रसायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नामात्र है और आर्थिक लाभ अधिकतम है। किसान को फूड, फीड, फोडर, फ्रयूल, फाइनेंस की चिंता करने की भी आवश्यकता नहीं है। यदि हम खेती में संतुलित पोषक तत्व डालते रहें तो हमें अनावश्यक खर्चों से निजात मिल जाएगी।


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