‘विद्यार्थियों में बढ़ता तनाव’

नरेंद्र कुंडू 
प्रसिद्ध चिंतक अरस्तू ने कहा था कि आप मुझे 100 अच्छी माताएं दें तो मैं तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूंगा। मां के हाथों में राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है किंतु आज ऐसी माताओं व सोच की कमी महसूस हो रही है। जीवन स्तर बढ़ने के साथ-साथ भौतिक प्रतिस्पर्धा भी अपने चरम पर है, जिसका दुष्प्रभाव तनाव युत्तफ़ जीवनशैली से आत्महत्या का बढ़ता चलन देखने में आ रहा है। बड़े दुःख  विषय है आज विद्यार्थियों में लगन व मेहनत से विद्या ग्रहण करने की प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है। वे जीवन के हर क्षेत्र में शॉर्टकट मार्ग अपनाना चाहते हैं और असफल रहने पर गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई और करियर का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वे ये समझना ही नहीं चाहते की प्रत्येक बच्चे की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है जिसके चलते हर विद्यार्थी कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता। बाल्यकाल से ही बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि असफलता ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। बच्चों में आत्मविश्वास की कमी भी एक बहुत बड़ा कारक है। आज खुशहाली के मायने बदल रहे हैं अभिभावक अपने बच्चाें को हर क्षेत्र में अव्वल देऽने व सामाजिक दिखवे के चलते उन्हें मार्ग से भटका रहे हैं। वास्तविकता यह है कि गरीब बच्चे फिर भी संघर्षपूर्ण जीवन में मेहनत व हौंसले के बलबूते अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। किन्तु अक्सर धन-वैभव से भरे घरों में अधिक तनाव का माहौल होता है और एक-दूसरे से अधिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं। शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे वक्त से पहले परिपक्व हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप वे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं और अपने द्वारा लिए गए निर्णयों के अनुसार अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने पर आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं। आज परिवार अपने मौलिक स्वरूप से भटक कर आधुनिकतावाद की बलिवेदी पर होम हो रहे हैं। अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे मशीन या रोबोट नहीं है। बच्चाें को बचपन से अच्छे संस्कार दिये जाने चाहिएं ताकि वे अपनी मंजिल खुद चुनें किन्तु आत्मविश्वास न खोएं। आज की शिक्षा बच्चो को डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह चरित्रवान इंसान बने, इसकी उपेक्षा करती है। एक पक्षी को ऊंची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को देनी होगी। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका योग्य और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाएगी। 

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