हिसार लोकसभा सीट पर इस बार राजनेताओं की होगी अग्निपरीक्षा

इस बार हिसार लोकसभा में बदले राजनीतिक समीकरण  
हजकां-कांग्रेस एक साथ तो इनेलो दो टुकड़ों में बंटी, भाजपा भी कमल खिलाने के लिए लगाएगी एडी-चोटी का जोर
2014 में भजन लाल व देवीलाल परिवारों की प्रतिष्ठा थी दाव पर, भजन लाल परिवार को हार का करना पड़ा था सामना

जींद, 14 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा में लोकसभा चुनाव में रोहतक के बाद सबसे ज्यादा हॉट सीट हिसार की है। हालांकि पिछले लोकसभा चुुनाव में हिसार संसदीय सीट सबसे ज्यादा हॉट सीट थी और यहां पर कई राजनीतिक परिवारों की प्रतिष्ठा दांंव पर लग गई थी। यहां पर इनेलो के दुष्यंत चौटाला ने जीत दर्ज की थी, दुष्यंत चौटाला ने हाल ही में अपनी नई पार्टी जेजेपी बनाई है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो हिसार में चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार के बीच सीधी टक्कर थी। इस बार फिर से यहां पर टक्कर कांटे की होने की संभावना है। पिछले चुनाव में हिसार में चुनावी दंगल में कांग्रेस सांसद की दौड़ से बाहर हो गई थी और जमानत भी नहीं बचा पाई थी। दरअसल 2004 के परिसीमन के बाद हिसार लोकसभा का स्वरुप बहुत बदल गया था। पहले पूरा जींद जिला इस लोकसभा में था जिसमें से अब सिर्फ उचाना ही रह गया था। कैथल जिले की कलायत विधानसभा सीट भी पहले हिसार लोकसभा का हिस्सा थी जिससे कुरुक्षेत्र से जोड़ दिया गया था। भिवानी जिले का बवानीखेड़ा इसमें जोड़ा गया और आदमपुर भी हिसार लोकसभा का हिस्सा बन गया। कुल मिलाकर हिसार सीट पर जींद क्षेत्र से मजबूत जयप्रकाश और सुरेंद्र बरवाला जैसे नेताओं की पकड़ ढीली पड़ गई और भजनलाल परिवार का दबदबा इस सीट पर बढ़ गया। इस बात को चौटाला परिवार ने जल्दी ही समझ लिया था और चौटाला परिवार से दुष्यंत चौटाला को मैदान में उतार दिया गया था, लेकिन कांग्रेस कहीं न कहीं चूक कर गई। हिसार लोकसभा सीट जाट बहुल सीट रही है और यहां पर 1977 से 2004 तक जाट नेता ही सांसद रहे हैं जिसमें मनीराम बागड़ी, चौ. बीरेंद्र सिंह, जयप्रकाश, सुरेंद्र बरवाला जैसे नेता रहे हैं। सबसे ज्यादा तीन बार सांसद जयप्रकाश यहां पर रहे हैं और 1989 में यहीं से जीतकर वो केंद्रीय मंत्री बने थे। भजनलाल परिवार से खुद भजनलाल 2009 में और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई 2011 में यहां से उपचुनाव में सांसद चुने गए थे। ओमप्रकाश चौटाला, ओपी जिंदल, संपत सिंह और अजय सिंह चौटाला ने भी यहां पर किस्मत आजमाई लेकिन हिसार ने उन्हें लोकसभा नहीं भेजा। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने तो यहां पर एकमात्र लोकसभा चुनाव हिसार से ही 1984 में लड़ा था और उसी में वो कांग्रेस के चौधरी बीरेंद्र सिंह से हार गए थे। राजनीतिक परिदृश्य से हिसार की सीट हमेशा से ही हॉट सीट रही है और 2014 में यहां की सरगर्मी अपने चरम पर थी। राज्य के दो बड़े राजनीतिक परिवारों के युवराज अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए यहां पर चुनाणी रण में उतरे हुए थे। यह दूसरा मौका था जब चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार दूसरी बार आमने-सामने थे। 2011 में भजनलाल के निधन के बाद उपचुनाव में चौटाला परिवार की तरफ से अजय सिंह चौटाला और भजनलाल परिवार की तरफ से कुलदीप बिशनोई मैदान में थे। जिसमें कुलदीप बिश्नोई ने अजय सिंह को करीब 6300 वोटों से हरा दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट हजकां और बीजेपी के गठबंधन के तहत हजकां के पाले में थी। लोकसभा चुनाव में हजकां की तरफ से कुलदीप बिश्नोई का चुनाव लडऩा तय था, क्योंकि वो 2011 में सांसद चुनकर आए थे। कुलदीप बिश्नोई 2004 में भिवानी लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे तब उन्होंने हविपा के सुरेंद्र सिंह और इनेलो के अजय सिंह चौटाला को हराया था। वे 1998 उपचुनाव और 2009 के आदपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा के सदस्य बने थे। कुलदीप बिश्नोई हरियाणा जनहित के सुप्रीमो थे। चौधरी भजनलाल के स्वर्गवास के बाद वो ही चुनाव लड़ रहे थे। 2014 के चुनाव में हजकां और भाजपा का गठबंधन था और भाजपा 8 सीटों पर और हजकां दो सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। हजकां के हिस्से में हिसार और सिरसा लोकसभा क्षेत्र थे। नरेंद्र मोदी की उस वक्त लहर थी लेकिन नरेंद्र मोदी उस वक्त हिसार और सिरसा के लिए वक्त नहीं निकाल पाए थे, हालांकि हरियाणा की अन्य लोकसभा सीटों पर उन्होंने रैलियां की थी। फतेहाबाद में हजकां-भाजपा की नरेंद्र मोदी की रैली रखी गई थी लेकिन वो रद्द कर दी गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई करीब 30 हजार वोटों से पिछड़ गए थे। कुलदीप बिश्नोई को आदमपुर, हिसार, बरवाला और हांसी विधानसभा क्षेत्रों से बढ़त मिली थी लेकिन उचाना, नारनौंद और उकलाना की सीटों पर काफी नुक्सान हुआ था और इनेलो ने यहां पर बड़ी बढ़त बनाई थी। इन तीन हलकों को मिली इनेलो को बढ़त को वो छह हलकों में भी तोड़ नहीं पाए थे। कुलदीप बिश्नोई को इस मतदान में 40 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2009 में भजनलाल को यहां पर 30 फीसदी वोट ही मिले थे। 2009 से पहले हिसार लोकसभा सीट पर भजनलाल परिवार चुनाव नहीं लड़ता था। क्योंकि तब इस सीट में पूरा जींद जिला आता था और भजनलाल का पैतृक इलाका आदमपुर इसका हिस्सा नहीं था लेकिन परिसीमन के बाद इस लोकसभा क्षेत्र का स्वरुप ही बदल गया था और भजनलाल परिवार की इस लोकसभा सीट पर भागीदारी बढ़ गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल परिवार की चौथी पीढ़ी चुनावी दंगल में थी। यहां पर युवा चेहरे दुष्यंत चौटाला को चुनाव में उतारा गया था। विदेश से पढ़कर आए दुष्यंत चौटाला ने विकट परिस्थितियों में राजनीति में कदम रखा था उनके पिता अजय सिंह चौटाला और दादा ओमप्रकाश चौटाला के जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में जेल हो चुकी थी, ऐसे में महज 25 साल की उम्र में ही दुष्यंत चौटाला राजनीति में कूद गए थे। दुष्यंत चौटाला का यहां पर कदम मजबूती के साथ रखा और जीत के साथ आगे बढ़े। 2014 लोकसभा चुनाव में हिसार को जीतना इनेलो के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी क्योंकि साल 2011 के उपचुनाव में अजय सिंह की हार हुई थी। अजय सिंह चौटाला यहां पर 6223 वोटों से कुलदीप बिश्नोई से हारे हुए थे। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने उचाना, नारनौंद और उकलाना विधानसभा सीटों पर जबरदस्त जीत दर्ज की, हालांकि वो छह विधानसभा क्षेत्रों में कुलदीप बिश्नोई से पिछड़ गए थे लेकिन फिर भी कुलदीप बिश्नोई उनकी जीत को नहीं रोक पाए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने कुल 4 लाख 94 हजार 478 वोट हासिल किये थे जोकि मतदान का कुल 42 फीसदी से ज्यादा था, जबकि 2009 में यहां पर इनेलो के उम्मीदवार संपत सिंह ने 29 फीसदी वोट ही हासिल किए थे। इस चुनाव में इनेलो कार्यकर्ताओं ने दुष्यंत के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी थी। लोकसभा चुनाव के वक्त उचाना और नारनौंद में ही इनेलो के विधायक थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में इनेलो ने नलवा, बरवाला और उकलाना सीट पर जीत दर्ज की। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने संपत्त सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था। संपत्त सिंह उस वक्त नलवा से विधायक थे और उन्ही को कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में उतारा गया था। संपत्त सिंह का ज्यादा लंबा राजनीतिक सफर लोकदल के साथ ही रहा था वो चौधरी देवीलाल के निजी सचिव के रुप में राजनीति में आए थे और संपत्त सिंह ने पहला चुनाव 1980 में लड़ा था जब ताऊ देवीलाल के संसद चले जाने पर भट्टू विधानसभा सीट खाली हो गई थी। 1982 में वे पहली बार विधानसभा पहुंचे थे और 1987 में दोबारा चुने गए और कई विभागों के मंत्री भी उस वक्त रहे। साल 1991 में भट्टू सीट से ही चुनाव जीतकर भजनलाल सरकार के सामने नेता प्रतिपक्ष के रुप में रहे। इसके बाद संपत्त सिहं ने 1998 में उपचुनाव में जीतकर फिर से विधानसभा पहुंचे। 2000 में फिर से वो भट्टू से जीते और चौटाला सरकार में वित्तमंत्री रहे। संपत्त सिंह ने एक चुनाव फतेहाबाद और एक उपचुनाव आदमपुर से भी लड़ा था लेकिन वो यहां पर जीत नहीं पाए थे। 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद संपत्त सिंह का चौटाला परिवार के साथ मनमुटाव हो गया था और उन्होने इनेलो छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कांग्रेस ने संपत्त सिंह को नलवा से प्रत्याशी बनाया जहां पर वो जीतकर छठी बार विधानसभा पहुंचे। 2009 के विधानसभा चुनाव में संपत्त सिंह ने स्वं. भजनलाल की पत्नी जस्मा देवी को हराया था। यह भजनलाल परिवार के लिए हरियाणा विधानसभा के चुनावों में पहली हार थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में 1999 में भजनलाल खुद करनाल लोकसभा सीट से हारे थे। इसके अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में भी जस्मा देवी, चंद्र मोहन बिश्नोई और 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई को हार का सामना करना पड़ा था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जयप्रकाश के कांग्रेस की टिकट पर मना करने के बाद कांग्रेस ने संपत्त सिंह को टिकट थमा दी थी। संपत्त सिंह अपनी राजनीतिक पारी का दूसरा लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। इससे पहले 2009 में इनेलो की तरफ से वो हिसार में ही चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे अब कांग्रेस ने उन पर दांव खेला था। 2014 के लोकसभा चुनाव में हिसार में चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार के आमने-सामने आने के बाद टक्कर में हो गया और कांग्रेस के संपत्त सिंह पिछड़ गए। संपत सिंह ने अपना प्रयास जारी रखा था लेकिन फिर भी वो अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। उनको करीब एक लाख वोट मिले थे लेकिन उस वक्त लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा था। इस बार के लोकसभा चुनाव में अब सभी राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं। हजकां और कांग्रेस एक साथ हो चुकी है तो इनेलो से एक नई पार्टी जेजेपी निकल चुकी है वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में हिसार से बीजेपी भी ऐडी चोटी का जोर लगा रही है।

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