भावी पीढ़ी को विरासत में देना होगा पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान

विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नए-नए आविष्कारों की स्पर्धा के कारण आज का मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। दूसरी ओर धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति प्रकृति के हरे-भरे क्षेत्रों को समाप्त करती जा रही है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इसके पश्चात् सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए। वस्तुत: पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है अन्यथा मंगल व अन्य ग्रहों की तरह धरती का जीवन-चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव हैं जो बहुत घातक हैं। जैसे आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का अनुवांशिक प्रभाव, वायुमंडल का तापमान बढऩा, ओजोन परत की हानि, भू-क्षरण आदि ऐसे घातक दुष्प्रभाव हैं। प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल, वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना, मानव शरीर का अनेक नए रोगों की चपेट में आना आदि देखे जा रहे हैं। बड़े कारखानों से विषेला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्र लगातार बढ़ रही है। अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी, समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रसायनिक तत्व घुलते हैं जो नदियों के जल को विषाक्तकर देते हैं। परिणाम स्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर हम देखते हैं कि उसी प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में लेते हैं जिससे उपजाऊ भूमि भी विषेली हो जाती है। उसमें उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषेला बना देते हैं। पर्यावरण संरक्षण से वायु, जल और भूमि प्रदूषण कम होता है। जैव विविधता की सुरक्षा


सुनिश्चित करने के लिए, सभी के सतत् विकास के लिए, हमारे ग्रह को ग्लोबल वार्मिंग जैसे हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण महत्वपूर्ण है। यह हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे समाज, वास्तव में हमारे अस्तित्व को रेखांकित करता है। हमारे जंगल, नदियां, महासागर और मिट्टी हमें वह भोजन प्रदान करते हैं जो हम खाते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, जिस पानी से हम अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं। हम अपने स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि के लिए कई अन्य वस्तुओं और सेवाओं के लिए भी पर्यावरण पर निर्भर हैं। इसलिए मानव जीवन में पर्यावरण का बहुत महत्व है। पर्यावरण में सूर्य के प्रकाश, जल, वायु और मिट्टी के तत्व शामिल हैं, जो सभी मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। यह आनुवंशिक विविधता और जैव विविधता को बनाए रखते हुए जीवन की निरंतरता सुनिश्चित करता है। कहने का तात्पर्य यही है कि यदि हम अपने कल को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा का समुचित ज्ञान समय-समय पर देते रहें और स्वयं भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक रहें। 


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