बेटियां सौदे की वस्तु नहीं होती......

विनोद सिंगरोहा

सरपंच, ढिगाना

9466550498

दिलीप सिंह गांव का एक साधारण किसान था, जिसके दो लडक़े थे। बड़े लडक़े का नाम सुरेश व छोटे लडक़े का नाम संदीप था। बड़े लडक़े की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी जबकि छोटे लडक़े संदीप की पढ़ाई पूरी होने को थी। बड़े लडक़े सुरेश का प्रेम प्रसंग अपने ही दूसरी जाति की लडक़ी से चल रहा था। उस लडक़ी का नाम रीना (काल्पनिक) था। मगर दोनों ही अपने-अपने घर वालों से शादी की बात कहने से डरते थे। दोनों ही इस बात को बखूबी जानते थे कि अलग-अलग जातियां होने के कारण घर वाले इस बात की इजाजत बिल्कुल नहीं देंगे। एक दिन सुरेश हिम्मत जुटाकर अपने पिता दिलीप सिंह के पास गया

सुरेश-‘पिता जी मैं एक लडक़ी को पसंद करता हूं। वह बहुत अच्छी लडक़ी है। मेरे और उसके दोनों के विचार मिलते हैं’। 

दिलीप सिंह-‘खानदान कैसा है और लडक़ी क्या करती है’।

सुरेश-‘पिताजी खानदान अच्छा है। हम दोनों ने एक साथ ही अपनी पढ़ाई पूरी की है’। 

दिलीप सिंह-‘बहुत अच्छा है, भला हमें क्या अड़चन है। तुम्हारी पसंद हमारी पसंद, जब हमारा बेटा राजी है तो हमें कोई एतराज नहीं।’

सुरेश हिचकिचाते हुए :- ‘एक अड़चन है पिता जी।’

दिलीप सिंह- ‘लडक़ी दूसरी जाति की है।’

दिलीप सिंह क्रोध से चेहरा लाल करते हए -‘फिर ये शादी हरगिज नहीं हो सकती, समाज में हमारी जात बिगड़ जाएगी, हम क्या मूंह दिखाएंगे, मेरी नजरों से दूर चला जा, नहीं तो मेरे हाथों तेरा खून हो जाएगा। ये शादी बिल्कुल नहीं हो सकती’।

लडक़ा मायूस होकर चला जाता है। अगले दिन खबर आती है कि दोनों ने भागकर घरवालों की मर्जी के खिलाफ कोर्ट में शादी कर ली। खबर मिलते ही दिलीप सिंह आग बबूला हो गया। अपनी पत्नी कमला देवी के कहने पर भी नहीं माना। अपने परिवार के दो-चार व्यक्तियों को अपने षड्यंत्र में साथ मिला लिया। अपने लडक़े सुरेश व उसकी पत्नी रीना को ढूंढऩे के लिए निकल पड़े और आखिरकार सफलता हाथ लगी। दोनों को मौत के घाट उतार दिया। कोर्ट केस दर्ज हुआ। जमानत पर बाहर आ गए। तारीख चलती गई। तीन वर्ष बीत गए, केस चलता रहा। इसी बीच छोटे लडक़े संदीप की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी मगर घर पर कोई रिश्ते वाला नहीं आ रहा था। 

दिलीप सिंह की पत्नी कमला देवी :- आपको कुछ चिंता है या नहीं, संदीप की उम्र हो गई शादी की, कोई रिश्ते वाला नहीं आ रहा, बेटे का रिश्ता कैसे होगा? दिलीप सिंह- लड़कियां क्या पेड़ पर उगती हैं जो तोडक़र ला दूं। कहां से लाऊं मैं रिश्ता। हरियाणा से तो कोई रिश्ता होना मुश्किल है। कोई बिहार या बंगाल से लडक़ी देखनी पड़ेगी। मैं बात करुंगा, मेरा एक जानकार है जो बिहार या बंगाल में रिश्ता करवाता है। दो लाख रुपए लगते हैं। ठीक उसके बाद दो लाख रुपए में सौदा करके बिहार से लडक़ी लाने की तैयारी की जाती है। बिचौलिया बिहार जाकर बिहारी लडक़ी के पिता बाबूलाल से दो लाख रुपए में सौदा करता है। सौदा तय होता है और लडक़ी दिलीप सिंह के घर पर बहू के रूप में आ जाती है। इसके बाद कोर्ट की सुनवाई की तारीख आती है तो रीना के घरवालों की तरफ से केस दर्ज था। संयोग से उस दिन बिहारी लडक़ी के पिता बाबूलाल भी दिलीप सिंह के घर आए हुए थे। वो भी दिलीप सिंह के परिवार के साथ कोर्ट की सुनवाई में गए और उधर से रीना के परिवार से भी कोर्ट की सुनवाई शुरु हो गई। 

मृतक रीना का वकील जज से- जज साहब मैंने इस केस को अच्छे से पढ़ा है और समझा है। रीना के वकील ने कुछ दस्तावेज जज साहब के सामने रखे और कहा माई लॉड ये रहे वो सबूत जो ये साबित करते हैं कि अपनी बहू रीना और सुरेश का खून दिलीप सिंह और उसके परिवार ने ही किया है क्योंकि दोनों की जातियां अलग-अलग थी। दिलीप सिंह के सामने इसके बड़े लडक़े सुरेश ने रीना के साथ शादी का प्रस्ताव रखा था। मगर दिलीप सिंह ने जाति का हवाला देकर ये कहकर इंकार कर दिया कि वो हमारी जाति की नहीं है। माई लॉड मैं ये नहीं कहता कि बच्चों को मां-बाप की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करनी चाहिए। बच्चों को मां-बाप की मर्जी से शादी करनी चाहिए। अपने फैंसले में मां-बाप की स्वीकृति जरुर लें। मेरा तो सिर्फ इतना ही कहना है कि जब हरियाणा के अलग-अलग जातियों का लडक़ा व लडक़ी शादी करना चाहते हैं तो समाज और परिवार उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है जैसे दिलीप सिंह ने अपने बड़े लडक़े से कहा था कि ‘मेरी जात बिगड़ जाएगी’। माई लॉड अब जब दिलीप सिंह अपने छोटे लडक़े के लिए दो लाख रुपए देकर सारे परिवार की सहमति से खुशी-खुशी बिहार से लडक़ी लेकर बहू के रूप में लेकर आया है तो मैं दिलीप सिंह से पूछना चाहता हूं कि वो किस जाति की है? क्या बिहार में जाति मिलाई थी? बिहार से लडक़ी लाने में तुम्हारी जात क्यों नहीं बिगड़ी? माई लॉड दिलीप सिंह और उसके परिवार के साथ यहां एक अपराधी और बैठा है और वो है बिहारी लडक़ी का पिता बाबूलाल, जिसने दो लाख रुपए लेकर अपनी लडक़ी का सौदा किया। पहले मैं बाबूलाल से पूछना चाहता हूं कि वो एक बेटी के बाप हैं या बेटी के सौदागर। माई लॉड सौदा वस्तुओं का होता है, इंसानों का नहीं। मैं बाबूलाल से पूछना चाहता हूं कि किसने अधिकार दिया उसे अपनी बेटी का सौदा करने का। गरीब होने का मतलब ये नहीं है कि इंसान अपनी बेटियों का सौदा करना शुरु कर दे। आपने उसे पैदा किा है तो इसका मतलब आप बेटी का सौदा करोगे? आपने बेटी को बहू बनाकर भेजा है या वस्तु समझकर बेचा है। अगर आप अपनी बेटी की जगह होते और कोई आपका सौदा करता तो? 

लडक़ी पक्ष का वकील दिलीप सिंह की

तरफ इशारा करते हुए-‘और आप वहां पर बहू लेने गए थे या वस्तु लेने गए थे। आप रिश्तेदार बनकर गए थे या एक व्यापारी बनकर’। 

वकील जज से- माई लॉड कसूर दोनों का है। विवाह की आड़ लेकर बेटियों का सौदा करने में उतना ही दोषी लडक़ी का बाप बाबूलाल है जितना खरीदने वाला दिलीप सिंह है। दोनों ही बराबर के दोषी हैं। हम पुरुषों ने विवाह की आड़ लेकर लड़कियों को सौदे की वस्तु बना दिया। खरीदकर लाई गई लडक़ी इस हीन भावना से ग्रसित रहती है कि उसे सम्मान से बहू होने का गौरव भी नहीं मिला और वो इस विचार से जिंदगी भर नहीं निकल पाती। पैसे देकर खरीद गई वस्तु गुलामी की निशानी होती है। सम्मान और आदर की नहीं। शादी का बंधन पैसे पर नहीं प्रेम के बलबुते पर टिका हुआ होना चाहिए। माई लॉड आज एक ऐसा फैसला सुनाई कि इतिहास बन जाए। 

जज साहब फैसला सुनाते हुए- ‘सारे सबूतों और गवाहों के मद्देनजर रखते हुए अदालत ये फैसला सुनाती है कि मुजरिम दिलीप सिंह और उसके परिवार ने ही सुरेश और रीना का खून किया है। इसके साथ ही कोर्ट बाबूलाल को भी दोषी करार देती है। बेटियों का सौदा करने वाला बाप और बहू के रूप में खरीदने वाला ससुर दोनों ही बराबर के अपराधी हैं। बेटियां सौदे की वस्तु नहीं होती, सम्मान का प्रतीक होती हैं। बेटियों को सह-सम्मान के साथ बहू के रूप में ही लाया जाए, खरीदकर वस्तु के रूप में नहीं। नारी देश के किसी भी कोने से ताल्लुक रखती हो उसका हर जगह सत्कार होना चाहिए। इसलिए ये अदालत दिलीप सिंह, उसके परिवार को आजीवन कारावास व बाबूलाल को 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाती है। अगर भविष्य में इस तरह विवाह की आड़ लेकर बेटियों की खरीद-फरोख्त करेगा तो वो भी दंड का अधिकारी होगा। 


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