बुधवार, 20 मई 2015

बेजुबान चित्रों में रंगों से जान फूंक रहे कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक

राष्ट्रपति भवन तथा कई म्यूजिमों में शोभा बढ़ा रही दीपक की पेंटिंगें
पेंटिंग प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं दीपक कौशिक 

नरेंद्र कुंडू
जींद। भले ही रंग बेजुबान होते हैं लेकिन रंगों की भाषा के भाव पढऩे वाले या यूं कहे कि रंगों को समझने वाले कद्रदान इस भाषा को पढ़ते भी हैं और सुनते भी। शहर के रामराये गेट निवासी चित्रकार दीपक कौशिक भी कुछ इसी तरह से इन रंगों का दीवाना है। चित्रकार दीपक कौशिक चित्रकला में इतना निपूर्ण है कि वह रंगों से बेजुबान चित्रों व मूर्तियों में जान डाल देता है। दीपक कौशिक की उंगलियों में ऐसा जादू है कि उसकी उंगलियां जिस भी चित्र को छू लेती हैं वह एकदम से संजीव हो जाती है या यूं कहे की वह एक तरह से बोलने लगती है। दीपक कौशिक मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) की डिग्री हासिल करने के बाद से गोपाल स्कूल में कला अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है और यहां बच्चों को कला के गुर सिखा रहा है। दीपक कौशिक की कला का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा तराशे गए आठ बच्चे भी स्टेट गर्वनर अवार्ड हासिल कर चुके हैं। आर्टिस्ट दीपक द्वारा तैयार की गई कई पेंटिंगें आज भी कई म्यूजियमों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की शोभा बढ़ा रही हैं। दीपक द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में ऐसा जादू है कि कोई भी व्यक्ति न चाहते हुए भी अपने आप कलाकृति की तरफ आकर्षित हो जाता है। आर्टिस्ट दीपक वॉटर कलर पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, मिक्स मीडिया, कोलाज मूर्तिकला, पैंसील, चॉरकोल, पेस्टल, ड्राय पेस्टल सभी कलाओं में पारंगत है। इतना ही नहीं दीपक समय-समय पर अपनी पेंटिंगों के माध्यम से लोगों को सामाजिक कुरीतियों के बारे में भी जागृत करने का काम करता रहता है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल द्वारा शराबबंदी के दौरान लोगों को नशे के प्रति जागरूक करने के लिए भी दीपक ने काफी काम किया है। नशाखोरी पर पेंटिंगें बनाकर दीपक ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इसी के चलते दीपक को सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं दीपक एक अच्छा कार्टुनिस्ट भी है। दीपक पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, सांसद रमेश कौशिक सहित कई राजनेताओं व अन्य हस्तियों के अच्छे-अच्छे कार्टून तैयार कर उन्हें भेंट कर चुका है।

पिता से मिली पेंटिंग करने की प्रेरणा  

आर्टिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि उसे पेटिंग करने की प्रेरणा अपने पिता से मिली है। दीपक के पिता ज्योतिषी हैं और उस समय में हाथ से जन्मपत्री तैयार की जाती थी। दीपक अपने पिता की बची हुई पेंसिलों से पेंटिंग करने लगा तो पिता ने अपने बेटे की कला को परखते हुए उसे पेंटिंग करने के लिए सामान उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। इस तरह धीरे-धीरे पेंटिंग के प्रति दीपक का रूझान बढऩे लगा। १२वीं की परीक्षा पास करने के बाद दीपक ने पढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन उसके मन में कुछ सीखने की इच्छा थी। इसके बाद दीपक ने 2005 में चंडीगढ़ के राजकीय कला महाविद्यालय में मूर्ति कला में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई जारी की। इसके बाद यहीं से दीपक ने अपनी एमएफए की पढ़ाई पूरी की।
वित सचिव को पेंटिंग भेंट करते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

तीसरी कक्षा में लड़ा था पहला कम्पीटिशन

दीपक कौशिक बताते हैं कि उन्होंने तीसरी कक्षा में अपने जीवन का पहला कम्पीटिशन लड़ा था। दीपक ने बताया कि जब वह तीसरी कक्षा में था तो इसी दौरान रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा जींद के अर्जुन स्टेडियम में चित्रकला कम्पीटिशन का आयोजन किया गया था। जिस दिन कम्पीटिशन था उस दिन दीपक को बुखार हो गया लेकिन दीपक के अध्यापकों ने दीपक को कम्पीटिशन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया तो दीपक ने कम्पीटिशन में भाग लिया और इस कम्पीटिशन में दीपक को पुरस्कार भी मिला। दीपक ने बताया कि आज तक उसने जितने भी कम्पीटिशनों में भाग लिया उन सभी कम्पीटिशनों में उन्होंने अहम स्थान प्राप्त किया है।
पेंटिंग में रंग भरते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

जींद में नहीं किसी भी तरह की कला को आगे बढ़ाने का वातावरण 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक का कहना है कि जींद जिला आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। यहां किसी भी कला को आगे बढ़ाने के लिए वातावरण सही नहीं है। यहां अच्छी सुविधाएं नहीं होने के कारण कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते। इसके लिए कलाकारों को जींद को छोड़कर बाहर का रुख करना पड़ता है।

5500 फुट लंबी कलाकृति है सबसे यादगार 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि वैसे तो एक चित्रकार के लिए हर कलाकृति बेहतर व यादगार होती है। पर यूटी चंडीगढ़ द्वारा आयोजित फुड फेस्टीवल में बनाई गई 5500 फुट लंबी पेंटिंग व अन्ना हजारे के आंदोलन में बनाई गई 750 फुट लंबी पेंटिंग सबसे यादगार कलाकृतियां हैं। इन कलाकृतियों से जो अनुभव मिला वह हमेशा याद रहेगा।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पेंटिंग भेंट करते दीपक कौशिक।

यह-यह प्रमुख पुरस्कार प्राप्त किए

1. स्कूल शिक्षा के दौरान 100 से अधिक पुरस्कार प्राप्त किए।
2. सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार
3. ललित कला अकादमी अवार्ड (चंडीगढ़)
4. सुजान सिंह मैमोरियल अवार्ड
5. भारत विकास परिषद द्वारा सम्मान
6. संस्कार भारती पूणे द्वारा कला सम्मान
7. पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा सम्मान
8. पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद द्वारा सम्मान
9. पूर्व मानव संस्थान मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा सम्मान
10. हरियाणा शिक्षा मंत्री वित्त मंत्री द्वारा सम्मान
11. कला महाविद्यालय की वार्षिक कला प्रदर्शनियों में 2005, 2006, 2007, 2008  व 2011 में पुरस्कार प्राप्त किया।
12. राष्ट्रपति भवन में नवंबर 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की अपनी कलाकृति भेंट की।

यहां-यहां शोभा बढ़ा रही हैं दीपक की कलाकृतियां 

1. राष्ट्रपति भवन दिल्ली
 दीपक कौशिक द्वारा तैयार की गई पेंटिंग।
2. चंडीगढ़ म्यूजियम
3. शिमला म्यूजियम
4. कला समीक्षक वीएस गोस्वामी
5. होम सैक्टरी यूटी चंडीगढ़
6. फाइनेंस सैक्रेटरी चंडीगढ़
7. पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय
8. यूटी गेस्ट हाउस
9. यूटी टूरिजम
10. यूटी एजुकेशन
11. माऊट व्यू होटल


 पेंटिंग प्रतियोगिता में पेंटिंग करते दीपक कौशिक। 







बीज-खाद के लिए हाथ नहीं फैलाएं अन्नदाता

किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना झांझ कलां का सुरेश
अपनी सुझबुझ से सुरेश ने तैयार की गेहूं की अनोखी किस्म
किसान सुरेश रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए देशी पद्धति से करता है खेती

नरेंद्र कुंडू 
जींद। वैसे तो किसान को अन्नदाता का दर्जा दिया गया है लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरित हो चले हैं। सब्सिडी पर बीज, खाद इत्यादि खरीदने के लिए देश का यह अन्नदाता बाजार में हाथ फैलाए खड़ा रहता है। यदि किसान स्वयं अपने खेत में ही बीज, खाद तैयार करने लगे तो उसे छोटी-छोटी सब्सिडी के लिए बाजार में हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। यह मानना है झांझ कलां गांव निवासी किसान सुरेश ङ्क्षसहमार का। महज दसवीं पास सुरेश ङ्क्षसहमार पांच एकड़ में खेतीबाड़ी का कामकाज कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। सुरेश की एक खूबी है जो उसे अन्य किसानों से अलग करती है। सुरेश समय-समय पर अपने खेत में तैयार हो रही फसलों पर अकसर नए-नए प्रयोग करता रहता है और अपनी इसी आदत के कारण सुरेश ने गेहूं की एक अनोखी किस्म तैयार कर दी है। सुरेश द्वारा अपने खेत में तैयार किए गए गेहूं के इस बीज की किस्म सामान्य गेहूं से अलग है। सामान्य गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की लंबाई लगभग दो गुणा तक ज्यादा है और इस गेहूं की बालियां भी सामान्य गेहूं की बालियों से लगभग डेढ़ गुणा ज्यादा लंबी है। सामान्य गेहूं के पौधों की बजाय इस गेहूं के पौधो भी काफी मजबूत हैं। अपनी इसी खूबी के कारण यह गेहूं दूर से अलग ही दिखाई देता है। दूसरे गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की बालियां लंबी तथा मोटी होने के कारण इसका उत्पादन भी दूसरे गेहूं की किस्मों से लगभग दो गुणा ज्यादा होता है। सुरेश को यह बीज तैयार करने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा है। अब सुरेश के पास दस एकड़ का गेहूं का बीज तैयार है, जिसे सुरेश मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने दूसरे किसान साथियों को बिजाई के लिए देगा। ताकि अधिक से अधिक किसान इस बीज की बिजाई कर कम खर्च में अच्छा उत्पादन ले सकें। सुरेश की एक खास बात यह भी है कि वह दूसरे किसानों की तरह अपने खेत में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करता है। सुरेश पूरी तरह से कूदरती तरीके से खेती करता है और अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की बजाए देशी खाद का प्रयोग करता है। कम खर्च से अधिक पैदावर लेने के कारण खेती सुरेश के लिए घाटे का सौदा नहीं बल्कि आमदनी का मुख्य साधन बनी हुई है।

ऐसे तैयार हुआ बीज

झांझ कलां निवासी सुरेश कुमार ने अपने खेतों में ही घर बनाया हुआ है। लगभग तीन वर्ष पहले सुरेश अपने खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था। इसी दौरान सुरेश की नजर खेत में खड़े गेहूं के एक पौधे पर गई, जो उस गेहूं से पूरी तरह से अलग दिखाई दे रहा था। सुरेश ने उस गेहूं की बाली को तोड़कर घर पर सुरक्षित रख लिया। अगले वर्ष गेहूं की बिजाई के दौरान उस गेहूं की बाली से गेहूं निकालकर उसकी अलग से बिजाई कर दी। उस एक बाली से 100 के करीब दाने निकले। अच्छे तरीके से बिजाई किए जाने के कारण उस गेहूं का फुटाव भी अच्छा हुआ। सुरेश हर वर्ष इस गेहूं को सुरक्षित रखकर अगले वर्ष इसी तरीके से इसकी बिजाई कर देता। इस तरह सुरेश की तीन वर्ष की मेहनत के बाद आज सुरेश के पास लगभग दस एकड़ का बीज तैयार हो चुका है। सुरेश का कहना है कि वह दस एकड़ के इस बीज को अनाज मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने साथी किसानों को बीज के तौर पर देगा, ताकि इस किस्म की अधिक से अधिक बिजाई कर अधिक से अधिक यह बीज तैयार किया जा सके। यह गेहूं की किस्म कौनसी है इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सुरेश कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग भी लेगा।

क्या है इस गेहूं की किस्म की खूबी

तैयार की गई नई किस्म के गेहूं की बालियों को दिखाता किसान।
सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं के पौधे की लंबाई साढ़े चार फीट है, जबकि सामान्य किस्म के पौधों की लंबाई अढ़ाई से तीन फीट होती है। इस गेहूं की बालियों की लंबाई नौ इंच है, जबकि सामान्य किस्म के गेहूं की बालियों की लंबाई महज साढ़े पांच इंच की होती है। इस गेहूं की बालियों में सामान्य गेहूं की बालियों से गेहूं के दानों की संख्या भी काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के पौधे का तना सामान्य किस्म के पौधे के तने से काफी मोटा होता है। सुरेश के अनुसार सामान्य किस्म से उसके खेत में हर वर्ष प्रति एकड़ 40 से 45 मण कि औसत निकलती है जबकि इस गेहूं की औसत 75 से 80 मण प्रति एकड़ निकल रही है। इस किस्म के पौधे सामान्य किस्म से मोटे होने के कारण इससे पशुओं का चारा भी अधिक मिलता है।

अखिल भारतीय किसान मोर्चा करेगा सुरेश को प्रोत्साहित 

इस तरह के प्रगतिशील किसानों को प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा विशेष अभियान चलाए हुए है। अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चे का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद कर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है। उन्हें जब इस किसान के बारे में पता चला तो उन्होंने इस किसान को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। मोर्चा इस किसान को साथ लेकर अन्य किसानों को भी जागरूक करेगा तथा इस किसान को सरकार से प्रोत्साहन दिलवाने के लिए प्रयास करेगा। ताकि इस तरह के किसानों को रोल मॉडल बनाकर दूसरे किसानों को प्रेरित किया जा सके।
सुनील कंडेला, प्रदेशाध्यक्ष
अखिल भारतीय किसान जागरूक मोर्चा

खेत में खड़ी नई किस्म की गेहूं को दिखाता किसान सुरेश। 




मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

किसान-कीट विवाद को सुलझाने का प्रयास

न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने खाप चौधरियों को भेजी रिपोर्ट

रिपोर्ट में कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करने का किया समर्थन

न्यायिक कमेटी के निर्णय से खाप पंचायत के फैसले को मिली मजबूती

किसान-कीट विवाद सुलझाने के लिए फरवरी माह में निडाना में हुई थी खाप पंचायत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों और कीटों के बीच दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग में दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने के लिए गत 20 फरवरी को निडाना में आयोजित हुई सर्व खाप महापंचायत की न्यायिक कमेटी ने खाप प्रतिनिधियों को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जींद जिले के किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करवाने तथा पेस्टीसाइड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। न्यायिक कमेटी द्वारा खाप प्रतिनिधियों के पक्ष में दी गई इस रिपोर्ट से खाप पंचायत के फैसले को भी मजबूती मिली है। न्यायिक कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर अब खाप प्रतिनिधि केंद्रीय तथा प्रदेश के मंत्रियों को ज्ञापन भेजकर इस मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने की मांग करेंगे। ताकि दूषित हो रहे खान-पान को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके।
निडाना गांव में आयोजित खाप पंचायत के दौरान सेवानिवृत न्यायधीश को कीटों की जानकारी देती महिला किसान।

यह है पूरा मामला

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड के कारण दूषित हो रहे खान-पान को बचाने के लिए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की थी। इस मुहिम के तहत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के साथ मिलकर फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों पर बारिकी से शोध किया था। शोध के दौरान यह सामने आया कि कीट मांसाहारी और शाकाहारी दो प्रकार के होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। उत्पादन बढ़ाने में कीटों का अहम योगदान है लेकिन किसान अज्ञानतावश अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग कर कीटों को मार रहे हैं। जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है, वहां-वहां कीटों ने ईटीएल लेवल पार किया है। जागरूकता के अभाव में किसानों व कीटों के बीच यह जंग छिड़ी हुई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए 26 जून 2012 को कीटाचार्य किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपकर यह विवाद सुलझाने की गुहार लगाई थी। ज्ञापन के बाद खाप प्रतिनिधियों ने तीन वर्षों तक किसानों के साथ मिलकर कीटों पर शोध किया था। इसके बाद इस विवाद को सुलझाने के लिए 20 फरवरी 2015 को निडाना गांव में सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया था। विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से कोई चूक नहीं हो इसके लिए अलग से एक न्यायिक कमेटी गठित की गई थी। महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने कीटों का पक्ष रखा था। खाप प्रतिनिधियों तथा ज्यूरी ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना था। इसके बाद ज्यूरी इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए खाप प्रतिनिधियों से समय मांगा था। अब ज्यूरी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंप दी है। 

यह-यह लोग थे न्यायिक कमेटी में शामिल

महापंचायत में गठित की गई न्यायिक कमेटी में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं व्यापार नीति विश्लेषक देेवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था।  बॉक्स

यह है ज्यूरी की सिफारिश 

1. किसानों को कीटनाशियों के छिड़काव के कीटों पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। इसलिए डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जिन 183 व्यक्तियों को यह ज्ञान दिया गया है उन्हें जागरूकता फैलाने के लिए परिवर्तन एजेंट बनाया जा सकता है।
2. कीटनाशी निर्माता कंपनियां किसानों को गुमराह करती हैं। इसलिए इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
3. कृषि विश्वविद्यालयों में अनुसंधान अनुशंसित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान कर सकें और इस विचार को ओर बल मिल सके।

ज्यूरी का निष्कर्ष

ज्यूरी ने यह अनुभव किया कि 20 फरवरी 2015 को जींद जिले के निडाना गांव में विभिन्न समूहों द्वारा उनके समक्ष किए गए प्रस्तुतीकरण इस मामले में अनूठे थे कि उनसे कीटों के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ज्यूरी यह सिफारिश करता है कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को बिना किसी देरी के किसानों के बीच पहुंचाया जाना चाहिए, ताकि राज्य में जल्दी से जल्दी किसानों के हित में कीटनाशियों के उपयोग को रोका जा सके। ऐसा करके बहुत थोड़े से खर्च से राज्य एक ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने में समर्थ होगा,  जिससे राज्य को पूरे देश में विशेष सम्मान प्राप्त होगा।

खाप प्रतिनिधि चलाएंगे अभियान

खाप पंचायत में दोनों पक्षों को सुनने के बाद खाप पंचायत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि कीट बेजूबान हैं और किसान भोला है। इसलिए किसी तीसरे पक्ष ने किसानों को गुमराह कर इस अंतहिन लड़ाई की शुरूआत की है। महापंचायत के इस फैसले को वैज्ञानिक तौर पर मान्यता दिलवाने के लिए पंचायत में ज्यूरी का गठन किया गया था। ज्यूरी द्वारा पंचायत के पक्ष में रिपोर्ट देने से पंचायत के फैसले को बल मिला है। अब खाप प्रतिनिधि इस लड़ाई को खत्म करवाने के लिए गांव स्तर पर कमेटियों का गठन कर कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटाचार्य किसानों की मदद से अभियान चलाएंगे। इसके अलावा सरकार से भी इस महिम को पूरे प्रदेश में लागू कर प्रदेश को रसायनमुक्त घोषित करने की मांग की जाएगी।
कुलदीप ढांडा, संयोजक सर्व खाप महापंचायत



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रविवार, 19 अप्रैल 2015

जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर बनेगी कैंटीन

अब जेल में बंद कैदियों व बंदियों के लिए परिजन बाहर से नहीं पहुंचा सकेंगे सामान
पूरी तरह से कैशलैस होगी कैंटीन, प्रत्येक कैदीं व बंदीं का कैंटीन में खुलेगा खाता
बॉयोमैट्रीक सिस्टम से कैदियों को मिलेगा कैंटीन से सामान 


नरेंद्र कुंडू 

जींद। जिला कारागार में बंद कैदी व बंदी जल्द ही कैंटीन की सुविधा ले सकेंगे। जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। आगामी एक मई से जिला कारागार में कैंटीन की सुविधा शुरू हो जाएगी। जेल में कैंटीन की सुविधा शुरू होने के बाद यहांं बंद कैदियों व बंदियों से मुलाकात के लिए आने वाले वाले परिजन बाहर से लाया गया सामन जेल के अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। जेल प्रबंधन की तरफ से कैदियों व बंदियों के लिए परिजनों द्वारा बाहर से लेकर आने वाले सामान पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्णय लिया है। आगामी एक मई से जिला कारागार में पूरी तरह से यह नियम लागू हो जाएगा। मिल्ट्री की कैंटिन की तर्ज पर तैयार हो रही कैंटीन से उचित रेट पर कैदी व बंदी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेंगे। जिला कारागार की यह कैंटीन पूरी तरह से कैशलैस होगी। प्रत्येक कैदी व बंदी के कैंटीन में अलग-अलग खाते खोले जाएंगे। बॉयोमैट्रिक सिस्टम के जरिए कैंटीन से कैदियों व बंदियों को सामान दिया जाएगा। कैंटीन में एमआरपी सहित प्रत्येक सामान की लिस्ट लगाई जाएगी। कैंटीन से सामान खरीदते समय डिस्पले बोर्ड पर बकायदा सामान की मात्रा तथा राशि दर्शाई जाएगी। ताकि कैंटीन की बिक्री प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बनी रहे।

इस तरह चलेगी कैंटीन की प्रक्रिया 

जिला जेल प्रशासन द्वारा कैंटीन से सामान खरीदने के लिए जेल में बंद प्रत्येक कैदी व बंदी का अलग-अलग खाता खोला जाएगा। मुलाकात के लिए आने वाले कैदी के परिजन कैदी को बाहर की खाद्य वस्तुएं देने की बजाए रुपये दे सकेंगे। परिजनों की तरफ से कैदी व बंदी को मिलने वाले रुपये जेल प्रशासन द्वारा कंप्यूटर के माध्यम से उसके खाते में ट्रांसफर कर दिए जाएंगे। अपने खाते में जमा रुपयों से वह कैंटीन से अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेगा। कैंटीन की पूरी प्रक्रिया कम्प्यूटरीकृत होगी। ताकि किसी कैदी व बंदी के साथ धोखाधड़ी नहीं हो। इसके साथ-साथ कैंटीन में बॉयोमैट्रिक सिस्टम लागू होगा। कैदी व बंदी द्वारा बॉयोमैट्रिक सिस्टम पर अंगूठा लगाने के बाद कैंटीन में लगे कंप्यूटर में उसकी फोटो सहित उसका खाता खुल जाएगा और इसके बाद वह अपने खाते से सामान खरीद सकेगा। इसके लिए बकायदा एक विशेष सॉफ्टवेयर तैयार करवाया गया है। कैंटीन के निर्माण पर लगभग चार लाख रुपये की राशि खर्च की गई।

जेल में बंद होगा कूपन सिस्टम 

जिला कारागार में अभी तक रुपयों के स्थान पर कूपन सिस्टम चलता था। कैदी को जेल प्रशासन की तरफ से रुपयों के बदले कूपन मुहैया करवाए जाते थे। कैदी व बंदी इन कूपनों से ही अपनी जरुरत के अनुसार सामान खरीद सकते थे लेकिन अब कैंटीन सिस्टम शुरू होने के बाद जेल में कूपन सिस्टम बंद हो जाएगा।

एक मई के बाद अंदर नहीं जा सकेगा बाहर का सामान 



कैंटीन प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा व उप अधीक्षक सेवा सिंह।


जेल विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार जिला कारागार में मिल्ट्री की कैंटीन की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। जिला कारागार में कैंटीन शुरू होने के बाद कैदियों व बंदियों से मिलने के लिए आने वाले परिजन कपड़ों व जूते इत्यादि के अलावा बाहर से कोई अन्य सामान अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। एक मई से जिला कारागार में यह नियम पूरी तरह से लागू हो जाएगा। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कैंटीन को पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया गया है। मेरे तथा जेल उप अधीक्षक की निगरानी में कैंटीन की पूरी प्रक्रिया रहेगी। कंप्यूटर के माध्यम से हम अपने कार्यालय से ही कैंटीन की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख सकेंगे। कंप्यूटर में मौजूद साफ्टवेयर में प्रत्येक खाते का पूरा विवरण दर्ज होगा।

डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक

जिला कारागार, जींद 

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

अंधेरी कोठरी में अक्षर ज्ञान का जला रहे दीप

जिला कारागार में इग्रू का सेंटर शुरू कर कैदियों व बंदियों को दिया जा रहा शिक्षा का ज्ञान
आत्म निर्भर बनने के लिए महिला कैदी भी सीख रही हाथ का हुनर 
पढ़ाई के लिए इस वर्ष 268 कैदियों ने किया आवेदन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जेल की अंधेरी कोठरी को जेल अधीक्षक ज्ञान के दीप से उज्जवल करने में लगे हुए हैं। जिला कारागार की बैरिकों ने कक्षाओं का रूप धारण कर लिया है। जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को अक्षर ज्ञान दिया जा रहा है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी व बंदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदी व बंदी पढ़ाई कर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने में लगे हुए हैं। जेल अधीक्षक डॉ. हरिश कुमार रंगा स्वयं बैरिकों में कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। पुरुष कैदियों के साथ महिला कैदियों को भी आत्म निर्भर बनाने के लिए हाथ का हुनर सिखाया जा रहा है। ताकि यहां से निकलने के बाद पुरुष व महिला कैदी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। 
जिला कारागार का फोटो।
जाने-अनजाने में अपराध की दलदल में फंसकर जिला कारागार में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहे कैदियों को एक बार फिर से एक अच्छा नागरिक बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए जेल प्रशासन द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। जेल प्रशासन द्वारा यहां बंद कैदियों व बंदियों के लिए इग्नू, सर्व भारत शिक्षा मिशन के माध्यम से डिस्टेंश एजुकेशन की व्यवस्था की गई है। ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद यह सिर उठाकर अपना जीवन यापन कर सकें। स्वयं जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। इसके अलावा एक अन्य अध्यापक की भी यहां नियुक्ति की गई है। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदियों व बंदियों ने पढ़ाई के लिए आवेदन किया है। जेल पाठशाला के 200 कैदी-बंदी सर्व भारत शिक्षा मिशन के तहत प्राइमरी से पांचवीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं दसवीं, 12वीं करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। 33 कैदी दसवीं, 18 कैदी 12वीं, 15 कैदी बीए, दो कैदी बीपीपी की पढ़ाई कर रहे हैं। जेल में चल रही इस पाठशाला का परिणाम यह रहा कि 268 कैदी-बंदी पढ़ाई के माध्यम से अपना भविष्य संवारने में लगे हुए हैं। सामान्य स्कूल की तरह कैदियों व बंदियों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिकता व अनुशासन का पाठ भी सिखाया जा रहा है।

सीआरएसयू को भी भेजा गया है प्रपोजल

कैदियों व बंदियों को डिस्टेंस से शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए जींद के चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय से भी मदद मांगी गई है। जेल प्रशासन की तरफ से सीआरएसयू को इसके लिए प्रपोजल भेजा गया है। जिला कारागार अधीक्षक द्वारा स्वयं सीआरएसयू के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह से जेल में डिस्टेंस एजुकेशन शुरू करवाने के लिए बातचीत की गई है और उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से इस बारे में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है।

महिला कैदियों को सिखाया जा रहा है ब्यूटीशन व कटींग टेलरिंग का हुनर

जिला कारागार में बंद महिला कैदियों व बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग से कोर्स शुरू करवाया गया है। जिला कारागार में महिला कैदियों के लिए ब्यूटीशियन तथा कटींग-टेलरिंग का कोर्स करवाया जा रहा है। इसके लिए रोहतक आईटीआई का एक सेंटर जिला कारागार में स्थापित किया गया है। महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए दो महिला ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है। ब्यूटीशियन तथा कटींग टेलरिंग का प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रशिक्षु महिला कैदियों को रोहतक आईटीआई की तरफ से डिपलोमे भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। 

इच वन टीच वन के नारे को लेकर बढ़ रहे हैं आगे

सुधार गृह में बंद कैदी व बंदियों को जेल के अंधकार में उजाला हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। हम इच वन टीच वन के नारे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रयास के अंतर्गत शिक्षा का सहारा लिया है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरा करने में लगे हैं। कैदियों को पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जा रहे हैं। ताकि यहां से निकलने के बाद वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। किसी भी व्यक्ति को अपराध की दलदल से निकालने के लिए शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है। क्योंकि अज्ञानतावश ही कोई भी व्यक्ति अपराध के दलदल में कदम रखता है। कैदियों व बंदियों को सुधार ग्रह में पढ़ाई का पूरा माहौल दिया जा रहा है। सभी को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है। 
डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक
जिला कारागार, जींद  
जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा का फोटो। 





बुधवार, 8 अप्रैल 2015

कैसे मिलेगा मुआवजा आधे से ज्यादा रकबे की नहीं हुई गिरदावरी

विभाग के पास पटवारियों का टोटा
स्टाफ की कमी से ज्यादातर कागजों में ही हो रही है गिरदावरी 
गेहूं की कटाई शुरू होने से असमंजस में किसान 

नरेंद्र कुंडू
जींद। बेमौसमी बरसात ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। प्रदेश सरकार किसानों के जख्मों पर मुआवजे का मरहम लगाने का प्रयास कर रही है लेकिन गिरदावरी सरकार की राह में रोड़ा बनी हुई है। सरकार बार-बार मुआवजा जारी करने की तिथि निर्धारित कर रही है लेकिन जिले में अभी तक आधे से ज्यादा रकबे की गिरदावरी ही नहीं हो पाई है। विभाग के पास पटवारियों का टोटा है। इसके चलते जिले में गिरदावरी का काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। इस समय राजस्व विभाग के पास पटवारियों के आधे से भी ज्यादा पद खाली पड़े हैं। वहीं कृषि विभाग के पास भी कृषि विकास अधिकारियों का भारी टोटा है। कृषि विभाग में भी कृषि विकास अधिकारियों के आधे से ज्यादा पद खाली होने के कारण विभाग भी खराब फसलों की सही तरीके से सर्वे रिपोर्ट तैयार कर सरकार के पास नहीं भेज पा रहा है। स्टाफ की कमी के चलते निर्धारित समयावधि में गिरदावरी का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। काम के बढ़ते बोझ और स्टाफ की कमी के चलते पटवारी कागजों में ही गिरदावरी का काम पूरा करने को मजबूर हैं। वहीं सरकार द्वारा किसानों को दी जा रही मुआवजा राशि भी ऊंट के मुंह में जीरा है।
 फसल खराब होने पर खेत में बैठकर अफसोस जाहिर करता किसान।

मुआवजा ऊंट के मुहं में जीरा

बरसात ने तो पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया है। रही-सही कसर सरकार ने पूरी कर दी है। सरकार द्वारा जो मुआवजा दिया जा रहा है। वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है। गेहूं की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है लेकिन अभी तक गिरदावरी नहीं हो पाई है। गिरदावरी नहीं होने के कारण गेहूं की कटाई का कार्य भी शुरू नहीं कर पा रहा हूं। क्योंकि यदि गिरदावरी से पहले गेेहूं की कटाई की तो फसल की गिरदावरी नहीं हो पाएगी और बिना गिरदावरी के मुआवजा नहीं मिल पाएगा। 
सुशील, किसान 

दो लाख 15 हजार हैक्टेर में है गेहूं का रकबा

जिले में लगभग दो लाख 15 हजार हैक्टेयर में गेहूं की बिजाई का रकबा है। अगर मौसम खराब नहीं होता तो इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में लगभग 9678 टन गेहूं के उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन बरसात से गेहूं की फसल को हुए नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग जिले में लगभग तीन से चार प्रतिशत पैदावार कम होने की संभावना जता रहा है। कृषि विभाग के आंकलन के अनुसार यदि चार प्रतिशत का नुकसान होता है तो जिले में लगभग 387 टन गेहूं की पैदावार कम होगी। कृषि विभाग के अनुमानित आंकलन के अनुसार बरसात से हुए नुकसान के बाद जिले में  9288 टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है। 
बॉक्स
तहसील का नाम कृषि योग्य भूमि बिना कृषि योग्य भूमि कुल रकबा
जींद                        72239                         9030                             79269
नरवाना                   103534 11457 114991
सफीदों                     47090 5888 52978
जुलाना                     24132 2654     26786
कुल रकबा             244995 29029                          274024

तसहील का नाम मौजूद पटवारियों की संख्या        स्वीकृत पद        गांव की संख्या 
जींद                                         26                                  51                     98
जुलाना                                     10                                  16                       30
सफीदों                                      19                                 34 71
नरवाना                                     26                                   71                   108
कृषि विभाग के पास भी एडीओ की भारी कमी है। इसके चलते कृषि विभाग को भी फसलों के सर्वे में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ब्लॉक का नाम एडीओ की संख्या  स्वीकृत पद
नरवाना 7 12
जुलाना                        6 7
सफीदों                        1 6
पिल्लूखेड़ा                   1 5
अलेवा                         0                                5
जींद                          6 9

किसान भी करें गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग  

काम ज्यादा और पटवारियों की संख्या काफी कम है लेकिन इसके बावजूद भी पटवारी सभी गांवों में जाकर गिरदावरी करने का प्रयास कर रहे हैं। बार-बार बारिश के कारण गिरदावरी में परेशानी हो रही है। रूटीन की गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। फसल खराब होने की गिरदावरी चल रही है। अभी तक ५० प्रतिशत गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। जल्द ही प्रत्येक गांव में जाकर गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। किसानों को भी गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग करना चाहिए। 
जसबीर दलाल, जिला प्रधान
पटवारी एसोसिएशन, जींद 








खेत से पेट तक पहुंच रहा जहर

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों से थाली में बढ़ रहा जहर का स्तर
कैंसर के मरीज बढ़ा रहे हैं कीटनाशक

नरेंद्र कुंडू
जींद। देश में हरित क्रांति के साथ ही कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों ने भी दस्तक दे दी थी लेकिन किसानों को इनके प्रयोग की सही मात्रा तथा इनके अधिक प्रयोग से होने वाले दूष्प्रभाव की जानकारी नहीं होने के कारण दिनों-दिन फसलों में इनका प्रयोग बढ़ता चला गया। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में प्रयोग किए जा रहे कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों से थाली के जहर का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। फसलों में अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग से जहर खाद्य वस्तुओं के माध्यम से खेत से हमारे पेट तक पहुंच रहा है। दूषित हो रही खान-पान, वायु व जल प्रदूषण के कारण आज भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों ने भी मनुष्य के शरीर को अपनी चपेट में ले लिया है। इसी का कारण है कि आज स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि खान-पान व वातावरण को दूषित होने से बचा लिया जाए तो बहुत सी बीमारियां तो स्वयं ही खत्म हो जाएंगी और यह तभी संभव है जब किसान इस बारे में जागरूक होंगे।
खेत में कीटनाशक का प्रयोग कर रहे किसान का फाइल फोटो।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बन रहे हैं काल का ग्रास

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा दो लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजङ्क्षनग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर जैसी बीमारी के फैलने का मुख्य कारण भी फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशक हैं। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं।

जहरीला हो रहा खान-पान, जल व वातावरण

कीटनाशियोंं के फसलों पर अधिक प्रयोग से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं बल्कि वह जमीन भी कीटनाशियों के जहरीले प्रभाव से प्रभावित होती है जहां इनका छिड़काव किया जाता है। धीरे-धीरे यह प्रभाव जमीन में गहरा होता चला जाता है और अंतत: यह उस जमीनी जल तक पहुंच जाता है। कीटनाशियों के अधिक प्रयोग से वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है।

पशुओं पर भी पड़ रहा दूष्प्रभाव

पशु चिकित्सक डॉ. राजेंद्र चहल के अनुसार कीटनाशी हरे चारे/घास को भी जहरीला बना देते हैं। इससे पशुओं के शरीर व उनका दूध भी प्रभावित हो रहा है। परिणामस्वरूप कीटनाशियों का जहरीला प्रभाव मवेशियों व पशुओं के शरीर पर पड़ता है तथा भैंसों और गायों से मिलने वाला दूध भी कीटनाशियों से प्रभावित हो जाता है। कीटनाशक पशुओं व मनुष्य के शरीर के लिए घातक हैं।

दूषित हो रहे खान-पान के कारण बढ़ रही हैं बीमारियां

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बढऩे का मुख्य कारण दूषित हो रहा खान-पान है। फसलों में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से स्तन, यकृत, लीवर, अग्राश्य, फेफड़ों के कैंसर, हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी के रोग, शुगर, लकवा, सैक्स समस्या, पेट दर्द, आंखों में परेशानी, श्वास संबंधि बीमारी, मानसिक परेशानी सहित अनेक बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। इतना ही नहीं गर्भवति महिलाओं के शरीर में कीटनाशकों के अंश पहुंचने के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसके दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इससे जन्मजात बच्चों में विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है।
डॉ. पालेराम कटारिया, डिप्टी सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 

क्या-क्या बरतें सावधानियां 

बीमारियों से बचने के लिए खान-पान में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिएं। नियमित रूप से योग, मोर्निंग वॉक, व्यायाम करने चाहिएं। रेसेदार फल व सलाद पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तली हुई चटपटी वस्तुओं से परहेज रखें, खाद्य वस्तुओं में मेदे का भी प्रयोग कम से कम करना चाहिए। बिना छाने आटे का प्रयोग करना चाहिए, पौष्टीक खाद्य पदार्थों पर विशेष जोर देना चाहिए।

किसानों में जागरूकता की कमी से बढ़ रहा कीटनाशकों का प्रयोग 

किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों में यह भ्रम फैला रखा है कि अधिक कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ता है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन जमीन की उर्वरा शक्ति, उस क्षेत्र का पानी, वातावरण, खेत में पौधों की संख्या इत्यादि संसाधनों पर निर्भर करता है। किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान कीटों को बेवजह मार रहे हैं। जबकि कीट तो उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं। किसानों को कीटों को नियंत्रित करने की नहीं कीटों की पहचान करने की जरूरत है। पौधे कीटों को अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं। जब तक किसानों को कीटों की पहचान नहीं होगी फसल में उनके क्रियाकलापों से क्या प्रभाव पड़ा है इसकी जानकारी नहीं होगी तब तक किसानों को कीटनाशकों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकालन अंसभव है।
शकुंतला रधाना, कीटाचार्य किसान
कीटाचार्य महिला किसान शकुंतला का फोटो। 








गुरुवार, 5 मार्च 2015

देश के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे 'म्हारे किसान'


एनसीआईपीएम द्वारा दिल्ली में आयोजित सेमिनार में शामिल होंगे देशभर के कृषि वैज्ञानिक
एनसीआईपीएम ने सेमिनार में शामिल होने के लिए जींद के किसान को किया आमंत्रित

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले के कीटाचार्य किसान देश के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान की मुहिम से रूबरू करवाएंगे। इसके लिए राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र (एनसीआईपीएम) द्वारा दिल्ली में एक विशेष सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इस सेमिनार में देश के कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ जिले के कीटाचार्य किसानों को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। पुषा परिसर में चल रहे इस सेमिनार में कीटाचार्य किसान कृषि वैज्ञानिकों के सामने कीटों पर किए गए अपने शोध को प्रस्तुत करेंगे और फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों के महत्व के बारे में जानकारी देंगे। ताकि कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे देश में फैलाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके।
एनसीआईपीएम द्वारा दिल्ली में 26 फरवरी से 18 मार्च तक 20 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में देशभर के कृषि वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। इसी कार्यक्रम के दौरान एनसीआईपीएम की टीम द्वारा कृषि वैज्ञानिकों व प्रगतिशील किसानों के लिए एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इस सेमिनार में शामिल होने वाले कृषि वैज्ञानिक व प्रगतिशील किसान नई-नई पद्धतियों पर विचार-विमर्श करेंगे। इसी सेमिनार में जींद के कीटाचार्य किसानों को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। सेमिनार में जींद जिले की तरफ से एक पुरुष तथा एक महिला कीटाचार्य किसान भाग लेंगे। जींद के कीटाचार्य किसानों द्वारा सेमिनार में मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों पर अपनी प्रस्तुति दी जाएगी और फसल में मौजूद कीटों के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। ताकि दूसरे प्रदेश के किसान भी उनकी इस मुहिम से सीख लेकर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा दे सकें।

सेमिनार में एक पुरुष व एक महिला किसान लेंगे भाग    

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने बताया कि एनसीपीआईएम की तरफ से उन्हें सेमिनार में आमंत्रित किया गया। इस सेमिनार में उनके साथ एक महिला किसान भी भाग लेंगी। सेमिनार में आधा घंटे का उनका एक सामान्य भाषण होगा। इसके अलावा शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों पर एक घंटे की उनकी प्रजनटेशन होगी। इस प्रजनटेशन के माध्यम से फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों तथा फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। ताकि किसानों को कीटों की पहचान करवाकर कीटनाशकों के दलदल से बाहर निकाला जा सके

एनसीआईपीएम द्वारा निडाना में डेढ़ एकड़ में शोध के लिए लगाया था प्लांट 

थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को देखते हुए एनसीआईपीएम की टीम द्वारा वर्ष 2014 में जिले के निडाना गांव में शोध के लिए डेढ़ एकड़ में प्लांट लगाया गया था। आधा एकड़ में एनसीआईपीएम की पद्धति से, आधा एकड़ में कीटाचार्य किसानों की पद्धति से तथा आधा एकड़ में एक साधारण किसान की पद्धति से कपास की खेती की गई थी। इस शोध के दौरान ही एनसीआईपीएम की टीम जींद के कीटाचार्य किसानों के कीट ज्ञान से काफी प्रभावित हुए थे।

कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ देशभर के प्रगतिशील किसानों को भी किया गया है शामिल  

एनसीआईपीएम द्वारा कृषि वैज्ञानिकों के लिए एक 20 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसी कार्यक्रम के बीच में ही एक दिन के लिए कृषि वैज्ञानिकों व किसानों के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया गया है। इस सेमिनार में 14 राज्यों के कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ देशभर के प्रगतिशील किसानों को भी शामिल किया गया है। ताकि इस सेमिनार के दौरान कृषि वैज्ञानिक व किसान एक-दूसरे के समक्ष नई-नई पद्धतियों पर अपने विचार सांझा कर सकें। जींद के कीटाचार्य किसानों को भी सेमिनार में आमंत्रित किया गया है। कीटाचार्य किसान इस सेमिनार में शामिल होने वाले कृषि वैज्ञानिकों व किसानों को फसल में मौजूद कीटों के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। ताकि कीट ज्ञान की इस मुहिम से अधिक से अधिक किसानों को जोड़ा जा सके।
डॉ. मुकेश सहगल, वरिष्ठ वैज्ञानिक
एनसीआईपीएम, दिल्ली

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

महापंचापयत में खापों ने किया किसान-कीट विवाद के समझौते का प्रयास

खाप का सरकार से आह्वान, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से बनाई जाए नई कृषि नीति 
निडाना गांव में हुई सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत
कीटों ने खाप चौधरियों से लगाई न्याय की गुहार 

महापंचायत में कीटों ने दी किसानों खुली चुनौति, उन्हें मारकर नहीं जीत पाएंगे किसान
कीटाचार्य किसानों ने खाप चौधरियों के सामने रखा कीटों का दर्द
हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज एसएन अग्रवाल ने भी की खाप महापंचायत में शिरकत

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले के निडाना गांव में शुक्रवार को आयोजित हुई सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत में खाप चौधरियों ने अनोखे एवं अद्भूत मामले किसान व कीट विवाद की सुनवाई की। खाप महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने बेजुबान कीटों पैरवी की। लगभग तीन घंटे चली महापंचायत में खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने कीटाचार्य किसानों से सवाल जवाब किए। इसके बाद न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंपी। खाप प्रतिनिधियों ने मामले की गहनता से सुनवाई करने तथा न्यायिक कमेटी की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद मंच से आह्वान किया कि खाप पंचायत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से नई कृषि नीति बनाने, कीट ज्ञान की मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड जारी करने तथा दूसरे किसानों को प्रशिक्षत करने के लिए कीटाचार्य किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर नियुक्त करने के लिए केंद्र सरकार से पत्र लिखकर मांग करेगी। ताकि फसलों पर बिना वजह प्रयोग हो रहे जहर से मुक्ति दिलवाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके। महापंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने किसानों से फसलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करने का आह्वान कर किसान-कीट विवाद में समझौते का प्रयास किया। खाप पंचायत की अध्यक्षता जींद बेहतरा के प्रधान केके मिश्रा ने तथा मंच संचालक सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत हरियाण के संयोजक एवं बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने की। महापंचायत की न्यायिक कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधीश न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं कृषि विशलेषक डॉ. देवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था। महापंचायत में जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, जींद के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. रविंद्र ढांडा, मैडम कुसुम दलाल भी मौजूद रही।
जींद के निडाना गांव के एक निजी स्कूल में किसानों और कीटों के बीच पिछले लगभग चार दशकों से चली आ रही लड़ाई की सुलह करवाने को लेकर खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में किसानों का पक्ष जहां खुद किसानों ने रखा वहीं कीटों का पक्ष भी उन महिलाओं और पुरूषों ने रखा, जो पिछले लगभग आठ वर्षों से कपास और धान की फसलों में कीटों पर शोध कर रहे हैं और फसलों में बिना कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किए अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कीटाचार्य किसानों ने महापंचायत में बेजुबान कीटों की पैरवी करते हुए बताया कि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही दुश्मन हैं। कीट तो फसलों में अपना जीवन चक्र चलाने के लिए आते हैं और पौध अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर किसानों को अपनी रक्षा के लिए बुलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके आठ वर्षों के अनुभव के दौरान कभी की कोई कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर को पार नहीं कर पाया है। जब कीट हमारी फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं तो फिर उन्हें बिना कसूर किसानों द्वारा फसलों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कर क्यों मारा जा रहा है। उन्होंने बताया कि किसान व कीट की इस लड़ाई में बेजुबान कीटों की जान मुफ्त में जा रही है और इसमें किसान की जेब भी ढीली हो रही है। फसलों में अधिक जहर का प्रयोग होने से हमारा खान-पान भी दूषित हो रहा है। इसका मानव स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कीटाचार्य किसानों के कीट ज्ञान को सुन कर खापों के चौधरियों के साथ-साथ खुद न्यायिक कमेटी के अध्यक्ष पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, सदस्य देवेंद्र शर्मा और हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल भी हैरान रह गए। उन्हें भी लगा कि बिना वजह बेजुबान कीटों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी ने जब अन्य किसानों इसे लेकर सवाल किए तो किसानों ने बताया गया कि उन्हें कीटों के  बारे में इस तरह की जानकारी नहीं थी। वह तो अज्ञानतावश फसल में नुकसान के डर से इन बेजुबान कीटों को मार रहे हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायिक कमेटी व खाप इस निश्कर्ष पर पहुंचे कि इस लड़ाई में न तो किसानों का दोष है और न ही कीटों का कोई तीसरा पक्ष किसानों के भोलेपन का फायदा उठाकर इस लड़ाई को बढ़ावा दे रहा है। 

रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को की जाएगी सिफारिश 

यह हिंदुस्तान की पहली ऐसी कोर्ट है जिसमें एक अनोखे मुकदमे की सुनवाई हुई है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जींद जिले के किसानों का नाम इतिहास में लिखा जाएगा। जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने कीटों पर एक अनोखा शोध कर कृषि वैज्ञानिकों को भी पीछे छोड़ दिया है। इन किसानों को कीटों के बारे में काफी गहराई तक जानकारी है। यहां आकर इन किसानों से यह सीखने को मिला कि किस तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं। हिंदुस्तान के छोटे से गांव में कीटों पर इस तरह का काम हो रहा है यह देख कर मैं दंग रह गया। कीट भी परमात्मा की देन हैं। इसलिए इन्हें भी बचाया जाना चाहिए। प्रकृति ने जो सिस्टम बनाया है किसान पेस्टीसाइड का प्रयोग कर उस सिस्टम के साथ छेडख़ानी कर रहे हैं। पेस्टीसाइड मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। जींद जिले के किसानों के इस काम को कृषि नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड जारी करवाने, इन किसानों को विशेष सुविधाएं दिलवाने के लिए के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार से सिफारिश की जाएगी। इसे लागू करना या ना करना सरकार का काम है। 
न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, सेवानिवृत्त न्यायाधीश
हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट

महापंचायत में यह-यह खाप प्रतिनिधि रहे मौजूद 

सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत हरियाणा की महिला विंग की प्रधान डॉ. संतोष दहिया, अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रधान ओमप्रकाश मान, कंडेला खाप प्रधान टेकराम कंडेला, पालम 360 के प्रधान रामकर्ण सौलंकी, राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी, बूरा खाप के वरिष्ठ उपप्रधान दयानंद बूरा, नंदगढ़ (चुढाली) गांव के प्रधान होशियार सिंह दलाल, कुंडू कालवा खाप के प्रधान सुभाष कुंडू, मंडाल तपा के प्रधान जगबीर ढुल, महम चौबिसी के प्रधान मेहर सिंह नंबरदार, दहिया खाप के प्रधान प्रताप सिंह, झाड़सा 360  गुडग़ांव के प्रधान महेंद्र ठाकरान, सतरोल खाप के प्रधान सूबेदार इंद्र सिंह, राखी बारहा खाप के प्रधान सुरेश कोथ, हाट बारहा खाप के प्रधान दयानंद, किनाना बारहा खाप के प्रधान दरिया सैनी, प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, नगूरा बारहा खाप के प्रधान राजेंद्र दलाल, ढांडा खाप के प्रतिनिधि ओमप्रकाश ढांडा, किसान सभा हरियाणा के उपाध्यक्ष कामरेड फूल सिंह श्योकंद, खरकरामजी खाप के प्रधान सत्यवान, सफीदों बारहा के प्रधान रणबीर देशवाल, चहल खाप के संरक्षक दलीप सिंह चहल, कुंडू बारहा के प्रधान महाबीर कुंडू, लोहचब खाप के प्रधान ईश्वर लोहचब, राममेहर नंबरदार सहित लगभग 60 खापों के प्रतिनिधि मौजूद थे। 
सहित प्रदेशभर से 60 खापों के प्रतिनिधि व पंजाब के किसान भी मौजूद थे।   
 महापंचायत में अपने अनुभव रखती महिला किसान।

हमें मारकर ये जंग नहीं जीत पाएंगे किसान 

महापंचायत में कीटों ने किसानों को खुली चुनौती देते हुए कहा कि किसान उन्हें जहर से मारकर कभी भी इस जंग को किसान जीत नहीं पाएंगे। कीटाचार्य किसानों ने कीटों की तरफ से पक्ष रखते हुए बताया कि यदि किसान इसी तरह फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनकी आने वाली पीढिय़ों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। 

मांसाहारी कीट तो फसल में करते हैं कुदरती कीटनाशी का काम 

ललितखेड़ा गांव की महिला किसानों के गु्रप ने मांसाहारी कीट लेडी बर्ड बीटल की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए बताया कि बीटल 18 किस्म की हैं और यह व इनके बच्चे सभी मांसाहारी होते हैं। शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग जैसे मेजर कीटों को खाकर वह फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करती हैं। वहीं रधाना गांव के पुरुष किसानों ने मांसाहारी कीट हथजोड़े की तरफ से पक्ष रखते हुए कहा कि वह 10 किस्म के होते हैं और सूंडियां उनका प्रमुख भोजन होती हैं। किसान जिसे गादड़ की सूंडी समझता है वह दरअसल उसकी सूंडी होती है और उसकी एक अंडेदानी में 500 से 600 के लगभग बच्चे होते हैं। उसके एक बच्चे को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन 10 सूंडियों की जरूरत पड़ती है। ललितखेड़ा गांव के पुरुष किसानों ने बुगड़ों की तरफ से प्रस्तुती देते हुए बताया कि बुगड़े सात प्रकार के होते हैं और डंक की सहायता से दूसरे कीटों का खून चूसकर कीटों का खातमा करते हैं। निडाना गांव की महिलाओं ने मक्खियों की पैरवी करते हुए बताया कि यह मक्खियां भी दूसरे कीटों का मांस खाकर अपना गुजारा करती हैं। कुछ मक्खियां तो अपने वजन से ज्यादा मांस खाती हैं। निडानी के पुरुष किसानों ने दूसरे कीटों के पेट में अंडे देने वाले परपेटियों का पक्ष रखा। 
महापंचायत में मंच पर मौजूद खाप प्रतिनिधि।

पौधे व शाकाहारी कीटों का है गहरा रिश्ता 

ईगराह गांव के पुरुष किसानों ने रस चूसक कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि यह कीट तो पौधे का बचा हुआ रस चूसकर पौधे की मदद करते हैं। जिस तरह रक्तदान करने से मनुष्य के शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता उसी प्रकार पौधे का रस चूसने से पौधे पर भी कोई दूष्प्रभाव नहीं पड़ता। निडाना गांव के पुरुष किसानों ने पत्तेखाने वाले कीटों की पैरवी करते हुए बताया कि पत्ते खाने वाले कीट ऊपर के पत्तों में छोटे-छोटे सुराख कर देते हैं। इससे नीचे के पत्तों तक भी धूप पहुंच जाती है और नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बना देते हैं। ईगराह के किसानों ने फूलाहारी कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि कीट तो फसल में परपरागन में सहायता करते हैं। कीटों की सहायता से ही फूल के नर भाग के परागकण मादा तक पहुंच पाते हैं। रधाना गांव के किसानों ने फलाहारी कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पौधा अपना 65 प्रतिशत फल गिरा देता है और इसी फल को खाकर यह कीट पौधे की मदद करते हैं। 
मंच पर किसानों को संबोधित करते सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल।

फसल को नुकसान से बचाने के लिए करते हैं स्प्रे

निडाना के सुरेंद्र किसान ने आम किसान का पक्ष रखते हुए बताया कि किसान तो अपनी फसल को कीटों के नुकसान से बचाने के लिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। कीट किसान के लिए इतने लाभदायक होते हैं, उसके बारे में तो उन्हें जानकारी ही नहीं है। 

हमें सुविधाएं स्वच्छ वातावरण व शुद्ध खान-पान चाहिए

निडाना तथा निडानी के बच्चों ने प्रस्तुति देते हुए बताया कि दूषित हो रहे खान-पान के कारण वह भिन्न-भिन्न किस्म की बीमारियां की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने खाप चौधरियों से गुहार लगाई कि उन्हें सुविधाएं नहीं उन्हें तो वह स्वच्छ वातावरण चाहिए जो उनके पूर्वज उनके लिए छोड़कर गए  थे। 

खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों किसानों से किए सीधे सवाल

महापंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने कीटाचार्य किसानों से सीधे सवाल जवाब किए। खाप चौधरियों ने कहा कि जब किसानों का कोई दोष नहीं है और न ही कीटों का तो फिर यह लड़ाई कैसे शुरू हुई। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों को गुमराह कर इस लड़ाई के मैदान में उतार दिया है। खाप प्रतिनिधि सुरेश कोथ ने जब पिछले दो वर्षों से उनके क्षेत्र में शाकाहारी कीट सफेद मक्खी के प्रकोप का दुखड़ा जब पंचायत में सुनाया तो किसानों ने बताया कि यह सब कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण हो रहा है। कीटनाशकों के प्रयोग से शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ती है। 

99 प्रतिशत कीटनाशक वातावरण व जमीन में बेकार चला जाता है। 

मंच पर मौजूद न्यायिक कमेटी के सदस्य।
खाद्य एवं कृषि विशलेषक डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने कृषि क्षेत्र में शोध के दौरान विभिन्न देशों का दौरा किया है और जो जानकारी उन्हें जींद जिले के किसानों से मिली है वैसी कहीं से भी नहीं मिली। डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि किसान कीटों से फसलों को बचाने के लिए जिस पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं, उसका ९९ प्रतिशत हिस्सा वातावरण व जमीन में चला जाता है। इससे हमारा वातावरण व खान-पान दूषित हो रहा है। उन्होंने एक साइंस मैगजीन का जिक्र करते हुए बताया कि पिछले साल तीन लाख लोगों ने आत्महत्या की है जिसका कारण पेस्टीसाइड है। उन्होंने बताया कि आज बच्चा मां के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं है। गर्भ से ही बच्चे के अंदर पेस्टीसाइड के अंश पहुंच जाते हैं। 
पंचायत में भाग लेती महिला किसान।

  भोलेपन के चलते बेजुबान और बेकसूर कीटों को मार रहा है किसान 

न्यायिक कमेटी के सामने किसान और कीट दोनों का पक्ष अच्छी तरह से रखे जाने के बाद जस्टिस एसएन अग्रवाल की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने मौके पर यह व्यवस्था दी कि कई दशकों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही जंग में कीट बिना कसूर मरता रहा और किसान अपने भोलेपन के चलते अपनी जेब ढीली कर बेजुबान और बेकसूर कीटों को मारता रहा। दोनों में किसी का दोष नहीं था। इसके चलते ज्यूरी ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने का प्रयास किया। इसमें किसान ने यह तय किया कि अब वह अपनी फसलों में बिना वजह अंधाधुंध तरीके से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं करेगा। साथ ही महापंचायत ने केंद्र सरकार के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें मांग की गई कि सरकार अपनी कृषि नीति में इस बात को शामिल करे की फसलों पर कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध छिड़काव नहीं हो। पूरे देश में जहर मुक्त थाली को लेकर सरकार एक बड़ा अभियान चलाए। इसके अलावा खाप पंचायतों ने भी अपने स्तर पर पूरे देश में जहर मुक्त थाली का अभियान चलाने का फैसला किया। खाप महापंचायत में हरियाणा के साथ-साथ पंजाब के किसानों ने भी भाग लिया। उत्तर भारत की 60 से ज्यादा खापों के प्रतिनिधि इस महापंचायत में शामिल हुए। 
मंच पर मौजूद खाप प्रतिनिधि।

किसानों ने हाथ उठाकर खाप के निर्णय का किया समर्थन

खाप महापंचायत में न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंपी। सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने किसानों से पूछा कि खाप जो फैसला करेगी किसान उससे मंजूर करेंगे, तो किसानों ने हाथ उठाकर खाप के फैसले को स्वीकार करने का समर्थन किया। खाप पंचायत में फैसला लिया गया कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से नई कृषि नीति बनाने, कीट ज्ञान की मुहिम को इस नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड देने, कीटाचार्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए खाप पंचायत एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी। 

महापंचायत में मंच पर मौजूद हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायधीश एसएन अग्रवाल, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल व डॉ. देवेंद्र शर्मा। 












गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

न्यायिक कमेटी के मार्गदर्शन में किसान-कीट विवाद सुलझाएगी खाप पंचायत

खाप पंचायतों के इतिहास में पहली बार बनाई जाएगी न्यायिक कमेटी
20 को निडाना में होगा अनोखी एवं अदभूत खाप महापंचायत का आयोजन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फतवे जारी करने के नाम से जानी-जाने वाली खाप पंचायतें 20 फरवरी को निडाना में आयोजित होने वाली अनोखी एवं अदभूत महापंचायत में न्यायिक कमेटी के मार्गदर्शन में किसान व कीट के विवाद को सुलझाएंगी। खाप पंचायतों के इतिहास में यह पहली बार होगा कि जब किसी विवाद को सुलझाने के लिए पंचायत में अलग से एक न्यायिक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस न्यायिक कमेटी का चेयरमैन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधीश एसएन अग्रवाल को बनाया जाएगा और कृषि वैज्ञानिक तथा खाद्य विशेषज्ञ को भी इस न्यायिक कमेटी में शामिल किया जाएगा। यह न्यायिक कमेटी अपनी रिपोर्ट महापंचायत को सौंपेगी, इसके बाद महापंचायत अपना फैसला सुनाएगी। निडाना गांव में 20 फरवरी को होने वाली अनोखी सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।  

यह है पूरा मामला 

डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने जून 2012 में खाप प्रतिनिधियों को पत्र लिखकर किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करने की गुहार लगाई थी। किसानों द्वारा खापों को दिए गए पत्र में बताया गया था कि अधिक उत्पादन की चाह में किसानों द्वारा फसलों में अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण बेजुबान कीटों की मौत हो रही है और मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर अपना जीवन निर्वाह करने का बराबर का अधिकार दिया है। किसानों ने बताया था कि पौधे भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। कीटों का पौधों के साथ गहरा संबंध है लेकिन किसानों को गुमराह कर फसलों में जहर का प्रयोग करवाया जा रहा है। जहर के प्रयोग से मनुष्य के शरीर पर तो बुरा प्रभाव पड़ ही रहा, वहीं फसल में मौजूद बेजुबान कीटों की भी मौत हो रही है। जबकि कीटों का तो कोई दोष भी नहीं है। कीटाचार्य किसानों ने पत्र में गुहार लगाते हुए कहा था कि खाप पंचायतों ने बड़े-बड़े विवादों को आपासी सहमती से निपटाया है। इसलिए खाप पंचायतें किसानों और कीटों के इस झगड़े को भी आपसी सहमती से निपटाकर इस अंतहिन लड़ाई का पटाक्षेप करवाएं। 

कीटाचार्य किसान रखेंगे बेजुबान कीटों का पक्ष 

20 फरवरी को निडाना में आयोजित होने वाली खाप महापंचायत में किसान व कीट विवाद को सुलझाने के लिए किसान अपना पक्ष रखेंगे तो कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसान बेजुबानों का पक्ष रखेंगे। कीटाचार्य किसान खाप प्रतिनिधियों को बताएंगे कि कीटों का फसल में क्या महत्व है। इसके लिए किसानों ने कीटों को दो ग्रुपों में बांटा है। एक ग्रुप शाकाहारी कीटों का पक्ष रखेगा तो दूसरा ग्रुप मांसाहारी कीटों का पक्ष रखेगा। 

क्यों बनाई जाएगी न्यायिक कमेटी

सर्व जातीय सर्वखाप हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा ने बताया कि यह विवाद काफी पेचिदा है। इस विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से किसी तरह का कोई गलत फैसला नहीं हो इसके लिए खाप पंचायत में न्यायिक कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया है। इस न्यायिक कमेटी का चेयरमैन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधिश एसएन अग्रवाल को चेयरमैन बनाया जाएगा। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिक तथा खाद्य विशेषज्ञ को इस न्यायिक कमेटी में शामिल किया जाएगा। यह न्यायिक कमेटी किसानों के पक्ष को सुनने के बाद अपना फैसला खाप पंचायत को देंगे। इसके बाद खाप पंचायत अपना फैसला सुनाएगी। इस खाप पंचायत में सुनाया जाने वाला फैसला पूरी तरह से सामाजिक, न्यायिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर होगा।  

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

लोगों के झगड़े निपटाने वाली खाप सुनेंगी बेजुबानों का दर्द

20 को निडाना में खाप महापंचायत में निपटाया जाएगा किसानों व कीटों का विवाद

खाप पंचायत में कृषि वैज्ञानिक व सेवानिवृत्त न्यायधीशों को भी किया जाएगा आमंत्रित

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लोगों के आपसी विवाद सुलझाने के लिए पहचानी जाने वाली उत्तर भारत की खाप पंचायतें अब किसानों और कीटों के बीच पिछले लगभग चार दशकों से चले आ रही लड़ाई में समझौता करवाने की पहल करेंगी। इसके लिए आगामी 20 फरवरी को खाप महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। जींद-गोहाना मार्ग पर निडाना गांव के पास स्थित डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित होने वाली खाप महापंचायत में उत्तर भारत की विभिन्न खापों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक तथा सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी शामिल किया जाएगा। इस खाप महापंचायत में शामिल होने वाले खापों के चौधरी पंचायत में बेजुबान कीटों और किसानों का दर्द सुनेंगे। खाप पंचायत के माध्यम से वैज्ञानिक तथा सामाजिक दृष्टिकोण से किसानों और कीटों के इस विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों में समझौते का प्रयास किया जाएगा। ताकि इस लड़ाई में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काल का ग्रास बन रहे किसानों व बेजुबान कीटों को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके। यह अपने आप में एक अनोखी पंचायत होगी। क्योंकि इससे पहले केवल लोगों के झगड़े निपटाने के लिए ही पंचायतों का आयोजन होता रहा है।

तीन साल पहले किसानों ने खापों से लगाई थी समझौते की गुहार

सर्व जातीय सर्वखाप हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा ने सोमवार को यहां पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने जून 2012 में खाप प्रतिनिधियों को पत्र लिखकर किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करने की गुहार लगाई थी। किसानों द्वारा खापों को दिए गए पत्र में बताया गया था कि अधिक उत्पादन की चाह में किसानों द्वारा फसलों में अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण बेजुबान कीटों की मौत हो रही है और मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर अपना जीवन निर्वाह करने का बराबर का अधिकार दिया है और किसी न किसी रूप में उसका प्रकृति के साथ संबंध हैं। पौधे भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। कीटों का पौधों के साथ गहरा संबंध है। बस जरूरत है तो इस संबंध को पहचानने की। कीटाचार्य किसानों ने पत्र में गुहार लगाते हुए कहा था कि खाप पंचायतों ने बड़े-बड़े विवादों को आपासी सहमती से निपटाया है। इसलिए खाप पंचायतें किसानों और कीटों के इस झगड़े को भी आपसी सहमती से निपटाकर इस अंतहिन लड़ाई का पटाक्षेप करवाएं। इस अवसर पर उनके साथ बूरा खाप के महासचिव भलेराम बूरा, चहल खाप के संरक्षक दलीप चहल, बहतरा खाप के प्रधान केके मिश्रा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह  ढुल, कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी, राजेंद्र कंडेला, आजाद रेढू, केहर सिंह, पूर्व सरपंच ओमप्रकाश, बलजीत रेढू, बीकेयू के जिला प्रधान रामकुमार, कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, सुरेश अहलावत, पूर्व सरपंच बलवान राजपुरा, रामभगत पूर्व सरपंच, रामदेवा, अनिल नंबरदार, सत्यवान, सुरेंद्र, देवेंद्र, विक्की जेई मौजूद रहे।

18 जून 2012 को निडाना में हुआ था पहली खाप पाठशाला का आयोजन

ढुल खाप के प्रधान इंद्र ङ्क्षसह ढुल ने बताया कि किसान-कीट विवाद को निपटाने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का गलत फैसला न हो इसके लिए खाप प्रतिनिधियों ने इस लड़ाई की तह में जाने के लिए बारिकी से इसे समझने का प्रयास किया। इसके लिए 18 जून 2012 को निडाना गांव में पहली खाप पाठशाला का आयोजन किया गया। 18 सप्ताह तक चली इस खाप पाठशाला में प्रदेशभर की भिन्न-भिन्न खापों के 100 से भी ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लेकर पौधों और कीटों के आपसी संबंध के बारे में जानकारी हासिल की। ढुल ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस मुहिम को मान्यता दिलवाने के लिए खाप पंचायतें पिछले तीन वर्षों से इस मुहिम का अध्यन कर रही हैं। क्योंकि कृषि क्षेत्र में किसी भी प्रयोग को वैज्ञानिक मान्यता दिलवाने के लिए तीन वर्षों तक उस प्रयोग पर अध्यन करना जरूरी होता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन (आईपीएम) व चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिक भी इस मुहिम पर अपनी रिसर्च कर रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिकों व सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी किया जाएगा आमंत्रित

पत्रकारों से बातचीत करते खापों के प्रतिनिधि। 
राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी ने बताया कि 20 फरवरी को जींद-गोहाना मार्ग पर निडाना गांव के पास स्थित डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित होने वाली इस खाप महापंचायत में उत्तर भारत की सभी खापों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ आब्जर्वर के तौर पर कृषि वैज्ञानिकों तथा सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी आमंत्रित किया जाएगा। ताकि सामाजिक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस विवाद का समाधान निकाला जा सके। अपने आप में यह एक अनोखी पंचायत होगी। क्योंकि इससे पहले खापों ने केवल मनुष्य की लड़ाई-झगड़ोंं को निपटाया था। कीटों व किसानों का यह पहला मामला खाप के पास आया है। 




मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो'

जहर मुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

नरेंद्र कुंडू

जींद। कीट साक्षरता मिशन द्वारा बुधवार को शहर के रोहतक रोड स्थित किसान कृषि प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में जहरमुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय नेशनल सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें निडाना में चलाई गई कीट साक्षरता के परिणामों पर भी चर्चा की गई। कीट साक्षरता का हिस्सा रही निडाना, रधाना व ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने बताया कि अमर उजाला का सहयोग मिलने से उनके अभियान को मजबूती मिली है। इस दौरान महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत भी प्रस्तुत किए, जिसमें 'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो' के माध्यम से कीटनाशकों के प्रयोग से शरीर और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताया। गीत के माध्यम से बताया गया कि किस प्रकार कीटनाशकों के कारोबारियों का धंधा जम रहा है और किसान बर्बाद हो रहा है। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों और कृषि वैज्ञानिकों ने कीट गीत की सराहना की। सेमिनार में हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल, चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार (एचएयू) से डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच, जींद के एसडीएम वीरेंद्र सहरावत, जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, अमर उजाला से महाप्रबंधक बजरंग राठौर, न्यूज एडिटर अर्जन निराला, स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, हिसार बागवानी से डॉ. भूपेंद्र दूहन, कृषि विभाग से एपीपीओ अनिल नरवाल, एसटीओ डॉ. संत मलिक, ट्रेनिंग इंचार्ज बलजीत लाठर, मास्टर ट्रेनर डॉ. राजेश लाठर, डॉ. सुभाष, एएसओ डॉ.
 कार्यक्रम में दीप प्रजवलित करते अतिथि।
सर्वजीत, एडीओ डॉ. कमल सैनी, कैलिफोर्निया (यूएसए) यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली, निकोलस, जिला सूचना एवं लोक संपर्क अधिकारी सूबे सिंह, अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा के अध्यक्ष सुनील कंडेला सहित कीट साक्षरता मिशन से जुड़े सैंकड़ों महिला व पुरुष किसान मौजूद रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्
 कीट ज्ञान का अपना अनुभव बताती कीटाचार्य।
सेमिनार को संबोधित करते बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा।
जवलित कर किया गया। कार्यक्रम के समापन पर अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सभी अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट किए गए। 
हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीट ज्ञान की एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यह मुहिम सरकारी अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत है। कीट ज्ञान की यह मुहिम किसी सरकारी विभाग की मुहिम नहीं होकर सामाजिक मुहिम है। इसी के चलते इस मुहिम ने सरकारी विभागों के अधिकारियों, किसानों, सामाजिक संस्थाओं तथा मीडिया को भी एक छत के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है। जब तक किसानों को कीटों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक जहर से मुक्ति संभव नहीं है। इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों को विद्यार्थियों के विषय में शामिल करना चाहिए और कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों से प्रशिक्षण दिलवाएं ताकि कीट विज्ञान जैसे जटिल विषय को आसानी से विद्यार्थियों को रूबरू करवाया जा सके।
हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को सम्मानित करते किसान।
कार्यक्रम में पहुंचे कैलिफोरनिया विश्वविद्यालय के शोधार्थी।

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ा सफेद मक्खी का प्रकोप

एचएयू डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों ने कीटों पर अनोखे शोध किए हैं। एचएयू से इस शोध को वैज्ञानिक मान्यता दिलवाने के लिए इस क्षेत्र में काम चल रहा है। डॉ. सिवाच ने कहा कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा रहा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ा है। 

किसानों के अनुभव से बढ़ा ज्ञान

एसडीएम वीरेंद्र सहरावत ने कहा कि कीट ज्ञान के बारे में जितनी जानकारी यहां के किसानों को है, उतनी जानकारी तो उन्हें भी नहीं है। इस कार्यक्रम को देखकर उन्हें काफी जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले उन्हें प्रकृति के इस चक्र के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी नहीं थी। किसानों के अनुभव से यह साफ हो गया है कि कीट ज्ञान के बिना थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है।

कृषि विभाग उठा रहा है विशेष कदम

जिला उपकृषि निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि इस काम को करीब से नहीं देखा जाए तो इस काम को समझ पाना संभव नहीं है। खेतों में जाकर ही यह ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग की तरफ से विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
 किसानों को संबोधित करते एचएयू के शोध विभाग के निदेशक डॉ. एसएस सिवाच।

जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर बरवाला में चलाई पाठशाला

हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने कहा कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण खान-पान दूषित हो रहा है और इससे मनुष्य के का शरीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने कहा कि जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर उन्होंने बरवाला में भी इसी तर्ज पर किसान पाठशालाएं शुरू करवाई हैं। इन्हीं किसानों ने वहां जाकर किसानों को प्रशिक्षित किया है। डॉ. भ्याण ने कहा कि पेस्टीसाइड खेती को रोकने के लिए उन्होंने हिसार में कीट साक्षरता कमेटी बनाई है।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्यों को सम्मानित करती कुसुम दलाल।

किसान और कीटों की लड़ाई में खाप बनेंगी मध्यस्थ

कार्यक्रम के दौरान बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा उन्हेें किसानों और कीटों के बीच छिड़ी लड़ाई को समाप्त करने के लिए ज्ञापन दिया था। अब जल्द ही इस विषय पर खाप पंचायत बुलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस खाप पंचायत में देश भर से कृषि वैज्ञानिकों और कीट विशेषज्ञों को भी बुलाया जाएगा। ढांडा ने कहा कि पिछले 40-50 सालों से किसानों ने कीटों की सैकड़ों पीढिय़ों को नष्ट करके देख लिया, लेकिन हमेशा जीत कीटों की हुृई है। अब समय आ गया है कि कीटों और किसानों के बीच सहयोग होना चाहिए। लड़ाई से जो कुछ नहीं हुआ, अब आपसी मेलजोल से वह किया जाएगा। ढांडा ने कहा कि अमर उजाला फाउंडेशन ने इस लड़ाई को रोकने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। यह बहुत ही पुण्य का काम है। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन के इस प्रयास से यह मुहिम पूरे उत्तर भारत के किसानों तक पहुंची है, जो सबसे बड़ा काम है। अमर उजाला के प्रयास का ही परिणाम है कि पंजाब, हिमाचल तथा अन्य राज्यों के किसान भी इस विधि को देखने के लिए जींद का रूख कर रहे हैं।
किसानों को संबोधित करते एसडीएम विरेंद्र सिंह सहरावत।

पैदावार का तुलनात्मक अध्ययन

कार्यक्रम के दौरान हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण तथा एडीओ डॉ. कमल सैनी ने पीपीटी के माध्यम से उन खेतों की पैदावार को बताया, जहां कीटनाशकों का प्रयोग नहीं हुआ। इन खेतों में अन्य के मुकाबले अधिक पैदावार हुई और कीटनाशकों का खर्च भी बचा।

बेटा खोकर पता चला कीटनाशकों का नुकसान

अपने अनुभव बताते हुए निडानी गांव के किसान जयभगवान ने कहा कि फसल पर कीटनाशक  के कारण उसका जवान बेटा कैंसर की चपेट में आ गया। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी बेटे को खोने के बाद उन्हें फसलों पर छिड़के जा रहे जहर के असली नुकसान का पता चला है और पांच साल से वह बिना कीटनाशक की खेती कर रहा है। इससे पैदावान कम होने की बजाय बढ़ रही है।


डॉ. बलजीत सिंह भ्याण को सम्मानित करते अमर उजाला के जीएम बजरंग सिंह राठौर।
कीटों की प्रजंटेशन देती महिला किसान।

कार्यक्रम के दौरान प्रजंटेशन  देते डॉ. बलजीत सिंह भ्याण