रविवार, 18 दिसंबर 2011

किराए के लाइसैंस पर चल रहे हैं मैडीकल स्टोर

 नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में अधिकत्तर मैडीकल स्टोर किराए के लाइसैंस पर चलाए जा रहे हैं। दवा विक्रेताओं द्वारा खुलेआम नियमों को ताक पर रख कर कानून की धज्जियां उडाई जा रही हैं। मैडीकल स्टोर पर फार्मासिस्ट न होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। लेकिन जिनके कंधों पर लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी है, उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है। जिला प्रशासन व ड्रग्स विभाग लंबी तानकर सोया हुआ है। ड्रग्स विभाग के अधिकारी सबकुछ जानकार भी अनजान बने बैठे हैं। फार्मासिस्ट का लाइसैंस किराए पर लेकर अनट्रेंड लोगों द्वारा दवाइयां बेचकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
जिले में अंग्रेजी दवाइयों के 240 मैडीकल स्टोर हैं। इनमें से अधिकत्तर ऐसे दवा विक्रेता हैं, जिनके पास लाइसैंस तो है, लेकिन वो इनका खुद का नहीं है बल्कि किसी फार्मासिस्ट से किराए पर लिया गया है। इस प्रकार दवा विक्रेताओं द्वारा खुलेआम नियमों को ताक पर रख कर कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। लेकिन ड्रग्स विभाग व जिला प्रशासन द्वारा आज तक इस तरह के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जाहिर सी बात है कि यह सारा खेल आपसी रजामंदी से चल रहा है। विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा आमजन को भूगतना पड़ रहा है। अगर किसी अनजान दवा विक्रेता ने किसी भी मरीज को कोई गलत दवाई दे दी तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। अयोग्य दवा विक्रेताओं द्वारा खुले आम चलाए जा रहे इस गौरख धंधे से लोगों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैँ। लेकिन जिला प्रशासन व ड्रग्स विभाग सबकुछ जानकार भी अनजान बना बैठा है।
 
फार्मासिस्ट को दिए जाते हैं दो विकल्प

सूत्रों के अनुसार दवा विक्रेताओं द्वारा फार्मासिस्ट को दो विकल्प दिए जाते हैं। एक यह कि वह खुद दवाइयों की दुकान संभालेगा तो उसे इसकी एवज में 8 से 10 हजार रुपए मेहनताना दिया जाएगा। दूसरा यह कि यदि वह स्वयं दुकान पर नहीं बैठेगा तो उसे लाइसैंस के बदले 2 से 3 हजार रुपए किराया दिया जाएगा।
 
क्या है नियम

नियम के अनुसार दवाई की दुकान पर फार्मासिस्ट का होना बेहद जरूरी हैताकि मरीज को दवा देते समय किसी प्रकार की लापरवाही न हो। इसके अलावा दवाई के बिल पर फार्मासिस्ट के हस्ताक्षर •ाी होने जरूरी हैं। लेकिन यहां अधिकत्तर मैडीकल स्टोर किराए के लाइसैंस पर चल रहे हैं।
 
लाइसैंस बनवाने के लिए क्या होती है प्रक्रिया

लाइसैंस बनवाने के लिए सबसे पहले व्यक्ति के पास डी फार्मा का डिप्लोमा होना आवश्यक होता है। इसके बाद दुकान का नक्शा बनवा कर ड्रग्स विभाग के  इंस्पैक्टर के पास फार्म अपलाई किया जाता है। ड्रग्स इंस्पैक्टर अगली कार्रवाई के लिए अंबाला में सीनियर ड्रग्स इंस्पैक्टर के पास आवेदक की फाइल भेजता है। सीनियर ड्रग्स इंस्पैक्टर आवेदक की फाइल की जांच कर उसके लाइसैंस पर डीएल नंबर लगा कर वापिस संबंधित इंस्पैक्टर के पास भेजता है। उसके बाद आवेदक को दवा विक्रेता का लाइसैंस दिया जाता है। पूरे प्रदेश के दवा विक्रेताओं को अलग-अलग डीएल नंबर दिया जाता है।

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