सोमवार, 26 दिसंबर 2011

टूटे दिलों को जोड़ने की कवायद

परिवार परामर्श केंद्र ने निपटाए 867 मामले 
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केन्द्र रिश्तों में आई दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केन्द्र में अब तक 876 मामले सामने आए। जिसमें से परामर्शदाताओं ने 867 परिवारों को जोड़ने का काम किया। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष ज्यादा मामले निपटारे के लिए परिवार परामर्श केंद्र में आए हैं। हर वर्ष औसतन 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। जागरूकता के अभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहट को दूर करने व लोगों को जागरूक करने के लिए जिला बाल कल्याण परिषद ने गांव व कस्बों में जाकर जागरूकता शिविर लगाने का निर्णय लिया है।
आधुनिकता की चकाचौंध व भागदोड़ भरी जिंदगी के कारण आज इंसान अपने वास्तविक रिश्तों की पहचान खो रहा है। आपसी तालमेल के अभाव व जागरूकता की कमी के कारण दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट बढ़ रही है। जिस कारण कई बार तो दोनों में तलाक तक की नौबत आ जाती है और लोग जागरूकता के अभाव के कारण कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ जाते हैं। कोर्ट-कचहरी की लंबी प्रक्रिया से हार-थक जाने के बाद भी जब उन्हें न्याय नहीं मिलता तो उन्हें अपनी गलती का अहसार होता और जब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वहीं जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केंद्र रिश्तों में आई इस दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केंद्र में 1995 से लेकर अब तक 876 केश रजिस्टर्ड हुए हैं। जिनमें से 867 मामलों का निपटारा किया जा चुका है और आज वो परिवार बड़े अच्छे ढंग से अपना जीवन बसर कर रहे हैं। परिवार परामर्श केंद्र के प्रति अब लोगों की सोच बदल रही है। अब अधिक से अधिक लोग परिवार परामर्श केंद्र के माध्यम से अपने मामलों का निपटारा करवाने में रुचि दिखा रहे हैं। हर वर्ष केंद्र में 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2010 की बजाए 2011 में ज्यादा मामले परिवार परामर्श केंद्र के पास पहुंचे हैं। 2010 में 54 मामले परिवार परामर्श केंद्र में आए थे, जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत मामलों का समाधान आपसी सुलह से करवा दिया गया है और अप्रैल 2011 से सितंबर यानि 6 माह में 41 मामले रजिस्टर्ड हुए हैं, जिनमें से 32 मामलों का निपटारा आपसी सुलह से करवा दिया गया है और 9 केश अब भी विचाराधीन चल रहे हैं।
क्या होती है प्रक्रिया
जिला बाल कल्याण अधिकारी सुरजीत कौर आजाद व प्रोग्राम अधिकारी मलकीत चहल ने बताया कि कोई भी  पीड़ित व्यक्ति या महिला उनके पास आकर साधारण पत्र पर अपना केस रजिस्ट्र करवा सकता है। यहां पर सारी प्रक्रिया निशुल्क होती है, पीड़ित व्यक्ति से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। उन्होंने बताया कि उनके पास केस आने के बाद वे पीड़ित पक्ष से सारी जानकारी जुटाते हैं और फिर दूसरे पक्ष को एक नोटिस देते हैं। दोनों पक्षों को केंद्र में बुलाकर उनसे पूरी जानकारी जुटाते हैं और फिर दोनों पक्षों की मीटिंग ले कर उनके बीच सुलह करवा कर उन्हें नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
किस तरह के केसों की होती है सुनवाई
दहेज पीड़ित महिलाओं के मामलों की
असहाय, लाचार व पीड़ित महिलाओं के मामलों
पति-पत्नी की पारिवारिक व व्यक्तिगत समस्याओं के मामलों की
गरीब, बेसहारा महिलाओं व व्यक्तियों के केसों की
दिमागी रूप से परेशान बच्चों व महिलाओं के मामलों की सुनवाई की जाती है।
किस तरह के मामले भेजे जाते हैं परिवार परामर्श केंद्र में
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि परिवार परामर्श केंद्र के पास पीड़ित व्यक्ति सीधा आकर भी केस रजिस्ट्र करवा सकता है। इसके अलावा कोर्ट व डीसी द्वारा भी केस भेजे जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि मजिस्ट्रेट द्वारा घरेलू हिंसा संरक्षण की प्रक्रिया के दौरान किसी भी स्तर पर दोनों पक्षों के आपसी तालमेल के लिए परामर्शदाता के पास भेजा जा सकता है, यदि दोनों पक्ष समझोते के लिए तैयार होते हैं तो न्यायालय द्वारा समझोते के दृष्टिगत आदेश जारी कर परिवार परामर्श केंद्र के पास भेजे जा सकते हैं।
दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं अधिक मामले
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि उनके पास मारपीट, महिलाओं का शोषण, गलतफहमी, अतिरिक्त वैवाहिक सम्बंध, दहेज, असमायोजन, नशे की लत, सम्पत्ति विवाद, सैक्ष्वल प्रॉब्लम, वायदा खिलाफी, नाबालिग बच्चों की शादी, दूसरा विवाह, मनोवैज्ञानित समस्या, ससुराल पक्ष का अत्याधिक हस्तक्षेप के मामले आते हैं। इनमें सबसे अधिक मामले दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं। 
दोनों पक्षों में सुलह न होने पर क्या होती है कार्रवाई
परिवार परामर्श केंद्र में अधिकत्तर मामलों का निपटारा अपसी सुलह से करवा दिया जाता है। अगर किसी मामले में दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती हो मामले को जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास भेज दिया जाता, जहां पर महिला संरक्षण अधिकारी द्वारा अपने स्तर पर अग्रीम कार्रवाई की जाती है। उन्होंने बताया कि अब तक उनके द्वारा सिर्फ दो ही मामले जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास •ोजे गए हैं।  

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