शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

विज्ञानिकों को हजम नहीं हो रही कीटनाशक रहित खेती


गेहूँ की फसल में चेपे को नस्ट करती सिर्फड मक्खी का बच्चा
खेतों में सरसों व गेहूं की फसल तैयार हो रही है, लेकिन फसल में आने वाली बीमारियों को लेकर कृषि वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैंं। गेहूं की फसल में होने वाली पेंटिडबग व सरसों की फसल में होने वाली एफिड (अल या चेपे) की बीमारी का उपचार कृषि वैज्ञानिक स्प्रे के रूप में ढुंढ़ रहे हैं। लेकिन इसके विपरित कीट प्रबंधन के प्रति जागरूक किसान पिछले 6-7 सालों से इस बीमारी का उपचार कीट प्रबंधन से ही कर रहे हैं। ताकि प्राकृतिक रूप से इस बीमारी पर कंट्रोल किया जा सके और हमारे खान-पान को जहरीला होने से बचाया जा सके। किसान फसल में पाई जाने वाली सिरपट मक्खी व लेडी बिटल को इन बीमारियों का वैद्य मानकर स्प्रे से परहेज कर रहे हैं। लेकिन कृषि वैज्ञानिक किसानों द्वारा इसके नए-नए प्रमाण प्रस्तुत किए जाने के बाद भी उनकी इस उपलब्धि को अस्वीकार कर रहे हैं।
एक समय था जब किसानों को फसल में होने वाली बीमारियों व उनके  उपचार की जानकारी नहीं होती थी। जिस कारण किसान इन बीमारियों के उपचार के लिए कृषि वैज्ञानिकों के पास दौड़ते थे। फसलों में आने वाली इन बीमारियों का उपचार किसानों को महंगे से महंगे स्प्रों में नजर आता था। ज्यों-ज्यों किसान ने इन साधारण बीमारियों के उपचार के लिए स्प्रे व दवाइयों का प्रयोग किया, त्यों-त्यों ये बीमारियां असाधारण होती चली गई। इसके बाद इन बीमारियों पर कंट्रोल करना स्प्रे व दवाइयों के काबू से भी बाहर हो गया। ज्यों-ज्यों नई-नई किस्मों की कीटनाशक दवाइयां व स्प्रे बाजार में आए त्यों-त्यों अलग-अलग प्रकार की बीमारियों ने भी फसलों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया। स्प्रे व दवाइयों के प्रयोग से फसलों में तो बीमारियां बढ़ी ही रही हैं, साथ-साथ हमारा खान-पान भी जहरीला होता जा रहा है। लेकिन उधर कुछ किसान हैं जो आज भी इन बीमारियों का उपचार स्प्रे व दवाइयों में नहीं कीट प्रबंधन में देख रहे हैं। ये जागरूक किसान प्राकृतिक तौर पर ही इन बीमारियों से निपटने में सक्ष्म रहे हैं और पिछले 6-7 वर्षों से किसानों व कृषि वैज्ञानिकों को इसका प्रमाण भी दे रहे हैं, लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि किसानों की इन उपलब्धियों के बावजूद भी कृषि वैज्ञानिक कीट प्रबंधन को मानने से इंकार कर रहे हैं। कीट प्रबंधन के प्रशिक्षित किसान रणबीर मलिक व मनबीर रेढू ने बताया वे पिछले 6-7 वर्षों से उन्होंने किसी भी फसल में स्प्रे या कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग नहीं किया। कीट प्रबंधन के माध्यम से ही वे इन बीमारियों पर काबू पा लेते हैं। गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) की बीमारी को कंट्रोल करने के लिए फसल में सरफड़ो (सिरपट मक्खी)व फेलपास (लेडी बिटल) नामक मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो फसल में मौजूद अल को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। कीट प्रबंधन के दौरान उन्होंने फसल में 6 से 7 किस्म की सिरपट मक्ख्यिों व 9 किस्म की लेडी बिटल कीटों की पहचान की है। जिनके नाम उनके आचार-विचार व शक्ल-सूरत के आधार पर रखे गए हैं। ये कीट परभक्षी कीट होते हैं और अपने शरीर से छोटे कीटों को खाते हैं। ये कीट अपना जीवन यापन करने के लिए फसल पर आते हैं और इनके जीवनचक्र में ही किसान को लाभ मिलता है। जिस फसल में अल होता है, उस फसल में ये कीट जरूर मौजूद होते हैं। एफिड या पेटिडबग को खाकर ही ये अपना जीवनचक्र चलते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है, उन्हें जरूरत है बस कीटों की पहचान की। कीटों की पहचान से ही इस तरह की बीमारियों को कंट्रोल किया जा सकता है और खान-पान को जहरीला होने से बचाया जा सकता है।

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
इस बारे में जब गांव पांडू पिंडारा कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. आरडी पवार से बातचीत की गई तो उन्होंने किसानों की कीट प्रबंधन की बात को नकारते हुए कहा कि यह बीमारी कीटों के माध्यम से कंट्रोल नहीं होती है। इस बीमारी पर काबू पाने के लिए स्प्रे की जरूरत होती है और उन्होंने स्वयं अपने फार्म में मौजूद फसल पर स्प्रे कर इस बीमारी से छुटकारा पाया है।

सरसों की फसल में अल को नस्ट करता सिर्पित

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