गुरुवार, 2 अगस्त 2012

फाइलों से नहीं निकल पाई निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुई फर्जीवाड़े की जांच

निर्मल गांव के ताज पर पड़े गंदगी के छींटे

नरेंद्र कुंडूजींद। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करने में हुए फर्जीवाड़े को दबाने में जिला प्रशासन कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। पहले तो जिला प्रशासन ने ऐसे गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार दिलवा दिया जो निर्मल गांव की शर्तें पूरी करने में कोसों दूर थे। लेकिन जब निर्मल गांव का ताज पहनने वाले गांवों की असली तस्वीरें जिले के लोगों के सामने आई तो प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी शाख बचाने के लिए अलग से कमेटी बनाकर इन गांवों की जांच करवाने का ढोंग रच दिया। इस फर्जीवाड़े पर लीपापोती करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा शुरू किए गए जांच के ड्रामे को दो माह से भी ज्यादा का समय हो गया, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी और न ही किसी गांव का दोबारा से निरीक्षण हुआ। 
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू की गई निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना को जिले में करारा झटका लगा है। प्रदेश सरकार द्वारा मई माह में करनाल में कार्यक्रम का आयोजन कर प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल पुरस्कार से नवाजा गया था। इस पुरस्कार के लिए जींद जिले से आठ गांवों को चुना गया था। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करते समय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जमकर फर्जीवाड़ा किया गया। इस पुरस्कार के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ऐसे गांवों का चयन कर दिया गया जो निर्मल गांव की शर्तों को पूरा करने से कोसों दूर थे। लेकिन फिर भी प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी खाल बचाने के लिए नियमों को ताक पर रख कर जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन कर दिया जिनमें निर्मल गांव की एक भी सुविधा मौजूद नहीं थी। इसके बाद इस फर्जीवाड़े को  काफी गंभीरता से उठाया था। इन निर्मल गांवों की सच्ची तस्वीरें जिले के लोगों के सामने पेश करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों में हड़कंप मच गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने शर्मिंदगी से बचने के लिए जांच का ढोंग रच दिया और जांच के साथ-साथ दोबारा से इन गांवों का सर्वे करवाने के आदेश जारी कर दिए। लेकिन निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुए इस फर्जीवाड़े के मामले को जनता की अदालत में आए दो माह से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया है, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी है और ही दोबारा से किसी गांव का सर्वे किया गया है। इतना ही नहीं अधिकारियों ने तो यह तक जानने की जहमत नहीं उठाई कि निर्मल ग्राम पुरस्कार के तहत इन गांवों को जो ग्रांट मिली है उस ग्रांट का सही प्रयोग हुआ या नहीं। अधिकारियों के इस ढुलमुल रवैये से यह बात तो साफ हो चुकी है कि अधिकारी इस मामले पर मिट्टी डालने के प्रयास में जुटे हुए हैं और किसी भी प्रकार की जांच नहीं करवाना चाहते हैं। क्योंकि अगर पूरी ईमानदारी से जांच हुई तो इस फर्जीवाड़े में कई अधिकारियों की खाल खिंचनी तय है।
किन-किन गांवों को मिला था निर्मल ग्राम पुरस्कार
निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से आठ गांवों का चयन किया गया था। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना खंड में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस बारे में जब अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद महलान से उनके मोबाइल पर बातचीत की गई तो इस बार भी उनका वही पुराना रटारटाया जवाब मिला। उन्होंने इस बार भी पहले की तरह जल्द ही टीम का गठन कर इन गांवों का सर्वे करवाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

निर्मल गांव भूरायण गांव की गलियों में जमा कीचड़।


 निर्मल गांव भूरायण में लगे कूड़े के ढेर।



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